बिहार चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग की क्या है असली वजह, नतीजे पर कैसा होगा असर

बिहार विधानसभा चुनावों के लिए दोनों चरणों की वोटिंग संपन्न हो चुकी है. पहले चरण में 64 परसेंट के करीब वोट पड़े थे. जबकि दूसरे चरण में आज शाम 5 बजे तक करीब 67.14 परसेंट के करीब वोटिंग हो चुकी थी. उम्मीद की जा रही है कि दूसरे चरण में कुल 70 परसेंट तक रिकॉर्ड वोटिंग हो सकती है.

Advertisement
बिहार चुनाव में दूसरे चरण में रिकॉर्डतोड़ मतदान हुए हैं बिहार चुनाव में दूसरे चरण में रिकॉर्डतोड़ मतदान हुए हैं

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:25 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक दलों के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिला है. पहले और दूसरे चरण में जिस तरह वोटर्स ने घर से बाहर निकल कर मतदान किया है वह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक बड़ी घटना के समान है. 6 नवंबर को पहले चरण में 121 विधानसभाओं में 64.66 प्रतिशत वोट पड़े, जो 2020 के 57.29 प्रतिशत से 7.37 प्रतिशत अधिक है. यह स्वतंत्र भारत में बिहार का अब तक का सबसे ऊंचा टर्नआउट है. दूसरे चरण में, 11 नवंबर को 122 विधानसभाओं में सायं 5 बजे तक 67.14 प्रतिशत वोटिंग हो चुकी थी, जो कुल मिलाकर 65-70 प्रतिशत के बीच पहुंचने का अनुमान है. यह आंकड़ा न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि सवाल भी खड़े करता है. आखिर क्या कारण है कि बिहार की जनता, जो लंबे समय से वोटिंग में उदासीनता के लिए जानी जाती रही, अचानक इतनी उत्साही क्यों हो गई? 

Advertisement

बिहार के चुनावी इतिहास को देखें तो वोटर टर्नआउट हमेशा एक पहेली रहा है. 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में टर्नआउट मात्र 35 प्रतिशत था, जो 1960 के दशक तक 40-45 प्रतिशत के बीच रहा. 1990 के दशक में जातिगत हिंसा और अपराध के साये में यह और गिरा, लेकिन 2005 में नीतीश कुमार के उदय के बाद सुधार दिखा.

2010 में 57 प्रतिशत, 2015 में 56.77 प्रतिशत और 2020 में 57.29 प्रतिशत रहा. ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार धीरे-धीरे लोकतांत्रिक भागीदारी की ओर बढ़ रहा है. लेकिन 2025 का 65-70 प्रतिशत का आंकड़ा सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ता हुआ नजर आ रहा है. आइये देखते हैं कि इस बंपर वोटिंग के पीछे वास्तव में क्या कारण हैं?

1-क्या छठ के बाद चुनाव का नतीजा है बंपर वोटिंग? 

विधानसभा चुनावों के लिए इस साल बंपर वोटिंग केवल संयोग नहीं, बल्कि छठ महापर्व के बाद चुनाव शेड्यूल का सीधा नतीजा है. छठ पूजा, जो 5-8 नवंबर को मनाई गई, बिहारियों का सबसे बड़ा सामूहिक उत्सव है. लाखों प्रवासी मजदूर दिल्ली, मुंबई, गुजरात जैसे शहरों से लौटे, और चुनाव उनके घर लौटने का 'X फैक्टर' बने. जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इसे 'परिवर्तन की लहर' बताया और कहा कि छठ के लिए लौटे प्रवासी वोट डालने रुक गए, जो बेरोजगारी और प्रवास से तंग हैं.

Advertisement

छठ का बिहार की राजनीति से गहरा जुड़ाव है. यह पर्व परिवारिक एकता का प्रतीक है, जहां प्रवासी मजदूर साल में एक बार ही घर लौटते हैं. 2025 में चुनाव आयोग (ECI) ने पार्टियों की मांग पर छठ के तुरंत बाद मतदान कराया. RJD, JDU और BJP ने EC से कहा था, छठ के बाद चुनाव कराएं ताकि माइग्रेंट्स भाग लें. ECI ने छठ को ध्यान में रखा, जिससे पहले चरण में बेगूसराय (67.32%) और गोपालगंज (64.96%) जैसे जिलों में टर्नआउट चरम पर पहुंचा.

 न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 3 करोड़ से अधिक प्रवासी हैं, जिनमें से लाखों छठ पर लौटे. 2020 में कोविड ने इसे रोका था, लेकिन इस बार 'होम कमिंग वोट' ने इतिहास रचा. एक चैनल ने इसे 'छठ-चुनाव समीकरण' कहा, जहां प्रवासी न केवल पूजा में शामिल हुए, बल्कि बूथ पर भी पहुंचे . सवाल उठता है कि किसी भी कीमत पर वोटिंग में शामिल होना क्या प्रवासियों का बेरोजगारी, महंगाई और विकास के मुद्दों पर गुस्से से भरे होना है?  तो क्या इसे यह NDA या महागठबंधन के खिलाफ 'बदलाव की चाह' दर्शाता है. 

2-क्या मुस्लिम समुदाय ने एनडीए को हराने को अपने अस्तित्व से जोड़ लिया है

क्या मुस्लिम समुदाय ने एनडीए (नीतीश कुमार की JDU-BJP गठबंधन) को सत्ता से बेदखल करने के लिए 'किसी भी कीमत पर' वोट डाला? कहा जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय ने इसे अपने अस्तित्व के संकट से जोड़ लिया है. बिहार में 17% मुस्लिम आबादी (लगभग 1.27 करोड़ वोटर) मुख्य रूप से सीमांचल, मगध और तिरहुत क्षेत्रों में बसी है. 

Advertisement

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इस बार मुस्लिम वोटों का झुकाव महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) की ओर स्पष्ट है. RJD का मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण हमेशा मजबूत रहा, और 2025 में तेजस्वी यादव ने इसे 'सुरक्षा का वादा' बनाया. वक्फ संशोधन बिल, CAA-NRC की आशंकाएं और घुसपैठियों को बाहर करने पर जोर ने इस समुदाय में डर पैदा किया. इसका नतीजा यह था कि देश के मेट्रो शहरों से बड़े पैमाने पर मुस्लिम कामगार वोट डालने पहुंचे हैं. ये लोग बिहार में वोट डालने को  एक मिशन की तरह अंजाम दिया है. 

3-क्या एसआईआर कारण है

बिहार में बंपर वोटिंग के पीछे कई कारण हो सकते हैं पर चुनाव आयोग की 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है. SIR ने मतदाता सूचियों को 'सबसे शुद्ध' बनाया, जिससे भागीदारी बढ़ी. मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, SIR के साथ शून्य अपील और 1951 के बाद सबसे ऊंचा टर्नआउट—लोकतंत्र की जीत. 

बिहार में SIR से कुल मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड़ से घटकर 7.42 करोड़ हो गई. लगभग 65 लाख नाम काटे गए—मृत्यु, प्रवास, डुप्लिकेट्स के कारण—और 21.5 लाख नए मतदाता जोड़े गए. प्रति विधानसभा में औसतन 15,000-20,000 नाम हटे, जो कुल 243 सीटों पर फैले हुए हैं. इसे एक उदाहरण के जरिए समझते हैं . अगर किसी क्षेत्र में पहले 10 लाख मतदाता सूचीबद्ध थे और अब 9 लाख रह गए हैं, तो वही 6 लाख वोट डालने वाले अब 60% के बजाय 66% टर्नआउट दिखाते हैं. यानी फर्जी या निष्क्रिय वोटर्स के हट जाने से प्रतिशत स्वाभाविक रूप से बढ़ा है.

Advertisement

4-क्या चुनाव आयोग का प्रशासनिक सुधार बना कारण

बढ़े हुए वोटिंग प्रतिशत का एक प्रमुख कारण और जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. चुनाव आयोग द्वारा किए गए वोटिंग के लिए किए गए प्रशासनिक सुधारों का योगदान को नकारा नहीं जा सकता.चुनाव आयोग ने वोटिंग को 'सुखद अनुभव' बनाने के लिए नई पहल की. जैसे वेबकास्टिंग, वोटर हेल्पलाइन ऐप और मोबाइल वोटिंग यूनिट. इसके चलते वोटिंग काफी आसान हुई है. 

पहले चरण में कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ जैसा पहले चुनावों में हुआ करता था.  SIR से वोटर लिस्ट साफ हुई, खासकर मगध क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत वृद्धि हुई. पुलिस की सख्ती ने अपराधियों को रोका, जिससे वोटरों का विश्वास बढ़ा. 

इस बार बूथ-वार मतदाता सूची के डिजिटलीकरण से चुनाव अधिकारियों को घोस्ट-वोटिंग रोकने में मदद मिली है. कई जिलों में पहली बार चेहरा पहचानने वाली तकनीक और QR-आधारित मतदाता स्लिप का उपयोग किया गया.

5- क्या महिलाओं के लिए बनी योजनाएं हैं कारण

महिलाओं की भागीदारी को भी रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग का कारण बताया जा रहा है. पहले चरण में करीब पुरुषों की वोटिंग से महिलाओं की वोटिंक करीब 5-7 प्रतिशत अधिक था. बताया जा रहा है कि महिलाओं के लिए एनडीए सरकार विशेषकर नीतीश सरकार की वापसी महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया.  लेकिन यह भी सही है कि महिलाएं केवल पैसे के लिए नहीं वोट की हैं. यह भागीदारी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे मुद्दों से प्रेरित है.नीतीश कुमार ने पिछले 20 सालों से लगातार महिलाओं के लिए हर स्तर पर काम किया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिला वोटर्स जाति-धर्म से ऊपर उठकर मतदान की हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement