IC-814 और मुंबई अटैक में शामिल आतंकियों की कॉमन मजहबी बातें, जिसे हमारा सिनेमा नहीं दिखाता

IC-814 के डायरेक्टर अनुभव सिन्हा अपनी फिल्मों में बहुत बारीकी से इस्लामोफोबिया के खिलाफ मेसेज देते रहे हैं. यहां तक तो ठीक रहा है पर जब वह जानबूझकर मजहबी कट्टरता वाली बातों को नजरअंदाज कर जाते हैं  तो उन पर भेदभाव का आरोप लगेगा ही.

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कंधार हाईजैक से पाकिस्तान को अलग करने की किसकी साजिश? कंधार हाईजैक से पाकिस्तान को अलग करने की किसकी साजिश?

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:03 PM IST

IC-814 को लेकर विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. पहले आतंकियों को रहम दिल दिखाने और उनके हिंदू नाम को लेकर बीजेपी ने विरोध किया. अब कांग्रेस पार्टी ने विमान अपहरण और आतंकियों की रिहाई को तत्कालीन वाजपेयी सरकार नाकामयाबी बता कर एक और मुद्दा छोड़ दिया है. दरअसल वेब सीरीज के डायरेक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्मों को लेकर विवाद होता ही रहा है. और जब सब्जेक्ट में हिंदू मुसलमान और पाकिस्तान हो तो जाहिर है कि चर्चा का वेग और बढ़ जाता है. शायद अनुभव सिन्हा यही चाहते भी हैं. उनकी हर फिल्म को इसी तरह के राजनीतिक विवादों में फंसती है जिससे उनकी फिल्मों को बिना किसी बड़े एक्टर के ऐसी पब्लिसिटी मिलती है जो किसी छोटे बजट की फिल्म के लिए असंभव होती है. सिन्हा अपनी फिल्मों में बहुत बारीकी से इस्लामोफोबिया के खिलाफ मैसेज देते रहे हैं.यहां तक तो ठीक रहा है पर जब वह जानबूझकर मजहबी कट्टरता वाली बातों को अवॉयड कर जाते हैं  तो उनके खिलाफ गुस्सा जाहिर होना स्वाभाविक हो जाता रहा है. पर नफरत को खत्म करने के लिए एक नए किस्म का नफरत खड़ा करना किसी भी इंटेलेक्चुअल डायरेक्टर से आशा नहीं की जा सकती. पर सिन्हा ही नहीं बॉलिवुड वर्षों से यही करता रहा है. 

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1- आतंकियों को उदार दिखाना ठीक पर मजहबी दिखाने से क्यों बच गए अनुभव

प्लेन हाईजैक के इस सीरीज में डायरेक्टर ने आतंकवादियों के साथ अपहृत लोगों की अंताक्षरी भी करवा दी. चलिए मान लेते हैं कि आतंकवादी फिल्‍म संगीत प्रेमी थे. सीरीज में दिखा कि सिगरेट शेयर हो रहा है. बीमारों का ध्यान रखा जा रहा है. प्यार से गुड बाय बोला जा रहा है.लेकिन,आईसी 814 प्लेन में एयर होस्टेस पूजा कटारिया बताती हैं कि हाइजैकर में से एक डॉक्टर काफी पढ़ा लिखा था, लेकिन वो यात्रियों से कह रहा था कि इस्‍लाम धर्म अच्‍छा है. वो हिंदू धर्म से बेहतर है. वो यात्रियों से इस्‍लाम कुबूल करने को कह रहा था. इस्लाम की तारीफ में उसने इतने कसीदे पढ़े कि पूजा कटारिया भी इस्लाम की मुरीद होते होते बच गईं. अब सवाल उठता है कि बंदूक की नोक पर इस्‍लाम का ये प्रचार अनुभव सिन्हा ने अपनी वेब सीरीज में क्‍यों नहीं दिखाया? क्‍या उन्‍हें डर था कि ऐसा करने से इस्‍लामोफोबिया फैलेगा? धार्मिक समरसता का एजेंडा अपनी जगह है लेकिन यदि वे सच ही दिखाना चाहते थे तो आतंकियों के इस तरह के धर्म के प्रचार को भ्‍ज्ञी दिखा सकते थे. ऐसा करने से हिंदुस्‍तान का मुसलमान भी नाराज नहीं होता.

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पाकिस्‍तान से आने वाले आतंकियों के भीतर भारत के खिलाफ नफरत भरने में धर्म का जमकर इस्‍तेमाल होता रहा है. जैसे आईसी 814 के आतंकियों ने अपने नाम भोला और शंकर रखे थे, वैसे ही 2008 में मुंबई हमले में शामिल अजमल कसाब ने हिंदू दिखने के लिए हाथ में कलावा बांधा था. विमान का हाईजैकर यात्रियों से इस्‍लाम कबूलने की बात कर रह था, तो मुंबई के ताज होटल में घुसे आतंकी बंधकों का धर्म पूछ-पूछकर उन्‍हें मार रहे थे. उस होटल में ठहरी तुर्की एक महिला ने बाद में बताया था कि उसे आतंकियों ने सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था कि वह मुस्लिम थी. आतंकियों के भीतर बैठाई गई इस मजहबी नफरत और कट्टरपंथ को भी यदि अनुभव अपने सिनेमा में दिखा पाते तो ज्‍यादा ईमानदार कहे जाते. पाकिस्‍तान की अच्‍छाई पर तो बात, बाद में भी हो सकती थी. आतंकवाद का महिमामंडन गलत है. सारी दुनिया गलत मानती है. भारतीय डायरेक्टरों को भी सीखना होगा.

2- बॉलीवुड की विरासत को बढ़ा रहे हैं अनुभव

सत्तर और अस्सी के दशक में पैदा हुए बच्चों पर सिनेमा का बहुत प्रभाव रहा है. याद करिए सत्तर के दशक के मुस्लिम कैरेक्टर जिन्हें देखकर हम बड़े हुए हैं. शोले के रहीम चाचा और जंजीर का शेर खान हो या दीवार में युनूस परवेज का कैरेक्टर रहा हो. ये सभी कैरेक्टर रहम दिल, बहादुर और अपने दोस्त के जान तक कुर्बान करने वाले होते थे. मंदिरों के पुजारी पाखंडी और लालची ही होते थे. 1980 के अंत तक एक मुस्लिम को, यदि किरदार मिलता था, हमेशा ही एक भलेमानस का किरदार दिया जाता था. हालांकि कश्‍मीर में आतंकवाद और कश्‍मीरी पंडितों की हत्‍याओं के बाद नब्बे के दशक में अचानक फिल्मों में आतंकवादियों के किरदार बढ़ते गए. एक समय ऐसा आ गया कि इन किरदारों की बाढ़ ने इस्लामोफोबिया को जन्म देने का कारण बनने लगा. 9/11 के बाद देश और विश्व की परिस्थितियां ऐसी बनीं कि इस्लाम के खिलाफ माहौल बनने लगा था. अनुभव सिन्हा जैसे फिल्मकारों ने इस्लामोफोबिया के खिलाफ अपनी फिल्मों के माध्यम से अपने तर्क गढने शुरू किए. पर इसके लिए उन्होंने जो रणनीति अपनाई उसके चलते एक नए किस्म की नफरत पैदा होने लगी. 

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3- आईसी 814 में आतंकियों के लिए इतनी हमदर्दी क्यों?

अनुभव सिन्हा ने आईसी 814 में जिस तरह अपने एजेंडे पर काम किया है उसमें वो सफल होते दिख रहे हैं. उनकी फिल्मों का इतिहास बताता है कि उन्हें किसी भी हाल में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सहृदय और निर्दोष बताना है. आईसी 814 में वे यही काम पूरी तल्लीनता से कर रहे हैं. इस वेब सीरीज़ से बेहतर पाकिस्तान का पक्ष पाकिस्तान की सरकार भी नहीं रख सकती था. भारत विरोधी प्रोपेगंडा, पीआर और नैरेटिव को जो लोग समझते हैं उन्हें भली भांति चल गया कि अनुभव सिन्हा ने ये सब कैसे दिखाया है. सीरीज देखने के बाद आपको उस आतंकी के चेहरे से प्‍यार हो जाएगा, जिसने एक यात्री रुपिन कत्याल को मारा और भारत सरकार करीब एक हफ्ते तक बंधक बनाए रखा. यही नहीं, यह सीरीज ये संदेश देती है कि इस घटना से पाकिस्तान का कोई लेना देना नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक दिलीप मंडल चिंता जाहिर करते हैं कि,क्या यह डायरेक्टर और स्टोरी राइटर ने अनजाने में किया होगा? मैं डर रहा हूँ कि ये किसी ग्लोबल साजिश के अनजाने में शिकार तो नहीं बन गए हैं? भारत की विश्व अर्थव्यवस्था में ग्लोबल धमक बढ़ने के दौरान ऐसा हो सकता है. जहां से सीरीज के लिए पैसा आएगा, वहां से विचार भी आ सकता है. विदेशी मीडिया में भारत को लेकर छपने वाले लेख अब आलोचनात्मक हो चुके है. ये सब मासूम तरीके से नहीं हो रहा है. हमारे देश की ताक़त बढ़ेगी तो हमला भी बढ़ेगा. 

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मंडल लिखते हैं कि आतंकवाद को एडवेंचर की तरह दिखाया गया है. पाकिस्तान को क्लीन चिट दी गई है. फैक्ट और फ़िक्शन का घालमेल है.

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