5 जुलाई 2025 को मुंबई के वर्ली में 'मराठी विजय दिवस' रैली में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की एकजुटता ने महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल ला दिया है. विशेषकर महाविकास अघाड़ी के दल कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही परेशान हैं. कांग्रेस ने तो रैली से भी दूरी बनाई रखी . हालांकि एनसीपी नेता सुप्रिया सुले जरूर इस रैली में पहुंची थीं पर उन्होंने मंच पर जाने से परहेज किया या ठाकरे बंधुओं ने उन्हें जगह नहीं दी ये अभी समझ में नहीं आ सका है. पर इतना तो तय है कि महाविकास अघाड़ी में जबरदस्त उथल पुथल मची हुई है. इसमें सबसे मुश्किल में कांग्रेस है. क्योंकि वो चाहकर भी ठाकरे बंधुओं के साथ नहीं जा सकती है.
उद्धव के रास्ते पर कांग्रेस कभी नहीं जाएगी
उद्धव ठाकरे ने हाल के वर्षों में शिवसेना (UBT) को कट्टर हिंदुत्व से हटकर धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण वाली पार्टी के रूप में अपनी छवि बनाई है. यही कारण था कि 2024 के लोकसभा चुनावों और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में शिवसेना यूबीटी ने कांग्रेस और NCP के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चुनाव लड़ा. हालांकि राज ठाकरे ने इन लोगों से दूरी बनाए रखी. पर विजय दिवस की रैली में रैली में राज ठाकरे के साथ उद्धव का मंच साझा करना और मराठी अस्मिता पर आक्रामक रुख अख्तियार करना दिखाता है कि उन्होंने रणनीति में बदलाव कर लिया है.
दरअसल इस सारी कसरत का मतलब मराठी वोटों (लगभग 40% BMC चुनावों में) को एकजुट करने की रणनीति है. उद्धव ने कहा, हम साथ आए हैं और साथ रहेंगे. यह BMC और आगामी चुनावों में महायुति (BJP-शिंदे शिवसेना) को चुनौती देने की तैयारी है.
कांग्रेस के साथ मुश्किल यह है कि अगर वह उद्धव की हां में हां मिलाई या किसी भी तरह से ऐसा लगा कि वो ठाकरे भाइयों के साथ खड़ी है तो उसके राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य वाली छवि को नुकसान पहुंचेगा. इसके साथ ही मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य शहरों में भी रहने वाले तमाम हिंदी भाषी लोग आज भी कांग्रेस को वोट देते हैं.जाहिर है कि कांग्रेस को अपने परंपरागत वोट के बीजेपी में जाने का डर है.
2-कांग्रेस समझती है राज ठाकरे की हैसियत
मनसे की हिंदी-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी छवि उद्धव के लिए ही नहीं कांग्रेस के लिए भी जोखिम भरी है. हो सकता है कि कुछ दिन के लिए मुंबई में मराठी मतदाताओं को आकर्षित कर ले, पर यह लंबे दौर तक राजनीति करने के लिए नुकसानदायक है.
रैली में कांग्रेस नेताओं की अनुपस्थिति और उनकी चुप्पी इस बेचैनी को दर्शाती है. मुंबई और ठाणे में गैर-मराठी विशेषकर उत्तर भारतीय और मुस्लिम वोटर (20%) कांग्रेस का आधार हैं. राज ठाकरे की हिंदी-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी बयानबाजी इन वोटरों को नाराज कर सकती है, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. हालांकि जिस तरह मनसे बदल रही है उससे लगता है बहुत जल्दी ही वह शिवसेना यूबीटी की तरह मुस्लिमपरस्त राजनीति करने लगे. राजनीति में कल कोई मायने नहीं रखता है. आज मुसलमानों की सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी है. इसलिए बीजेपी को हराने के लिए अगर मनसे भी कमर कसती है तो अल्पसंख्यकों का सपोर्ट महाविकास अघाड़ी को मिल सकता है.
कांग्रेस की राष्ट्रीय छवि धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है. हालांक कांग्रेस अभी तक ठाकरे बंधुओं और इस विवाद से दूरी बनाकर चल रही है. पर राज ठाकरे अगर खुद को बदलते हैं तो संभव है कि कांग्रेस के लिए फ्रूटफुल हो जाएं.फिलहाल अभी की स्थिति तो यही है कि राज ठाकरे के आक्रामक मराठीवाद और मुस्लिम-विरोधी रुख से गठबंधन करने का साहस कांग्रेस नहीं कर पा रही है. कांग्रेस समझती है कि मुंबई हो या महाराष्ट्र , मनसे का कोई अपना वोट बैंक नहीं है. जो भी 6 से 7 परसेट उसे वोट मिलते हैं वो उसके प्रत्याशियों के व्यक्तिगत वोट होते हैं.
3-MVA की एकता पर सवाल
उद्धव का राज के साथ करीबी रुख MVA के अन्य सहयोगी NCP (SP) के लिए भी असहज है. सुप्रिया सुले ने सतर्क बयान दिया, कि लोकतंत्र में सभी को गठबंधन चुनने का अधिकार है. दरअसल कांग्रेस अगर अपने राष्ट्रीय छवि के चलते इस तरह के भाषाई विवाद में नहीं पड़ना चाहती तो दूसरे एनसीपी की अपनी अलग समस्या है. एनसीपी कभी नहीं चाहेगी कि मराठा अस्मिता की लड़ाई का सारा श्रेय ठाकरे बंधु ले जाएं. जाहिर है कि सुप्रिया सुले विजय दिवस रैली में पहुंची तो थी पर उन्होंने अपना रुख अस्पष्ट ही रखा. इसके साथ ही एनसीपी और कांग्रेस दोनों की यह चिंता वाजिब है कि अगर राज ठाकरे महाविकास अघाड़ीमें शामिल होते हैं, तो सीट बंटवारे और वैचारिक टकराव से गठबंधन कमजोर हो सकता है.
2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (12.42% वोट) और शिवसेना (UBT) (10%) का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा. उद्धव का नया रुख कांग्रेस को और कमजोर कर सकता है, क्योंकि गैर-मराठी वोटर BJP की ओर झुक सकते हैं.जबकि गैरमराठियों पर कांग्रेस की भी अच्छी पकड़ है.
4-हाइकमान भी ठाकरे बंधुओं से दूरी बनाने की पक्षधर
महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि ठाकरे बंधुओं की एकता हिंदी थोपने के खिलाफ आंदोलन से प्रेरित है. इसका असर मुंबई और बीएमसी चुनावों तक ही सीमित रहेगा. शायद यही कारण है कि कांग्रेस के नेता मराठी विजय रैली से दूर रहे. कांग्रेस के नेता भाषा विवाद पर कुछ बोलने से बच रहे हैं. माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व खुद भी महाराष्ट्र में क्या किया जाए इसे लेकर परेशान है.यही कारण रहा कि हाईकमान ने स्टेट के नेताओं को इस संबंध में कुछ नहीं बोला. जिसका नतीजा है कि कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने भी रैली से दूरी बनाए रखी.
बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी रमेश चेन्निथला ने विधानसभा सत्र के पहले दिन ही राज्य के शीर्ष नेताओं को दिल्ली में बैठक के लिए बुला लिया. वे सभी राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने की उम्मीद में दिल्ली आए थे. पर बताया जा रहा है कि दोनों में से किसी ने भी इन नेताओं से मिलना उचित नहीं समझा. दिल्ली पहुंचे नेता भाषा विवाद पर बिना किसी तरह की गाइडलाइंस लिए वापस हो गए. उन्हें भाषा विवाद से दूर रहने और जय हिंद यात्रा और संविधान सम्मान सम्मेलन आयोजित करने की सलाह देकर वापस मुंबई भेज दिया गया.
संयम श्रीवास्तव