वक्फ कानून और SIR पर ममता का रवैया बदला, तलवार की धार पर चल रही TMC

बंगाल में कम से कम 27 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं. कम से कम 100 सीट ऐसी हैं जहां ममता बनर्जी मुसलमानों के सहयोग के बिना चुनाव जीत ही नहीं सकती हैं. ऐन चुनावों के पहले कोई भी जनाधार वाला नेता नहीं चाहेगा कि उसके कोर वोटर्स उनसे खफा हो जाएं. जाहिर है कि पूरे देश को यह जिज्ञासा है कि ममता ऐसा क्यों कर रही हैं?

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मुस्लिम वोटर्स को लेकर बदली बदली नजर आ रही हैं ममता बनर्जी. मुस्लिम वोटर्स को लेकर बदली बदली नजर आ रही हैं ममता बनर्जी.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बदलीं-बदलीं नजर आ रही हैं. जिस तरह उन्होंने पिछले दिनों कुछ फैसले लिए हैं उससे तो कम से कम ऐसा ही लग रहा है. 2026 में बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उसे देखते हुए ममता बनर्जी के ये फैसले हैरान करने वाले हैं. पश्चिम बंगाल में वक़्फ़ संशोधन विधेयक का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था. ख़ुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किसी भी स्थिति में राज्य में इसे लागू न करने की बात कही थी. इस क़ानून के विरोध में मुर्शिदाबाद ज़िले में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा भी हुई थी.

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लेकिन राज्य में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न यानी एसआईआर के शोरगुल में ममता बनर्जी सरकार ने इस क़ानून को लागू करने का फ़ैसला किया है. जाहिर है कि उनसे ये उम्मीद किसी को भी नहीं थी. ऐन चुनावों के पहले इतना बड़ा फैसला यूं ही उन्होंने नहीं लिया होगा.

बिल्कुल इसी तरह एसआईआर पर ममता बनर्जी ने अपना रुख नरम कर लिया. याद करिए जब बिहार में एसआईआर शुरू हुआ तो ममता बनर्जी और उनकी टीएमएसी पार्टी ने जिस तरह विरोध किया उतना तो बिहार में भी नहीं हुआ. टीएमसी लीडर डेरेक ओ ब्रायन ने एसआईआर की तुलना नाजियों के पूर्वज पास से की थी. ममता बनर्जी ने कहा था किसी भी कीमत पर बंगाल में एसाआईआर नहीं होगा. पर न केवल उन्होंने राज्य में एसआईआर शुरू कराया बल्कि टीएमसी कार्यकर्ताओं के इसे सफलतापूर्वक संपन्न करने में भी लगाया.

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हालांकि यह बात अलग है कि बीच-बीच में उन्होंने एसआईआर के विरोध में मार्च भी किया और बयानबाजी भी की. पर बांग्लादेश को वापस होती भीड़ को रोकने के लिए अब तक कुछ नहीं किया. केवल कहने के लिए उनका बयान आता है कि किसी को भी अपना घर नहीं छोड़ना होगा. पर एसआईआर जारी है और हर रोज एसआईआर के डर से अवैध अप्रवासियों का पलायन भी जारी है. सवाल उठता है ऐसा क्यों है? क्या ममता बनर्जी इस बार का चुनाव जीतने के लिए कोई नई रणनीति अपना रही हैं.

1-वक्फ संशोधन विधेयक: विरोध से स्वीकृति तक का सफर

वक्फ संशोधन विधेयक अप्रैल 2025 में संसद से पारित हुआ, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने, गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और विवाद निपटारे के लिए केंद्र को अधिक शक्ति देता है. ममता ने इसे मुस्लिम अधिकारों पर हमला बताते हुए कड़ा विरोध किया. नवंबर 2024 में कोलकाता में एक रैली के दौरान ममता ने कहा कि यह विधेयक एक धर्म के खिलाफ है. यह एंटी-फेडरल और एंटी-सेकुलर है. यह मुसलमानों के अधिकार छीनने की साजिश है. 

 मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे मुस्लिम बहुल जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए, जो हिंसक हो गए. इनमें हिंदू दुकानों पर हमले हुए, 68 दुकानें जलीं और कई मौतें दर्ज की गईं. कई जिलों से बड़े पैमाने पर हिंदुओं का पलायन भी हुआ. जाहिर है कि बीजेपी के लिए यह एक मौके की तरह था. बीजेपी ने ममता को हिंदू-विरोधी हिंसा की प्रेरणा बताया.

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लेकिन नवंबर 2025 में अचानक यू-टर्न लेते हुए बनर्जी सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि 5 दिसंबर तक वक्फ संपत्तियों का डेटा umeedminority.gov.in पोर्टल पर अपलोड करें. बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा, ममता ने पहले विरोध कर मुसलमानों को भड़काया, जिससे हिंदुओं की जान-माल का नुकसान हुआ. अब हिंदू वोट खिसकने के डर से झुक गईं हैं. एक्स पर एक यूजर ने लिखा, ममता ने वक्फ एक्ट लागू किया क्योंकि SIR से मुस्लिम वोटर कम हो रहे हैं, अब हिंदू वोट चाहिए.  

इस बीच ममता के मंत्रिमंडल के एक मुस्लिम मंत्री ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है. दूसरी ओर कोलकाता के मेयर और राज्य मंत्री फिरहाद हाकिम ने कहा कि वे आज भी वक्फ एक्ट के विरोध में हैं, लेकिन संपत्तियां पोर्टल पर डालने में दिक्कत क्या है? इससे जमीन सरकार की निगरानी में रहेगी और पारदर्शिता बढ़ेगी.

इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के विधायक और फुरफुरा शरीफ के पीरजादा ने कहा कि मुख्यमंत्री कहती हैं कि यह कानून राज्य में लागू नहीं होगा, जबकि उनकी ही सरकार उसके पालन के आदेश दे रही हैं. जाहिर है कि बंगाल के मुस्लिम जगत में चौतरफा विरोध शुरू हो गया है. यह विरोध जितना बढ़ेगा ममता हिंदुओं की हमदर्दी हासिल कर लेंगी.  

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 2-SIR: मतदाता सूची पर विरोध, लेकिन क्यों बदला रुख?

SIR चुनाव आयोग की पहल है, जो मतदाता सूचियों को साफ करने के लिए घर-घर सत्यापन करती है. बंगाल में इसे फर्जी वोटरों (मुख्यतः घुसपैठिए मुसलमानों) को हटाने की साजिश बताया गया. ममता ने नवंबर 2025 में उत्तर 24 परगना में मार्च निकाला, कहा कि एक भी वैध वोटर का नाम कटा तो केंद्र गिरा दूंगी.

दूसरी तरफ ममता साफ देख रही हैं कि मुस्लिम बहुल सीमावर्ती जिलों (मुर्शिदाबाद, मालदा) में SIR से हजारों नाम कटने की आशंका में पलायन हो रहा है. जाहिर है कि इससे टीएमसी के वोट बैंक को खतरा पैदा कर दिया है. बीजेपी का दावा है कि इससे 1 करोड़ फर्जी वोटर बाहर होंगे.

 ममता कहती हैं कि अगर SIR 2-3 साल पहले होता, तो हम समर्थन देते. यह बयान हिंदू मतदाताओं को संकेत देता है कि टीएमसी पारदर्शिता के पक्ष में है, जो SIR का मूल उद्देश्य है. बीजेपी इसे हिंदू वोट बचाने की कोशिश कहता है. एक्स पर एक यूजर्स ने लिखा कि SIR से कांग्लू (घुसपैठिए) ढाका लौट रहे, ममता को अब हिंदू वोट चाहिए.  राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि SIR से मुस्लिम वोट घटने से टीएमसी का बहुमत खतरे में है, इसलिए हिंदू असंतोष (जैसे वक्फ हिंसा से) को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं. शायद यही कारण है कि ममता अपनी रणनीति बदल रही हैं.

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3-हिंदू वोटों की नाराजगी, 2026 चुनावों का डर

बंगाल में हिंदू आबादी 70% से अधिक है, लेकिन 2021 चुनावों में टीएमसी को मुस्लिम वोटों (27% आबादी) का मजबूत समर्थन मिला था. लेकिन अब बदलाव आ रहा है. वक्फ हिंसा के बाद बीजेपी ने हिंदू सुरक्षा का नारा दिया, जिससे हिंदू मतदाताओं में असंतोष बढ़ा. सुकांता मजुमदार जैसे नेता कहते हैं, ममता ने वक्फ बोर्ड को हिंदू गांवों पर दावा करने दिया, अब यू-टर्न से हिंदू वोट खिसकने का डर है.

 प्रदीप भंडारी ने एक्स पर लिखा कि यह हिंदुओं में भय पैदा करने की साजिश है, लेकिन अब जागृति हो रही है. ममता की सॉफ्ट हिंदुत्व रणनीति भी सक्रिय है. 2026 चुनावों से पहले, बीजेपी हिंदू राष्ट्रवाद पर दांव खेल रही है, जबकि टीएमसी को संतुलन बनाना पड़ रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि SIR से मुस्लिम वोट घटने से हिंदू वोट 10-15% खिसक सकते हैं, इसलिए ममता का यू-टर्न हिंदू नाराजगी से बचाव का प्रयास है.

4- क्या बिहार से सबक लेकर ममता ऐसा कर रही हैं ?

विपक्षी दलों का आरोप है कि एसआईआर घुसपैठियों (मुख्यतः बांग्लादेशी मुसलमानों) को निशाना बना रहा है. बिहार में SIR से 60 लाख नाम कटे, जिनमें अधिकांश मुस्लिम बताए गए, जिससे बंगाल में डर का माहौल है.  मुस्लिम बहुल जिलों जैसे मुर्शिदाबाद (70% मुस्लिम आबादी), मालदा (55%) और उत्तर दिनाजपुर में सत्यापन से पलायन बढ़ा है. बीजेपी का दावा है कि इससे 1 करोड़ फर्जी वोटर (जिनमें मुस्लिम घुसपैठिए शामिल) बाहर होंगे. 
11 नवंबर 2025 तक 6.56 करोड़ फॉर्म वितरित हुए (85.71% कवरेज), लेकिन नाम कटने के सटीक आंकड़े दिसंबर में ही स्पष्ट होंगे.  ECI ने AI-आधारित सत्यापन शुरू किया है, जो डुप्लिकेट फोटो या संदिग्ध एंट्रीज को पकड़ रहा है. लेकिन रिपोर्ट्स बताती हैं कि मुस्लिम समुदाय में चिंता बढ़ रही है.बिहार और असम के अनुभवों से सबक लेते हुए. 

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बंगाल में मुस्लिम आबादी 2011 की जनगणना में 27% थी, लेकिन अनुमानित 31-33% हो चुकी है.  टीएमसी का वोट बैंक इन्हीं पर टिका है.2021 चुनावों में 80 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक थे. SIR से इन जिलों में 5-10% नाम कटने की आशंका है, जो 100 से अधिक सीटों को प्रभावित कर सकता है.  बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा, SIR के चलते TMC के वोटर भाग रहे हैं, जो बंगालियों की नौकरियां छीन रहे थे.  बंगाल में भी, सीमावर्ती जिलों (उत्तर 24 परगना, नादिया) में रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों के नाम कटने की आशंका है. मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी कि बिना स्वतंत्र निगरानी के SIR से मुस्लिम बहुल इलाकों में पलायन बढ़ा है. जाहिर है कि जो इलाके टीएमसी को 90% मुसलमान समर्थन करते थे वहां पार्टी को नुकसान पहुंच रहा है. कुल मिलाकर, SIR से मुस्लिम वोट प्रभावित हो रहे हैं जाहिर है कि ममता बनर्जी को दूसरी रणनीति अपनानी ही होगी.

5-हुमायूं कबीर ने बाबरी मस्जिद बनवाने की बात कर के ममता को संकट में डाल दिया है

पश्चिम बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के विधायक हुमायूं कबीर एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार उनका बयान पार्टी को गहरे संकट में डालते दिख रहे हैं. 22 नवंबर 2025 को कबीर ने मुर्शिदाबाद जिले के बेलडंगा में 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की नींव रखने का ऐलान किया, जो 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की 33वीं वर्षगांठ का दिन है. 
 उन्होंने कहा कि यह मस्जिद तीन साल में पूरी होगी, और कई मुस्लिम नेता इसमें शामिल होंगे.जाहिर है कि यह बयान सिर्फ हिंदुओं को चिढ़ाने के लिए है. क्योंकि यह सबको पता है कि यह आसान काम नहीं है. इससे ममता बनर्जी की सेक्युलर इमेज को भी धक्का पहुंचा रहा है. 2026 विधानसभा चुनावों से पहले उनकी मुस्लिम परस्त इमेज बनने से उन्हें कितना नुकसान होने वाला है शायद वह समझ चुकी हैं. हालांकि कबीर को टीएमसी में बाग विधायक माना जाता है.

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पर इस तरह के ऐलान के बाद भी पार्टी ने ऑफिशियली अभी उन्हें टीएमएसी ने निकाला नहीं गया है.जाहिर है कि हिंदुओं के अंदर टीएमसी को लेकर गुस्सा बढ़ रहा है . जिसे शायद ममता बनर्जी महसूस भी कर रही हैं. बहुत संभावना है कि इस हफ्ते जब ममता बनर्जी मुर्शिदाबाद पहुंचेंगी उन्हें कबीर का पत्ता साफ हो चुका होगा. बीजेपी तो इस मुद्दे पर टीएमसी पर आक्रामक है ही कांग्रेंस के  अधीर रंजन चौधरी ने भी कबीर के इस फैसले की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि ममता मंदिरों को हिलाती हैं या बनवाती हैं हिंदू वोट के लिए, लेकिन यह विभाजनकारी राजनीति है.  

टीएमसी ने कबीर से दूरी बना ली. पार्टी के नॉर्थ 24 परगना एमएलए निरमल घोष ने कहा कि यह उनका निजी बयान है, पार्टी से कोई लेना-देना नहीं. लेकिन ममता की चुप्पी ने संकट गहरा दिया। विपक्ष का आरोप है कि यह उनकी मंजूरी के बिना नहीं हो सकता.

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