नसरुल्लाह की मौत पर भारतीय मुसलमानों में मातम, अरब देशों में खामोशी? समझिए कितना खतरनाक है ये ट्रेंड । Opinion

अरब लीग के 22 मुस्लिम देश जुलाई 2024 तक हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन ही मानते रहे हैं. अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, और गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल समेत 60 देशों ने हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन घोषित किया है. ऐसे में एक आतंकी संगठन के प्रमुख नसरुल्लाह के मारे जाने पर भारतीय मुसलमानों के वर्ग का महिमामंडन करके मातम करना क्या साबित करता है?

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कश्मीर चुनाव में प्रचार अचानक उस समय थम गया जब खबर आई कि इजरायल ने हिज्बुल्लाह संगठन प्रमुख नसरुल्लाह को ढेर कर दिया है.  मातम मनाते लोग नसरुल्लाह की फोटो लेकर सड़कों पर आ गए. कश्मीर चुनाव में प्रचार अचानक उस समय थम गया जब खबर आई कि इजरायल ने हिज्बुल्लाह संगठन प्रमुख नसरुल्लाह को ढेर कर दिया है. मातम मनाते लोग नसरुल्लाह की फोटो लेकर सड़कों पर आ गए.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 01 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:38 PM IST

इजरायली हमले में हिज्बुल्लाह का सुप्रीम लीडर हसन नसरल्लाह मारा जा चुका है. पर उससे अधिक खास बात यह है कि उसकी मौत पर भारतीय मुसलमान गमजदा हैं. खासतौर पर शिया मुसलमान. नसरुल्ला की मौत पर दुनिया के किसी भी शांतिप्रिय मुस्लिम देश में मातम और प्रदर्शन नहीं है. पर भारत में मुसलमानों का एक धड़ा सड़क पर उतर कर रोष प्रकट कर रही है. मिडिल ईस्ट, टर्की , मिश्र, इंडोनेशिया आदि कहीं से भी ऐसी तस्वीरें या वीडियो नहीं आ रहे हैं, जैसी भारत से आ रही हैं. हो भी क्यों, अरब लीग के 22 मुस्लिम देश जुलाई 2024 तक हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन ही मानते रहे है. अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, और गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल समेत 60 देशों ने हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन घोषित किया है. ईरान के समर्थन वाले समूह हिज्बुल्लाह के मुखिया की मौत पर पूरा मध्य-पूर्व बंट गया है और कई सुन्नी बहुल देशों ने चुप्पी साध ली है. 32 सालों तक शिया सशस्त्र समूह चलाने वाले नसरल्लाह ने इजरायल और पश्चिमी देशों के अलावा कई क्षेत्रीय दुश्मन भी बना लिए थे. सवाल यह उठता है कि एक आतंकी संगठन का मुखिया जिसके हाथ हजारों निर्दोष नागरिकों के खून से रंगे हैं उसको नैतिक समर्थन देकर हम क्या हासिल करना चाहते हैं? देश के लिए ये कितना खतरनाक है, इसके बारे में क्या कभी सोचा है आपने? इसके लिए हमें थोड़ा इतिहास में जाना होगा. हजार किलोमीटर दूर मुस्लिम जगत में जो हो रहा है उससे भारत का क्या रिश्ता हो सकता है? दरअसल इसकी शुरूआत महात्मा गांधी की एक गलती से हुई थी. जिसका बहुत बड़ा परिणाम बाद में देश ने भुगता था. 

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1-खिलाफत मूवमेंट को समर्थन देकर हुई शुरूआत, जिसका परिणाम बहुत दुखद रहा 

जब जब कहीं दूर मुस्लिम जगत में कुछ अनहोनी होती है तो भारतीय मुसलमान सड़कों पर होता है. नसरूल्ला की मौत कोई नया मामला नहीं है. शार्ली अब्दो वाले केस में भारतीय मुसलमानों ने जम कर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया था. पर शुरूआत होती है 2020 में ऐतिहासिक खिलाफत आंदोलन को महात्मा गांधी के समर्थन से. अंग्रेजों ने मध्य एशिया में खलीफा के पद को समाप्त कर दिया था. इसका विरोध मध्य एशिया में हो रहा था. भारत में मुस्लिम लीग भी इसका विरोध कर रही थी. महात्मा गांधी को आपदा में अवसर दिखा. उन्होंने मु्स्लिम लीग से समझौता किया कि कांग्रेस खिलाफत मूवमेंट का समर्थन करेंगी और मुस्लिम लीग असहयोग आंदोलन का. तब तक मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस में एक आधुनिक विचारों वाले एक उदारवादी नेता थे. जाहिर है कि गांधी के इस प्रस्ताव का उन्होंने विरोध किया. उनका मत था कि कांग्रेस को एक धार्मिक पार्टी को समर्थन देने की क्या जरूरत है. जिन्ना ने इस प्रस्ताव के विरोध में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. बाद में उसका नतीजा देश के बंटवारे से पूरा हुआ. और राष्ट्रपिता ने दूर देश की धरती पर मुस्लिम जगत में कुछ भी अनहोनी होने पर विरोध करने की परंपरा की शुरूआत कर दी. हालांकि गांधी के मुस्लिम लीग के समर्थन के पहले ही बैरिस्टर जिन्ना, अंसारी, हकीम अजमल खान आदि जैसे कई मुसलमान स्वतंत्रता आंदोलन में लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में सक्रिय थे. 

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2-भारतीय मुसलमान अपने बच्चों से क्या उम्मीद रखते हैं?

नसरुल्ला कोई संत नहीं था, न ही किसी राष्ट्र का प्रमुख.  हसन नसरुल्लाह ने कभी भारत की यात्रा नहीं की, भारतीयों के बारे में कभी अपनी हमदर्दी नहीं दिखाई .पर भारत में मुसलमान विशेषकर शिया मुसलमान जिस तरह मातम मना रहा है वह हैरान करने वाला है.हमारे देश के मुसलमानों को क्या यह पता नहीं है कि जिसके लिए वो मातम मना रहे हैं वह शख्स कोई महात्मा नहीं था. उसके संगठन हिजबुल्लाह ने  कई आतंकी हमले किए हैं, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोगों की जानें गई हैं. निर्दोषों की जान लेने वाला हर शख्स आतंकी ही होता है. इस बात को मुस्लिम परिवारों को अपने बच्चों को बचाना चाहिए. हैरान करने वाला एक वीडियो एक कश्मीरी मुस्लिम बच्ची का वायरल हो रहा है जो हमारे देश के मुस्लिम परिवारों के लिए खतरे के सिगनल की तरह है. बच्ची इस वीडियो में कह रही है कि नसरुल्ला मरा नहीं है, हर घर से एक नसरुल्लाह निकलेगा. आम तौर पर भारत में यह माना जाता है कि शिया लोगों में लिट्रेसी आम सुन्नियों के मुकाबले बहुत ज्यादा है. हैरान करने वाली बात यह है कि अगर पढ़े लिखे मुस्लिम इस तरह की सोच रखेंगे तो बाकी का तो अल्लाह ही मालिक है. भारत के कई शहरों में नसरुल्ला का महिमामंडन करने मुस्लिम परिवार ऐसे परिवेश में अपने बच्चों से क्या उम्मीद रखते हैं. क्या वो अपने बच्चों को नसरूल्लाह के रास्ते पर चलने के लिए इंस्पायर कर रहे हैं.

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3-हिंदू कट्टरपंथियों को और मजबूत बनाते हैं ऐसे धरना प्रदर्शन

भारतीय मुसलमान जब जब ऐसी भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं तो इसका फायदा कौन उठाता है? जाहिर है कि इसका फायदा हिंदू कट्टर पंथियों को मिलता है. आम हिंदुओं को लगता है कि पूरी मुस्लिम कौम आतंकवदियों को लिए हमदर्दी रखती है.नसरूल्ला की मौत के बाद कम से कम भारतीय राजनीतिज्ञों ने अब तक बहुत विवेक का परिचय दिया है. अभी तक कश्मीरी महबूबा मुफ्ती को छोड़कर किसी भी राजनीतिक पार्टी ने नसरूल्ला की मौत पर शोक नहीं जताया है. आम तौर पर कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने इस घटना के पहले कई बार ऐसी गलती की है जिसका संदेश आतंकियों के समर्थन में जा चुका है. पर इस बार ऐसी गलती किसी भी नेता नहीं की है. मिडिल ईस्ट के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक सऊदी अरब ने एक बयान में कहा कि वह लेबनान के घटनाक्रम पर चिंतित है और इस पर नजर रख रहा है.

भारतीय मुसलमानों को समझना होगा कि जब दुनिया भर के मुस्लिम देशों ने नसरूल्लाह की मौत पर चुप्पी साध रखी है तो भारत में इस तरह का शोक और प्रदर्शन क्यों किया जा रहा है? सुन्नी शासित सऊदी अरब ने रविवार देर रात जारी बयान में लेबनान की संप्रभुता और क्षेत्रीय सुरक्षा के संरक्षण का आग्रह किया. लेकिन बयान में नसरल्लाह का कोई जिक्र नहीं किया गया. UAE, कतर, बहरीन ने भी चुप्पी साध रखी है. मिस्र के राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से एक बयान जारी किया गया है जिसके अनुसार, राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती से फोन पर बात की है. सीसी ने लेबनानी प्रधानमंत्री से कहा कि उनका देश लेबनान की संप्रभुता के किसी भी उल्लंघन को अस्वीकार करता है. हालांकि, उन्होंने नसरल्लाह का उल्लेख नहीं किया.हालांकि सीरिया और इराक जैसे क्षेत्र के देशों ने तीन दिन का शोक घोषित किया है.

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