यूपी में डिटेंशन सेंटर... घुसपैठियों को बाहर करने में योगी का प्लान क्‍या मॉडल बन पाएगा?

घुसपैठियों को उनके देश भेजना भारत के लिए बहुत बड़ी समस्या रही है. असम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. केवल सरकार के चाहने भर से ही घुसपैठियों को उनके देश भेजना संभव नहीं है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का प्‍लान इसलिए कारगर होता दिख रहा है, क्‍योंकि घुसपैठियों की धरपकड़ का काम SIR के साथ साथ हो रहा है.

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योगी आदित्यनाथ घुसपैठियों के मुद्दों पर आक्रामक तरीके से काम कर रहे हैं. योगी आदित्यनाथ घुसपैठियों के मुद्दों पर आक्रामक तरीके से काम कर रहे हैं.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:06 AM IST

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अवैध घुसपैठियों के खिलाफ 'निर्णायक अभियान' दिसंबर 2025 में चरम पर है. 22 नवंबर को योगी ने 75 जिलों के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए कि घुसपैठियों की पहचान करें, हर जिले में अस्थायी डिटेंशन सेंटर बनाएं और सत्यापन के बाद उन्हें मूल देश डिपोर्ट करें. 2 दिसंबर को 17 नगरीय निकायों जैसे लखनऊ, कानपुर आदि को रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों की विस्तृत सूची तैयार करने का आदेश जारी हुआ इसके साथ ही 18 मंडलों में डिटेंशन सेंटर स्थापित करने का आदेश जारी हुआ है.

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यह अभियान स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) से जुड़ा है, जो वोटर लिस्ट शुद्धिकरण का हिस्सा है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह एक्शन घुसपैठियों को बाहर करने में सफल साबित होगा? एक अनुमान के मुताबिक राज्य में करीब 10 लाख अवैध प्रवासी (मुख्यतः बांग्लादेशी, रोहिंग्या) हैं. मुख्य रूप से नेपाल बॉर्डर पर 7 जिलों के रास्ते इनका प्रवेश होता है.  

योगी का यह कदम केंद्र की SOP से मेल खाता है, जिसमें देश के सभी राज्यों में घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए डिटेंशन सेंटर बनाने और उनकी दैनिक रिपोर्टिंग और FRRO (फॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस) के जरिए डिपोर्टेशन अनिवार्य है. 3 दिसंबर को योगी ने सफाई कर्मचारियों में रोहिंग्या-बांग्लादेशी की जांच का आदेश दिया, जो स्लम्स और अनौपचारिक सेक्टरों पर फोकस करता है. 

1- असम में कितनी मिली सफलता

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सबसे पहले असम में आते हैं. देश का यह राज्य अप्रवासियों की समस्या से सबसे अधिक त्रस्त रहा है. एक समय इन्हें राज्य से बाहर खदेड़ने के लिए बहुत बड़ा आंदोलन हुआ. बहुत से वादे हुए पर जितनी अपेक्षा थी उसके मुकाबले आंशिक सफलता ही मिल सकी.आज की तारीख में भी असम में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी हैं. विपक्ष के नेता कांग्रेस के देबब्रत सैकिया का आरोप है कि भाजपा सरकार बांग्लादेशियों को वापस भेजने में नाकाम रही है. 2016 से सिर्फ 26 लोगों को डिपोर्ट किया गया है. बाकी कांग्रेस सरकार के समय हुआ था. पुशबैक कानूनी नहीं है. लोग या तो लौट आते हैं या बांग्लादेश जेल में फंस जाते हैं.

दूसरी तरफ असम सरकार का दावा है कि 1 लाख से अधिक संदिग्धों की जांच हुई, और 10,000 से अधिक को डिपोर्ट किया गया. पर 2024-2025 में 'पुशबैक' पॉलिसी से 2,000 से अधिक बांग्लादेशी डिपोर्ट हुए. इसके तहत पुलिस संदिग्धों को सीधे BSF को सौंपती है, जो बॉर्डर से वापस धकेल देती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 के पहले छह महीनों में असम ने 500 से अधिक रोहिंग्या को म्यांमार भेजा. यह तेज प्रक्रिया है, जहां डिटेंशन औसतन 3-6 महीने का होता है. पर कहानी कुछ और ही है.

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पर HRW की जुलाई 2025 रिपोर्ट में कहा गया कि सैकड़ों मुसलमानों को 'अनलॉफुल' तरीके से बांग्लादेश भेजा गया, जिसमें ट्राइबल वर्कर्स भी शामिल थे. फ्रंटलाइन मैगजीन (मई 2025) ने बताया कि पुशबैक इंटरनेशनल लॉ का उल्लंघन है, और कई रिफ्यूजीज सालों तक डिटेंशन में रहते हैं. कम से कम 4 मौतें 2024 में हुईं. 

कोर्ट के संरक्षण के चलते डिपोर्ट होने का सक्सेस रेट केवल 20-30% ही दिखाई देता है. कुल मिलाकर असम मॉडल घुसपैठ रोकने में बॉर्डर क्रॉसिंग के मामले में कारगर दिखता है. जो पहले के अपेक्षा 40% कम हुई है.यानि कि यहां भी अभी बहुत काम करने की जरूरत है.

2-बंगाल में घुसपैठिये और डिटेंशन सेंटर

पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आकर बसने वाले अवैध प्रवासियों की संख्या करीब 40 से 60 लाख के बीच हैं. जो अलग-अलग ज़िलों में रह रहे हैं. 10 करोड़ की आबादी वाले पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों का ये आकंड़ा भयावह लगता है. इन लोगों ने अवैध दस्तावेज दिखाकर वोटर कार्ड भी बनवा लिया है.ये देश की जनसंख्या को प्रभावित करते हैं. स्थानीय संस्कृति और आर्थिक अधिकार पर अतिक्रमण करते हैं. राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ते हैं. जब ऐसे ही घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल से भगाया जा रहा है तो सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस जैसी पार्टियों को दर्द होता है क्योंकि इनका वोट पार्टियों का कोर वोट बैंक  है. ऐसे ही कारणों के चलते ममता बनर्जी बनर्जी SIR का विरोध करने के लिए सड़क पर उतर जाती हैं.

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यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठियों के लिए डिटेंशन सेंटर की संख्या सीमित है. केंद्र सरकार के 2014 के निर्देश के बावजूद, राज्य सरकार (ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC) ने इनकी स्थापना पर सख्ती नहीं बरती. वर्तमान में (दिसंबर 2025 तक) केवल 1-2 सक्रिय या प्रस्तावित डिटेंशन सेंटर हैं, लेकिन निर्माण कार्य रुका हुआ है. 

3- दिल्ली में छोटे स्केल पर सफल, लेकिन संसाधन की कमी

दिल्ली में डिटेंशन सेंटर मुख्य रूप से मंडोली जेल कॉम्प्लेक्स में हैं, जहां FRRO (फॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस) डिपोर्टेशन हैंडल करता है. 2025 में केंद्र की SOP के बाद कार्रवाई तेज हुई. जनवरी 2025 में सेंट्रल दिल्ली से 14 बांग्लादेशी को डिपोर्ट किया गया, जो छोटा लेकिन सफल उदाहरण है. दिल्ली ने 2024-25 में 200 से अधिक अवैध इमिग्रेंट्स (मुख्यतः बांग्लादेशी) को पकड़ा और 70% को डिपोर्ट किया. द हिंदू (जनवरी 2025) के अनुसार, स्लम सर्वे से 50 से अधिक रोहिंग्या चिह्नित हुए. 

दिल्ली में अनुमानित 50,000 अवैध प्रवासी हैं, लेकिन डिटेंशन कैपेसिटी केवल 1,000 लोगों की है. मुख्य समस्या फर्जी दस्तावेज और कोर्ट डिले है. 2025 में US से भारतीयों के डिपोर्टेशन (388 केस) ने रिवर्स प्रेशर डाला. दिल्ली मॉडल शहरी क्षेत्रों के लिए फिट है. क्योंकि यहां BSF की बजाय लोकल पुलिस इस मामले को देख रही है. हालांकि डिपोर्टेशन की स्पीड बहुत कम है.  2025 में अब तक केवल 100 डिपोर्टेशन ही हो सका है.

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4-अन्य राज्यों में डिटेंशन सेंटर

भारत में अवैध घुसपैठियों (मुख्य रूप से बांग्लादेशी, रोहिंग्या, पाकिस्तानी और नेपाली) को रखने के लिए डिटेंशन सेंटर एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं. ये सेंटर जेलों के अंदर या अलग सुविधाओं के रूप में बनाए जाते हैं, जहां सत्यापन के बाद डिपोर्टेशन होता है. केंद्र सरकार ने 2014 में सभी राज्यों को कम से कम एक सेंटर बनाने का निर्देश दिया था, और 2025 के इमीग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट के तहत हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में डेडिकेटेड होल्डिंग सेंटर अनिवार्य कर दिया गया है.

 दिल्ली और असम के अलावा अन्य राज्यों में भी डिटेंशन सेंटर मौजूद हैं या बन रहे हैं. हालिया अपडेट्स (2025 तक) के आधार पर ये मुख्य रूप से बॉर्डर स्टेट्स में हैं, जहां घुसपैठ ज्यादा है. केंद्र सरकार के अनुसार, सभी राज्यों को सेंटर बनाने हैं, लेकिन अमल सीमित स्तर पर ही हो सका है.

-कर्नाटक में 1 (नेलमंगला के पास, बेंगलुरु)।

-गुजरात में 3 (अहमदाबाद और बॉर्डर जिलों में).
अप्रैल 2025 में पुलिस ड्राइव के बाद सेटअप हुआ.

-महाराष्ट्र में अभी एक ही सेंटर बन सका है.कई और बनने के लिए प्रस्तावित है.

-झारखंड-1 (रांची या बॉर्डर जिले).

-मणिपुर में 1 (इम्फाल)।

-पंजाब में 1 (अमृतसर के पास)

4-यूपी के डिटेंशन सेंटर पूरे देश के लिए मॉडल बनेंगे 

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उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अवैध घुसपैठियों के खिलाफ 'निर्णायक अभियान' देशभर के लिए एक नया मॉडल बन सकता है. असम में केवल 6 डिटेंशन सेंटर हैं, जहां 10,000+ घुसपैठियों को डिपोर्ट किया गया, लेकिन ओवरक्राउडिंग और 3 साल की डिटेंशन लिमिट (सुप्रीम कोर्ट रूलिंग) जैसी समस्याएं रहीं.  यूपी में 18 मंडलों में सेंटर शुरू हो चुके हैं, और बरेली डिवीजन जैसे क्षेत्रों में ईंट भट्टों-फैक्टरियों में छिपे बांग्लादेशियों की जांच तेज हुई है. जाहिर है कि डिटेंशन सेंटरों की संख्या ही बताती है कि असम में ओवरक्राउडिंग की समस्या यहां नहीं आने वाली है. केंद्र की SOP के तहत दैनिक रिपोर्टिंग और BSF समन्वय से डिपोर्टेशन प्रक्रिया अगर एक या 2 महीने में कुछ पॉजिटिव रिजल्ट सामने लाते हैं तो यह देश के लिए नजीर बन सकती है.

योगी की जीरो टॉलरेंस नीति जिस तरह उत्तर प्रदेश को माफिया मुक्त कराने के अभियानों में देखी गई है उम्मीद की जा रही है घुसपैठियों को लेकर भी यूपी सरकार वही पॉलिसी जारी रखेगी. इस तरह अगर यूपी 10 लाख अनुमानित घुसपैठियों में से 30-40% को बाहर करने में सक्षम साबित होता है तो यह अन्य राज्यों (जैसे गुजरात, महाराष्ट्र) के लिए ब्लूप्रिंट बनेगा. 

योगी का एक्शन शुरुआती चरण में मजबूत दिख रहा है और जाहिर है कि कम से कम घुसपैठ रोकने में सफलता तो मिलेगी ही. हालांकि पूर्ण डिपोर्टेशन के लिए संसाधन, कानूनी सुधार और अंतरराष्ट्रीय समन्वय जरूरी होता है इसलिए कितनी सफलता मिलेगी इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. 

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5-2027 यूपी चुनावों में घुसपैठियों पर एक्शन, BJP को कितना सियासी लाभ दिलाएगा?

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अवैध घुसपैठियों के खिलाफ 'निर्णायक अभियान' न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन चुका है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए BJP को रणनीतिक रूप से भी मजबूत कर सकता है. यह SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) से जुड़ा अभियान वोटर लिस्ट शुद्धिकरण का हथियार है, जो BJP के 'राष्ट्रवादी' नैरेटिव को मजबूत करता है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे 2027 के विधानसभा चुनावों में BJP को सियासी लाभ मिलेगा? 

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि BJP की बिहार विधानसभा चुनावों में जीत के पीछे घुसपैठ मुद्दे से 'जनसांख्यिकीय असंतुलन' का डर फैलना भी था.  यूपी में भी यही फॉर्मूला काम कर सकता है. योगी की 'बुलडोजर वाली' छवि हिंदू-ओबीसी वोटरों (BJP का 40% बेस) को एकजुट करेगी. असम-NRC मॉडल से प्रेरित यह एक्शन 'हिंदुत्व' को घुसपैठ से जोड़ता है.

चुनाव आयोग के SIR से फर्जी वोटर हटने से BJP के पक्ष में वोट शेयर बढ़ेगा.2022 में BJP को 41% मिले थे, अब 45% से अधिक तक पहुंच सकता है. BJP के लिए यह 'राष्ट्र रक्षा' नैरेटिव चुनावों में वोटबैंक मजबूत करेगा. विपक्ष (SP, कांग्रेस) इसे 'ध्रुवीकरण' का हथियार बता रहा, लेकिन अगर अमल सफल रहा, तो अन्य राज्यों में BJP सरकारें इसे कॉपी करेंगी. 

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