जाति सर्वे का अजगर कर्नाटक में कांग्रेस को ही निगलने को तैयार, राहुल गांधी की जिद भारी पड़ी पार्टी को

कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जाति सर्वेक्षण की जो रिपोर्ट पेश की है उससे राज्य इकाई में अंदरूनी खींचतान बढ़ गया है. अगर यहां स्थितियां और खराब होती हैं तो कांग्रेस को राहुल गांधी के इस अभियान को ठंढे बस्ते में डालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

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कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और सीएम सिद्धारमैया कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और सीएम सिद्धारमैया

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 16 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष आज कल सपने में भी जाति सर्वे की बात करते हैं. दरअसल कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वो जाति सर्वे की बात न करते हों. कहीं स्पीच दे रहे हों, लोकसभा में बोल रहे हों , एक्स पर कुछ लिख रहे हों उसमें कहीं न कहीं जाति आ ही जाती है.  देश का कोई ऐसा मंच नहीं होगा जहां से राहुल गांधी ने जाति सर्वे कराए जाने की बात नहीं की हो. जिन जगहों पर जाति की बात जरूरी नहीं है वहां भी वो जाति सर्वे का झंडा बुलंद करते हैं. याद करिए दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने जाति जनगणना की बात की थी. जबकि दिल्ली के चुनावों जाति कभी मुद्दा नहीं रहा है. 

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दरअसल राहुल जब भी जाति जनगणना की बात करते हैं उनका टार्गेट पिछड़ी जातियां होती हैं. मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद से ही देश का मंडलवादी नेतृत्व जाति सर्वे की बात करता रहा है. राहुल गांधी को मालूम है कि कांग्रेस के हाथ से सत्ता खिसक जाने का सबसे बड़ा कारण यही रहा कि पिछड़े पार्टी के साथ नहीं आए. अभी कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी का यह दर्द छलका था कि हम सवर्ण . दलित , मुसलमान करते रहे और पिछड़े कांग्रेस से छिटक गए. जाहिर है कि जाति सर्वे के पीछे राहुल की यही मंशा है कि वो ओबीसी जातियों का खुद को हितैषी साबित कर सकें. पर कर्नाटक में शायद उनकी मंशा सफल होती नहीं दिख रही है. अगर यहां स्थितियां और खराब होती हैं तो कांग्रेस को राहुल गांधी के इस अभियान को ठंढे बस्ते में डालना होगा. दरअसल कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की सौंपी गई जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट राज्य इकाई में अंदरूनी खींचतान का कारण बन गई है.

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1-वोक्कालिगा और लिंगायत जातियों का संकट

राज्य में पिछड़ी जातियों के लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं में राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर चिंता देखी जा रही है. दरअसल ये दोनों ही जातियां कहने को पिछड़ी जाति हैं पर राजनीतिक रूप से बेहद जागरूक हैं. इतना ही नहीं, ये लोग समाज में एक दबंग की हैसियत रखते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट की माने तो सर्वेक्षण में प्रयुक्त आंकड़ों पर कुछ नेताओं की आपत्तियां, और कुरुबा समुदाय को बढ़े हुए लाभ को लेकर ओबीसी नेताओं की आपत्तियों के बीच, राज्य कांग्रेस के नेताओं में जबरदस्त असंतोष है. 

13 अप्रैल को राज्य कैबिनेट के समक्ष रखी गई कर्नाटक जाति सर्वे रिपोर्ट के अनुसार राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 69.6% आंकी गई है, जो कि मौजूदा अनुमानों से 38% अधिक है. वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय, जिन्हें राज्य के ओबीसी आरक्षण की III A और III B श्रेणियों के अंतर्गत आरक्षण प्राप्त है, की जनसंख्या क्रमशः 12.2% और 13.6% पाई गई है. अभी तक यह समझा जा राह था कि राज्य में वोक्कालिगा 17% और लिंगायात करीब 15% हैं. रिपोर्ट में II B श्रेणी के तहत 4 प्रतिशत अंकों की आरक्षण वृद्धि की सिफारिश की गई है, जिससे वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों को 3 प्रतिशत अंकों तक आरक्षण लाभ बढ़ाने का रास्ता खुलता है.

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दरअसल पिछड़ी जाति के नेता अजीब अधर में फंसे हैं. जाति सर्वे में जनसंख्या कम होने के चलते उनकी जाति का आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश आयोग कर रहा है. पर जाति की संख्या कम पता चल जाने पर पार्टियों की मजबूरी होगी कि टिकट बंटवारे में उनके सीट कम कर दें. 

दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी  के लिए समस्या हो गई है कि वह उन समुदायों कैसे नाराज़ कर दे जो दशकों से कर्नाटक की राजनीति में प्रभुत्व रखते रहे हैं. 224 सदस्यीय राज्य विधानसभा में कांग्रेस के 136 विधायकों में से 37 लिंगायत और 23 वोक्कालिगा समुदाय से हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 51 लिंगायत उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. इंडियन एक्सप्रेस ने एक कांग्रेस नेता के हवाले से लिखा है कि हमारे लगभग आधे (44.11%) विधायक इन समुदायों से आते हैं. उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत बड़ा है. इसलिए वे चिंतित हैं.

2-सिद्दारमैया की कुरुबा जाति को 22 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश से दूसरी जातियों में असंतोष

रिपोर्ट का एक और पहलू जो विरोध का कारण बन रहा है. दरअसल सर्वे में II A श्रेणी के लिए आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 22% करने की सिफारिश की गई है. खास बात यह है कि इस श्रेणी में फिलहाल कुरुबा समुदाय शामिल है. इस जाति से ही मुख्यमंत्री सिद्धारमैया आते हैं . जाहिर है कि सरकार पर पक्षपात करने का आरोप लगेगा ही. खुद पार्टी के अंदर ही दूसरे गुट इसे अन्याय बता रहे हैं.

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एक्सप्रेस लिखता है कि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने II A श्रेणी से एक नया ‘अत्यंत पिछड़ा वर्ग (Most Backward Classes)’ और I B बनाने की सिफारिश भी की है. इसमें कुरुबा समुदाय को शामिल करने की बात कही गई है और उन्हें 12% आरक्षण की सिफारिश की गई है. इसके चलते II A श्रेणी के आरक्षण को घटाकर 10% कर दिया गया है.

3-कांग्रेस पार्टी में ही बढ़ रहा है असंतोष

कांग्रेस पार्टी में इस जाति सर्वे की रिपोर्ट के बाद से जबरदस्त असंतोष देखा जा रहा है. कांग्रेस नेता ही यह दावा कर रहे हैं कि जिस डेटा के आधार पर यह रिपोर्ट बनाई गई है वह पुरानी है. दरअसल जिस जाति सर्वे की रिपोर्ट आई है वह  2015 में कराया गया था. सरकार को ताज़ा डेटा इकट्ठा करना चाहिए और एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर वैज्ञानिक तरीके से आरक्षण की संरचना दोबारा तैयार करनी चाहिए.

कांग्रेस नेताओं को ही लग रहा है कि यह रिपोर्ट लागू नहीं की जा सकती है, इसमें बड़े बदलाव करने होंगे. कुराबु जाति को अधिक आरक्षण मिलने पर कांग्रेस नेताओं का ही तंज है कि यह अभूतपूर्व पक्षपात है. जब कोई समूह वर्षों से आरक्षण का लाभ ले रहा है, तो उसे थोड़ा कम पिछड़ा होना चाहिए, न कि और अधिक पिछड़े की श्रेणी में चला जाना चाहिए.  

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जाहिर है कि पार्टी में अंदर ही अंदर कोहराम मचा हुआ है. जाति सर्वे के इस रिपोर्ट को बीजेपी और उसके सहयोगी दल पहले ही खारिज कर चुके हैं. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का कहना है कि कांग्रेस सरकार जाति जनगणना के मुद्दे पर पाखंड कर रही है. उनका कहना है कि दरअसल बीजेपी की जनाक्रोश यात्रा को असफल करने के लिए यह सब हो रहा है.

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