वासेपुर का खलनायक बना 'जननायक', एक मजबूर औरत का डर मजाक कैसे हो सकता है?

हिमंता बिस्‍वा सरमा को भयभीत दिखाने के लिए फिल्‍म गैंग्‍स ऑ‍फ वासेपुर के दृश्य से प्रेरिक वायरल मीम का कांग्रेस प्रवक्‍ता सुप्रिया श्रीनेत द्वारा इस्‍तेमाल करना कई मायनों से आपत्तिजनक है. बेशक यह मीम सोशल मीडिया पर खूब इस्‍तेमाल होता है, लेकिन एक भयभीत महिला के भय को राजनीतिक छींटाकशी के लिए एक महिला द्वारा ही इस्‍तेमाल करना आश्‍चर्य पैदा करता है.

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गैंग्स ऑफ वासेपुर के इस सीन वाले मीम काहें कांप रही हो की हो रही चर्चा. गैंग्स ऑफ वासेपुर के इस सीन वाले मीम काहें कांप रही हो की हो रही चर्चा.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 17 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 3:32 PM IST

कांग्रेस की सोशल मीडिया हेड और राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता सुप्रिया श्रीनेत ने बुधवार को एक्स पर एक मीम ट्वीट किया है. फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से लिए गए दृश्‍य 'काहे कांप रही हो' को उन्होंने आसाम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा का मजाक बनाने के लिए इस्तेमाल किया. मीम में एक मजबूर लड़की दुर्गा (रीमा सेन) का जबड़ा दबाए हुए माफिया सरगना सरदार खान के रोल में मनोज वाजपेयी देखे जा सकते हैं. मीम के कैप्शन में लिखा है कि काहें कॉंप रही हो? इस ट्वीट पर बवाल मचा हुआ है. लोग इसे महिलाओं के प्रति सामंती मानसिकता से जोड़ रहे हैं. इसके लिए सुप्रिया श्रीनेत को टार्गेट किया जा रहा है. कई लोगों का मानना है कि महिलाओं को लेकर सुप्रिया को इस तरह की असंवेदनशीलता नहीं दिखानी चाहिए थी. वह भी एक महिला होकर.

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दरअसल बुधवार को ही असम पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा को जेल भेजने की धमकी दी थी. उसके बाद इस तरह के मीम बनने लगे कि हिमंता जेल जाने के डर से कांप रहे हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी हिमंता का मजा लेना चाहा. पर सुप्रिया से भूल गईं कि उन्होंने एक मजबूर महिला पर अत्‍याचार करने वाले क्रूर माफिया किरदार के फोटो को मीम के रूप में ट्वीट कर दिया है. पर खुद एक महिला होते हुए अगर उन्हें एक मजबूर महिला पर अत्याचार करते गुंडे को नेता बनाकर किसी का मजाक बनाने में मजा आता है तो जाहिर है कि उनकी संवेदनशीलता पर सवाल उठेगा ही.

हिमंता की जगह मजबूर लड़की दुर्गा को दिखाकर सुप्रिया क्या कहना चाहती हैं यह समझ से परे तो है ही, राहुल गांधी/कांग्रेस की जगह कुख्यात माफिया सरदार खान को रखने की वजह भी समझ में नहीं आई. मीम समझने से पहले आइये फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर की कहानी को समझते हैं.

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गैंग्स ऑफ वासेपुर में दुर्गा और सरदार खान की कहानी

2012 में दो भागों में रिलीज हुई यह फिल्म सही मायने में एक अपराध कथा थी. डायरेक्टर अनुराग कश्यप को इस फिल्म ने एक अलग पहचान दी. फिल्म कोयला माफिया, जातिगत राजनीति, और वासेपुर (धनबाद) की वास्तविक घटनाओं पर आधारित है. फिल्म में सरदार खान (मनोज बाजपेयी) और एक मजबूर बंगाली लड़की स(दुर्गा) की कहानी भी है .सरदार खान की मुलाकात दुर्गा से तब होती है जब वह वासेपुर और धनबाद के कोयला माफिया गैंगवार के बीच अपने बिजनेस और वर्चस्व को बढ़ाने में लगा होता है. दुर्गा एक बंगाली प्रवासी मजदूर है. सरदार खान दुर्गा पर एक शिकारी की तरह नजर रखता है. और मौका पाकर उसे धर लेता है. घबराई हुई दुर्गा से तभी सरदार खान कहता है कि 'कांप काहे रही हो'. खैर, पहले से शादीशुदा सरदार खान दुर्गा पर हावी हो जाता है. इस बात को लेकर सरदार खान और उसकी पत्नी नफीसा (रिचा चड्ढा) के बीच काफी कलह भी होती है. 

सुप्रिया श्रीनेत्र ने स्‍त्री के पक्ष को तो नजरअंदाज किया ही, राजनेता का दायित्‍व भी भूल गईं...

फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में सरदार खान की सोच उस पितृसत्तात्मक समाज को दर्शाती है, जहां पुरुष अपने अफेयर को मर्दाना ताकत की तरह देखता है. इसलिए ही वह अपनी पहली पत्नी से झूठ बोलता रहता है. फिल्म में सरदार खान और दुर्गा के बीच जो रिश्ता दिखाया गया है, वह जबरदस्ती के रूप में तो नहीं दिखाया गया है पर यह रिश्ता पूरी तरह बराबरी या सहमति (consensual) पर आधारित भी नहीं है.

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सोशल मीडिया पर राजनीतिक टीका-टिप्‍पणी के लिए किसी ट्रोल द्वारा एक मजबूर, कमजोर, शोषित और पीड़ित युवती के मीम का इस्‍तेमाल तो समझा जा सकता है. लेकिन, कांग्रेस पार्टी जैसे जमीनी दल के सोशल मीडिया हेड का असंतुलित हो जाना अचरज में डालता है. एक किसी नेता के भय को दर्शाने के लिए किसी स्‍त्री के भय को प्रतीक नहीं बनाना चाहिये. भारत ही नहीं, दुनिया की स्त्रियां पुरुषों के दमन का मजबूती से मुकाबला कर रही हैं. और समाज में बराबरी के लिए लड़ रही हैं. जहां तक एक राजनेता के दायित्‍व का विषय है, तो उसके लिए भी विपक्षी को भयभीत करने के लिए किसी माफिया को अपना प्रतीक मानना गलत है. यह समझना चाहिये कि असम में किसी का भय 'दुर्गा' के जैसा है, और न ही भयभीत करने वाला कोई सरदार खान जैसा माफिया. असम हो या कोई राज्‍य, राजनीति में संवाद शालीनता के दायरे में होगा तो लोकतंत्र मजबूत होगा और संवेदना भी कायम रहेगी. फिर स्त्रियों के लिए अलग से संवेदनशील होने की कामना नहीं करनी पड़ेगी.

सरदार खान जैसे खलनायक को नजरअंदाज करके 'जननायक' कैसे मान लिया?

वासेपुर का सरदार खान पहले से शादीशुदा है. उसकी पत्नी और उसके दो बेटे हैं. वह दुर्गा से मिलने-जुलने लगता है, चुपचाप उसके साथ संबंध बनाता है और यह बात अपनी पहली पत्नी से छिपाता है. इस तरह एक कमजोर औरत के गाल को मजबूती से पकड़कर कहना कि कांप काहे रही हो? पुरुषवादी सामंती मानसिकता का ही परिचायक है.

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जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी अपने नेता राहुल गांधी को जननायक मानती है. सुप्रिया पार्टी के नेता की छवि को लेकर जिम्मेदार भी हैं. पर एक खलनायक से वे अपने जननायक के प्रतीक के रूप में दिखाने की जरूरत क्या थी? सुप्रिया को सरदार खान के किरदार में अगर राहुल गांधी का अक्स ही दिख रहा था तो उन्हें हिमंता के रूप में रामाधीर सिंह को दिखाना चाहिए था. रामाधीर सिंह भी फिल्म में खलनायक, जिसके खिलाफ सरदार खान गैंगवार लड़ रहा है.

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