झारखंड में चंपई सरकार को भाजपा से ज्‍यादा सोरेन परिवार की अंतर्कलह से खतरा

सीता सोरेन और बसंत सोरेन की नाराजगी का ही कारण रहा कि कल्पना सोरेन की ताजपोशी नहीं हो सकी और परिवार के हाथ से सत्ता निकल गई. अब चंपई सीएम तो बन गए हैं पर परिवार के अंतर्कलह के बीच वो बीजेपी के आगे कब तक पार्टी की चमक बरकरार रख सकेंगे.

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बसंत सोरेन -हेमंत सोरेन और सीता सोरेन के बीच है वर्चस्व की लड़ाई बसंत सोरेन -हेमंत सोरेन और सीता सोरेन के बीच है वर्चस्व की लड़ाई

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 4:58 PM IST

झारखंड सीएम कौन होगा, इस पहेली को जिस तरह सुलझाया गया है, उसने इस आदिवासी अंचल के सबसे रसूख वाले परिवार में कई दरारें डाल दी हैं. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद उनके उत्‍तराधिकार को लेकर शिबू सोरेन के तीनों बेटों के परिवार आमने-सामने आए. इस कलह को रोकने का तात्‍कालिक उपाय चंपई सोरेन के रूप में ढूंढा गया, लेकिन वो इस कलह का स्‍थायी समाधान नहीं हैं. सरकार और पार्टी पर नियंत्रण का खेल तो अब शुरू होगा. समर शेष है.

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झारखंड की राजनीति में कहा जाता है कि अगर दुर्गा सोरेन जिंदा होते तो हेमंत सोरेन की जगह पर वो ही झारखंड के मुख्यमंत्री बने होते. इसी बात को महसूस करते हुए सीता सोरेन अपने आपको को सियासी तौर पर स्थापित करने में जुटी रहीं. सीता सोरेन की दोनों पुत्रियों ने अपने पिता के नाम पर समानांतर संगठन दुर्गा सोरेन सेना खड़ा किया है. सीता सोरेन पहले कह चुकी हैं कि शिबू सोरेन और दुर्गा सोरेन के खून-पसीने से खड़ी की गई जेएमएम वर्तमान में दलालों और बेईमानों के हाथ में चली गई है. दूसरी ओर हेमंत के जेल जाने के बाद शिबू सोरेन के तीसरे बेटे बसंत सोरेन की भी महत्वाकांक्षाएं उबाल मार रही हैं. जाहिर है कि जब परिवार और सरकार में इतना कुछ चल रहा है राजनीतिक खेला की गुंजाइश तो बनेगी ही.

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क्‍या सीता सोरेन बगावत कर सकती हैं?

झारखंड की सियासत में हेमंत सोरेन की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है. पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाने में मिली असफलता के चलते उन्होंने चंपई सोरेन को झारखंड का मुख्यमंत्री तो बना दिया पर लगता है कि बाजी उनके हाथ में ज्यादा दिन नहीं रहने वाली है. उनकी भाभी सीता सोरेन जो कांग्रेस-जेएमएम सरकार के खिलाफ बहुत पहले से मोर्चा खोलती रही हैं उन्हें कब तक चंपई सोरेन की बादशाहत पसंद आएगी, यह देखने वाली बात होगी. हेमंत सोरेन और सीता सोरेन के बीच के सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं. अक्सर वे अपनी मांगों को लेकर वो सरकार को असहज करती रही हैं. सीता सोरेन के बगावती तेवर के कारण ही बीजेपी को उनमें 'अपर्णा यादव' तो कभी 'एकनाथ शिंदे' होने की गुंजाइश नजर आती रही है.

जेएमएम के टिकट पर तीसरी बार झारखंड विधानसभा में पहुंचीं सीता झारखंड की सियासत में मजबूत पकड़ रखती हैं. उनका दर्द उस समय से ही है जब हेमंत कैबिनेट में उन्हें जगह नहीं मिल सकी. हेमंत सोरेन के बड़े भाई दुर्गा सोरेन की पत्नी होने के चलते वे खुद को शिबू सोरेन का उत्तराधिकारी मानती रही हैं. कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने के प्रयासों का उन्होंने इसलिए ही विरोध किया कि जब कल्पना बन सकती हैं तो वो क्यों नहीं ? सीता की बात सही भी है. ऐसा राज्य में बहुत से लोग मानते हैं कि सीता के साथ अन्याय हुआ. तीन बार विधायक बनने के बावजूद उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी. चर्चा चली कि चंपई सोरेने सरकार में हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन को डिप्टी सीएम पद दिया जा सकता है, लेकिन सीता सोरेन को तो मंत्री बनाए जाने का भी जिक्र न हुआ.  

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क्यों ऐसा लग रहा है कि सीता सोरेन एकनाथ शिंदे बन सकती हैं

सीता ने राज्य में कोयले के अवैध खनन को लेकर विधानसभा से लेकर सड़क तक आवाज उठायी है. हेमंत सोरेन के कई खास लोगों के खिलाफ खुलकर सरकार और संगठन को चिट्ठी लिख चुकी हैं. चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा होने के बाद रीडिफ वेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू को पढ़कर ऐसा लग रहा है जैसे भूखी शेरनी के सामने से निवाला हटा लिया गया है. उनसे पूछे जाने पर कि क्या चंपई एक स्थिर सरकार दे सकेंगे, वे कहती हैं कि मैं अभी रांची पहुंची नहीं हूं वहां पहुंचकर, विधायकों से बातचीत  करके ही कुछ बता सकूंगी. क्या चंपई सोरेन के नाम से आप संतुष्ट हैं, पर उनका कहना है कि ये पार्टी का फैसला है और उन्हें इस बारे में कुछ नहीं कहना है.

इस इंटरव्यू में खुलकर कहती हैं कि उन्हें दुख केवल यह है कि हम अपने पति के झारखंड को जापान जैसा बनाने का सपना अब तक पूरा नहीं कर सके. दुर्भाग्य से उनके बाद मुझे कैबिनेट में रहने और झारखंड को जापान जैसा बनाने का मौका नहीं मिला. यह पूछे जाने पर कि क्या आपको लगता है कि ईडी भाजपा के इशारे पर काम कर रही है, जैसा कि कई विपक्षी दलों को लगता है, और राज्य में सरकार बनाने के लिए हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया है? सीता सोरेन कहती हैं कि मैं इस समय इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी. यह एक लाइन बताती है कि वो बीजेपी के खिलाफ कुछ भी बोलने से वो बच रही हैं. इसी तरह हेमंत सोरेन को झूठे आरोप में गिरफ्तार किए जाने के सवाल पर भी वो कहती हैं कि मैं इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. आम तौर पर अपनी पार्टी के किसी खास नेता के बारे में ऐसे संवेदनशील मौके पर इस तरह का जवाब बताता है कि आग लग चुकी है बस हवा मिलने की देरी है.

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बसंत सोरेन का दबाव

शिबू सोरेन के तीसरे पुत्र बसंत सोरेन को भी कभी कैबिनेट में जगह नहीं मिली. अब अपनी भाभी सीता सोरेन की तरह उनकी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बलवती हो रही हैं. उन्हें भी लगता है कि झामुमो उनके परिवार की पार्टी है तो उन्हें मुख्यमंत्री नहीं तो कम से कम डिप्टी सीएम तो बनना ही चाहिए. चंपई सोरेन मंत्रिमंडल में उन्हें डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा है पर अभी उन्हें कुछ नहीं मिला है.  हालांकि जैसा बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे ने अपने ट्वीट में लिखा था कि शिबू सोरेन चंपई के नाम पर सहमत नहीं थे. उनकी इच्छा थी कि बसंत सोरेन ही मुख्यमंत्री बने.

शिबू सोरेन पहले भी अपने परिवार के किसी सदस्य को सीएम बनाने के चक्कर में झारखंड की सत्ता गंवा चुके हैं. भारत में आज भी राजनीतिक परिवारों में पुरुषों को ही उत्तराधिकार देने की चाहत रहती है. लालू यादव के परिवार में मीसा भारती के बजाय तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव को तवज्जो मिला. यही नहीं गांधी परिवार में भी सोनिया गांधी ने हमेशा से प्रियंका गांधी की जगह राहुल गांधी को महत्व दिया. बसंत पार्टी की यूथ इकाई के प्रधान रहे हैं. शुक्रवार दोपहर में चंपई सोरेन ने 2 मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण कर लिया है पर बसंत का नंबर नहीं लगा है. हो सकता है कि मंत्रीमंडल विस्तार में बसंत और सीता सोरेन को बर्थ मिल जाए पर तब तक के लिए तो बीजेपी को मसाला मिल ही गया है. 

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जेल में बंद हेमंत का कितना दखल रह जाएगा

हेमंत सोरेन ही नहीं देश का हर नेता चाहता है कि उसके जेल जाने के बाद भी पार्टी और सरकार की कमान उसके हाथ से न छूटे. केजरीवाल तो जेल से ही सरकार चलाने के लिए जनमत जुटा रहे थे. लेकिन, अतीत में देखा गया है कि जब कोई चारा नहीं बचता है तो पार्टी के किसी कमजोर और आज्ञाकारी नेता को सत्‍ता की खड़ाऊं सौंप दी जाती है. हेमंत सोरेन भी अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन जब ये संभव न हुआ तो विश्वसनीय चंपई पर दांव खेला. पर एक अतीत यह भी है कि देश की राजनीति में कई चेलों ने अपने गुरुओं को चूरण चटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली. हेमंत सोरेन नहीं चाहते हैं कि उनकी अनुपस्थिति में परिवार के किसी दूसरे सदस्य को मंत्रिमंडल में जगह मिले और वो सदस्‍य लाइम लाइट में आ जाए. चार साल के अपने कार्यकाल में हेमंत सोरेन ने शायद इसी लिए ही अपने भाई बसंत और भाभी सीता सोरेन को कभी उभरने का कोई मौका नहीं दिया था.

अब हेमंत जेल में हैं और सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने विश्‍वस्‍तों के भरोसे. एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ परिवार की अंतर्कलह. चंपई सरकार को सुरक्षित रखने के लिए 43 विधायकों को हवाई जहाज से हैदराबाद भेजा गया है. कहा जा रहा है कि कुछ विधायक बहुमत वाले दिन चंपई सरकार का खेल खराब कर सकते हैं. इतना ही नहीं, आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी की कमान को लेकर भी सिरफुटव्‍वल होना तय है. हेमंत के जेल में रहते सीता सोरेन और बसंत सोरेन के लिए राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल होंगी. यदि परिवार में बगावत हुई, तो आश्‍चर्यजनक नहीं होगा.

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