करो या मरो... नीतीश कुमार के बेटे निशांत की जेडीयू में एंट्री पर धर्म-संकट

नीतीश कुमार के बेटे निशांत की पॉलिटिकल एंट्री फिर से चर्चा में आ गई है. चुनावों से पहले भी ऐसी संभावना जताई जा रही थी, लेकिन अब जबकि जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा की तरफ से ये बात आई है, हल्के में तो लिया भी नहीं जा सकता. लेकिन, सब कुछ इतना आसान भी नहीं है.

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राजनीति में एंट्री पर आखिरी फैसला भले ही निशांत कुमार को लेना हो, लेकिन मंजूरी नीतीश कुमार को ही देनी होगी. (Photo: PTI) राजनीति में एंट्री पर आखिरी फैसला भले ही निशांत कुमार को लेना हो, लेकिन मंजूरी नीतीश कुमार को ही देनी होगी. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST

चुनाव काल की बातें, कालांतर में जुमले की कैटेगरी में डाल दी जाती हैं. लेकिन, अगर वे बातें चुनाव बाद भी विमर्श का हिस्सा बनने लगे, तो चर्चाओं को आसानी से खारिज भी नहीं किया जा सकता है - बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की चर्चा भी ऐसी ही है. 

बिहार के चुनावी माहौल में जब तब मीडिया के सामने आने, और अपने पिता के पक्ष में कोई न कोई बयान देने के कारण निशांत कुमार के राजनीति में आने की कई बार चर्चा हुई. उन दिनों तो एनडीए नेता ही नहीं, बल्कि तंज भरे लहजे में बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी कह डाला था, नीतीश कुमार से बिहार नहीं संभल रहा है, वो अपने बेटे निशांत को मुख्यमंत्री बना दें.

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और हाल फिलहाल जेडीयू नेता संजय झा के जिस बयान के बाद निशांत कुमार के राजनीति में आने और जेडीयू की कमान संभालने से लेकर डिप्टी सीएम बनने जैसी बातें होने लगी हैं, वो खुद भी पहले ऐसी संभावनाओं को खारिज कर चुके हैं.  

1. निशांत के लिए राजनीति में आने का फैसला कितना चुनौतीपूर्ण

संजय झा फिलहाल जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. जेडीयू की कमान नीतीश कुमार ने फिलहाल अपने हाथ में रखी है. आरसीपी सिंह से लेकर ललन सिंह तक को आजमाने के बाद नीतीश कुमार ने मुख्य कमान अपने हाथ में ही रखने का फैसला किया. और, इसीलिए उनके बाद कौन, जैसी संभावनाएं तलाशी जाने लगी हैं. 

बिहार चुनाव से पहले निशांत कुमार की पॉलिटिकल एंट्री की चर्चा जोरों पर थी. जब ये सवाल संजय झा के सामने आया तो बोले, फिलहाल निशांत कुमार राजनीति में नहीं आएंगे... ऐसी कोई बात नहीं है... नीतीश कुमार फिलहाल सक्रिय हैं.

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निशांत कुमार के राजनीति में आने की अटकलों पर विराम लगाने के लिए संजय झा का इतना भर कहना काफी था. अब पता चला है कि संजय झा ने तात्कालिक परिस्थितियों को देखते हुए विराम ही लगाया था, पूर्ण विराम नहीं. और, अब तो वो खुद ही सभी चाहते हैं कि निशांत कुमार राजनीति में आएं. मतलब, ऐसा चाहने वालों में अब वो खुद भी शामिल हो गए हैं. 

खास बात ये है कि संजय झा का ताजा बयान निशांत कुमार की मौजूदगी में आया है. ये तब की बात है, जब निशांत कुमार और संजय झा एक साथ पटना एयरपोर्ट पहुंचे थे. निशांत कुमार भी दिल्ली से लौट रहे थे, और संजय झा भी. एक ही फ्लाइट से. ये संयोग था, या कोई प्रयोग, अभी तक सही जानकारी सामने नहीं आई है. 

जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा का कहना है, जेडीयू के कार्यकर्ता, समर्थक और शुभचिंतक सभी चाहते हैं कि निशांत कुमार पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाएं... हर कोई उनको काम करते देखना चाहता है, और ये पार्टी के लिए अच्छा कदम माना जा रहा है.

संजय झा की बात पर निशांत कुमार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जेडीयू के राज्यसभा सांसद संजय झा ने लगे हाथ ये भी बोल दिया कि इस बारे में अंतिम फैसला निशांत कुमार को ही लेना है. बोले, ये निशांत कुमार पर ही निर्भर करता है कि वो कब पार्टी से औपचारिक रूप से जुड़कर काम शुरू करने का फैसला करते हैं?

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संजय झा के बयान के बाद भी एक बड़ा सवाल बचा हुआ है - क्या नीतीश कुमार ने बेटे के पार्टी में शामिल होने की मंजूरी दे दी है? 

2. क्या निशांत की राजनीति में एंट्री को नीतीश कुमार मंजूर करेंगे?

सुनने में ये भी आ रहा है कि नीतीश कुमार के परिवार के लोगों की भी वही मंशा है, जैसी संजय झा जेडीयू नेताओं और कार्यकर्ताओं के बारे में बता रहे हैं. निशांत कुमार के राजनीति में आने चर्चा तो लगता है, कभी थमी ही नहीं. चुनाव नतीजे आने के ठीक बाद ही नीतीश कुमार के बड़े भाई सतीश कुमार ने निशांत कुमार को लेकर अपनी राय जाहिर की थी, उनको राजनीति में आना चाहिए... ये उनकी इच्छा पर निर्भर है... उनकी जब इच्छा होगी, तब आएंगे.

सत्ता पर काबिज बने रहने के लिए भले ही नीतीश कुमार ने पाला बदला हो और कुछ समझौते भी किए हों, लेकिन अपने सिद्धांतों पर कायम ही रहे हैं. न तो उनके ऊपर भ्रष्टाचार के कोई दाग लगे, न ही कभी परिवारवाद की राजनीति जैसे आरोप. बिहार में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी लालू यादव पर तो वो परिवारवाद की राजनीति को लेकर चुनावों में आक्रामक भी देखे जा चुके हैं. 

विशेष परिस्थितियों की बात और है. बात जब बेटे की आती है, तो कोई भी इंसान पिता जैसा ही व्यवहार करता है, जिसे पुत्र मोह के रूप में देखा जाता है. नीतीश कुमार भी इंसान ही हैं, और अब तक ऐसी बातों को वो अपनी कमजोरी नहीं बनने दिए हैं. निश्चित तौर पर निशांत कुमार के बारे में कोई भी फैसला नेता उनके लिए बहुत मुश्किल होगा - लेकिन, मुश्किल फैसले भी तो लेने ही पड़ते हैं. 

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जहां तक संभव होगा, करियर के आखिरी दौर में वो परिवारवाद की राजनीति की तोहमत नहीं लेना चाहेंगे, इसलिए भी क्योंकि बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार भी चलानी है. फिर भी नीतीश कुमार को जेडीयू के भविष्य की फिक्र तो होगी ही. बरसों की मेहनत जो जुड़ी है. 

अगर परिवारवाद की राजनीति से बीजेपी के परहेज की बात करें, तो वो गरजने और बरसने वाले दोनों बादलों की तरह ही व्यवहार करती है. बीजेपी को राजनीतिक विरोधियों के परिवारवाद की राजनीति से तो घोर ऐतराज है, लेकिन सहयोगी दलों के मामले में ये ख्याल बदल जाते हैं. ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है. 

महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार और पंजाब में बादल परिवार के साथ तो बीजेपी का लंबा गठबंधन रहा है. हरियाणा में दुष्यंत चौटाला से भी मदद ली ही है, छोटा अंतराल ही सही. अभी चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी जैसे साथी भी तो हैं ही. पार्टी हो या सरकार परिवार का ही बोलबाला है - और, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लेकर भी ऐसी ही चर्चा जोरों पर है. 

3. निशांत कुमार के राजनीति में आने से जेडीयू को फायदा होगा या नुकसान?

बिहार चुनाव के दौरान ही कांग्रेस नेता शशि थरूर का परिवारवाद की राजनीति पर एक लेख आया था. निशाने पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को सबसे ऊपर लेते हुए शशि थरूर ने इसके नुकसान भी समझाए थे. लेकिन, हकीकत अलग है. 

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ऐसे दलों नेता और कार्यकर्ता जितनी आसानी से बेटा, बेटी या परिवार के सदस्य को अपना लेते हैं, किसी और का नेतृत्व हजम नहीं कर पाते, और फिर लड़ाई शुरू हो जाती है - देश के राजनीतिक मिजाज के हिसाब से देखें तो निशांत कुमार पार्टी को एकजुट रखने की वजह बन सकते हैं. 

4. जेडीयू का भविष्य अनिश्चित क्यों लग रहा है?

जेडीयू में अभी तो नीतीश कुमार ही चेहरा हैं. जेडीयू में नीतीश कुमार के अलावा कोई और नेता ऐसा नहीं है, जो देश तो छोड़िए, जिसका पूरे बिहार में ठोस जनाधार हो - और सर्व सहमति से उसका नेतृत्व मंजूर हो.

ये भी सबने देखा ही है कि कैसे प्रशांत किशोर को कुछ ही दिन बाद हाशिये पर भेज दिया गया, क्योंकि नीतीश कुमार ने जेडीयू में उपाध्यक्ष पद बनाकर प्रशांत किशोर को पार्टी का भविष्य तक बता दिया था. हालत ये हो गई कि नीतीश कुमार भी मौके की तलाश में लग गए, और फिर एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया. 

देखा जाए तो जेडीयू भी उसी मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता AIADMK को छोड़कर चली गईं. जेडीयू भी बीजेपी की तरह उत्तराधिकार, विरासत और परिवार तक सीमित रहने वाली पार्टियों से अलग बनी हुई है, लेकिन ऐसी पार्टियों का नेता के चले जाने के बाद क्या हाल होता है, AIADMK बेहतरीन उदाहरण है.

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जब मायावती और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने वक्त रहते अपनी अपनी पार्टियों का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित कर लिया है, तो नीतीश कुमार क्यों नहीं कर सकते?

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