बिहार ही नहीं यह पूरे देश की कहानी है कि अगर किसी महिला को विधानसभा या संसद की चाहरदीवारी के अंदर जाना है तो उस पर किसी गॉडफादर का हाथ होना ही चाहिए. बिना राजनीतिक विरासत वाली महिलाओं की राजनीति में सफलता बहुत मुश्किल रही है. आज की तारीख में भी बिहार में जिन महिलाओं को विधानसभा और संसद में पहुंचने का सुख प्राप्त हुआ है वो किसी न किसी तरह किसी राजनीतिक विरासत से जुड़ी हुईं हैं या किसी खास नेता का उनको वरदहस्त प्राप्त है.
पर बिहार की राजनीति में बिना किसी पारिवारिक राजनीतिक विरासत के महिलाओं का उदय एक नई सुबह है. ये महिलाएं पेशेवर पृष्ठभूमि से आ रही हैं जैसे कोई वकील है तो कोई गायिका है, कोई सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार है या एक्टिविस्ट हैं. और ये अपनी नई छवि, सोशल मीडिया प्रभाव और मुद्दों पर फोकस से राजनीतिक हलचल मचा रही हैं.
इतना ही नहीं ये महिलाएं बड़ी राजनीतिक पार्टियों के लिए जरूरत बन रही हैं. पार्टियां इन नए चेहरों को टिकट देकर युवा और महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं. पर महती सवाल यही है कि क्या एक ऐसे राज्य में जहां बाहुबल राजनीति में स्थापित होने और सफल होने की पहली शर्त है वहां इन लड़कियों को सफलता मिलेगी ?
1. ऋतु जायसवाल: बीजेपी और आरजेडी दोनों की हवा टाइट
परिहार सीट से दूसरी बार खुद को आजमा रहीं ऋतु जायसवाल बिहार की राजनीति में एक विद्रोही चेहरा हैं. राजद की महिला प्रकोष्ठ की पूर्व अध्यक्ष, वे सीतामढ़ी जिले के परिहार विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय मैदान में हैं. उनकी कहानी संघर्ष की है. कोई राजनीतिक परिवार नहीं, बल्कि सामाजिक कार्य से जुड़ीं. 2020 में वे राजद से चुनाव लड़ी पर मात्र डेढ़ हजार वोटों से चुनाव हार गईं. लेकिन इस बार पार्टी ने मुकेश साह को चुना. ऋतु ने हिम्मत दिखाई और बगावत कर दी. 19 अक्टूबर को नामांकन दाखिल करते हुए उन्होंने कहा, मैं महिलाओं के सम्मान के लिए लड़ रही हूं. राजद ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया, लेकिन यह उनकी छवि को और मजबूत कर गया है.
अगर हम परिहार विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां पर यादव, बनिया और अतिपिछड़ा वोटरों का दबदबा है. इस क्षेत्र में करीब 15 फ़ीसदी उम्मीदवार वोटर यादव समाज से आते हैं. जबकि 10 फीसदी बनिया समुदाय के वोटर हैं. 10 फीसदी मुसलमान वोटर भी क्षेत्र में हैं. पर ऋतु जायसवाल सभी वर्गों में अपना घुसपैठ बनाया हुआ है.
यह जायसवाल की दमदार उपस्थिति ही है कि इस बार यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर तेजस्वी यादव तक को उतरना पड़ रहा है. एक तरफ भाजपा अपनी परंपरागत सीट बचाने में जुटी है, दूसरी तरफ RJD यहाँ अपनी ‘वापसी’ का बिगुल बजाना चाहती है. परिहार, इस बार सिर्फ चुनाव नहीं बल्कि बिहार की सत्ता की धड़कन बन गया है.
पत्रकार अमरेंद्र किशोर अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि रितु जायसवाल की कहानी गांव की गलियों से निकलकर विधानसभा के फलक तक पहुंचने की है. वे पहले मुखिया थीं और अपने कार्यकाल में परिहार के गाँवों में सड़क, पानी और शिक्षा से जुड़े कई छोटे-बड़े काम किए. गांव की महिलाएं उन्हें ‘मुखिया दीदी’ कहती हैं. यही उनकी पहचान और सबसे बड़ा पूँजी है. उन्होंने खुद को सत्ता के किसी प्रतीक से नहीं, बल्कि जनसंपर्क से जोड़ा. यही वजह है कि जब उन्होंने टिकट छोड़कर निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरने का निर्णय लिया, तो यह फैसला पूरे बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर गया. रितु का निर्दलीय होना न आरजेडी को रास आ रहा है और न भाजपा को.
रितु जायसवाल की जीत का अर्थ सिर्फ एक सीट हासिल करना नहीं होगा, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक विजय होगी कि पार्टी की राजनीति से ऊपर भी एक रास्ता है. अगर वे जीतती हैं, तो यह उस बिहार की जीत होगी जो भ्रष्ट राजनीति और जातीय गणित से ऊपर उठना चाहता है.
2-दिव्या गौतम, मेरा संघर्ष मेरी पहचान है, न कि रिश्ते
दिव्या गौतम का नाम सुनते ही सुशांत सिंह राजपूत की चचेरी बहन का ख्याल आता है, लेकिन वे इसे खारिज करती हैं. वह कभी भी चुनाव प्रचार के दौरान सुशांत सिंह राजपूत की बहन होने का फायदा नहीं उठाना चाहती हैं. वो कहती हैं कि मेरा संघर्ष मेरी पहचान है, न कि रिश्ते.
दीघा (पटना) से भाकपा-माले की उम्मीदवार दिव्या थिएटर आर्टिस्ट, पूर्व पत्रकार और पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन की उम्मीदवार रह चुकी हैं. कोई राजनीतिक विरासत नहीं . वो सामाजिक आंदोलनों से जुड़ीं, जैसे जेंडर इक्वालिटी और छात्र हड़तालें आदि से वही उनकी पहचान बन गया. 13 अक्टूबर को टिकट मिलने के बाद अब वे महागठबंधन का चेहरा हैं.
दीघा शहरी सीट है, जहां से भाजपा के संजीव चौरसिया बीजेपी के उम्मीदवार हैं. एंटी-इनकंबेंसी, बेरोजगारी, बाढ़ और शिक्षा के मुद्दे को दिव्या अपने अभियान में आवाज दे रही हैं. दिव्या थिएटर शो के जरिए मुद्दे उठा रही हैं, महिलाओं के घर-घर जाकर बात कर रही हैं. उनका थीम सॉन्ग 'परिवर्तन की लहर' वायरल है. प्रतिद्वंद्वी संजीव चौरसिया से कायस्थ वोटों की नाराजगी,और जन सुराज का तीसरा कोण के चलते दिव्या को अपनी जीत की उम्मीद है. अगर महागठबंधन एकजुट रहा तो वे विजेता बन सकती हैं.
3-मैथिली ठाकुर: मिथिला की बेटी, अलीनगर में सांस्कृतिक जंग
25 वर्षीय मैथिली ठाकुर बिहार की सबसे युवा उम्मीदवार हैं. लोक गायिका, सोशल मीडिया स्टार और भाजपा की 'मिथिला की बेटी'. दरभंगा के अलीनगर से, वे कोई राजनीतिक घराने से नहीं, बल्कि संगीत की दुनिया से. उनके गाने 'मिथिला का मैग्नेटो' वायरल है. उनके प्रस्ताव अलीनगर का नाम 'सीतानगर' करने पर बवाल मचा हुआ है.
मैथिली के बीजेपी में शामिल होने और चुनाव लड़ने की खबरों से बहुत सारे लोग काफी खुश हुए तो वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी थे जो नाराज थे, उन्हीं में से एक हैं बीजेपी विधायक मिश्री लाल यादव, जिन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी दलितों और पिछड़ों की उपेक्षा कर रही है.
मैथिली ठाकुर की दिक्कत यह है कि वह ब्राह्मण समुदाय से हैं, और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी आरेजडी उम्मीदवार बिनोद मिश्र भी ब्राह्मण हैं, जो उम्र में उनसे करीब 35 वर्ष बड़े हैं. अलीनगर राजद का गढ़ रहा, यहां 2.8 लाख मतदाता, ब्राह्मण-यादव समीकरण उनका मजबूत पक्ष है. भाजपा की रणनीति है कि फ्रेश फेस से 'आउटसाइडर' टैग हटाना. इंटरव्यू में मैथिली कहती हैं कि मैं अलीनगर की बेटी हूं. अलीनगर में अगर आप किसी पत्रकार या कार्यकर्ता से पूछेेंगे कि मिथिला जीत रही हैं या हार रही हैं तो आप को कुछ भी सुनने को मिल सकता है. पर अगर आप सीधे गांव वालों से पूछेंगे तो उत्तर यही मिलेगा कि मिथिला की बेटी मैथिली चुनाव जीत रही हैं.
4- छोटी कुमारी, खेसारी को हराने की जिम्मेदारी
छोटी कुमारी बिहार की राजनीति में एक ऐसी शख्सियत हैं, जो ग्रामीण भारत की सादगी और संघर्ष की प्रतीक बनी हुई हैं. 35 वर्षीय छोटी कुमारी, जिनका पूरा नाम छोटी देवी कुमारी है, सारण जिले के छपरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की प्रत्याशी हैं. बिना किसी राजनीतिक विरासत के, वे अपनी मेहनत और सामाजिक कार्य से सियासत की दहलीज पर कदम रख चुकी हैं. उन्होंने छपरा में अपनी उम्मीदवारी से भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव की नींद हराम कर दी है.
छोटी कुमारी का जन्म वैश्य समुदाय में हुआ, जहां गरीबी और सामाजिक बाधाओं ने उन्हें मजबूत बनाया. सारण के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली छोटी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर पूरी की. ग्रामीण विकास के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था. वे महिलाओं के सशक्तिकरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर केंद्रित सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहीं. स्विट्जरलैंड स्थित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन से 'महिलाओं की रचनात्मकता' पुरस्कार प्राप्त कर चुकीं छोटी ने स्थानीय स्तर पर स्वयं सहायता समूहों (SHG) को मजबूत करने में योगदान दिया है. उनकी पहचान एक ऐसी कार्यकर्ता के रूप में है, जो गांव-गांव जाकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती है.
राजनीतिक यात्रा में छोटी कुमारी का प्रवेश भाजपा के महिला मोर्चा से हुआ. वे प्रदेश प्रवक्ता के रूप में सक्रिय रहीं और जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी हैं. 2020 के चुनावों में उन्होंने संगठनात्मक स्तर पर काम किया, जहां ग्रामीण मुद्दों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रवासन पर फोकस किया. भाजपा ने उन्हें फ्रेश फेस के रूप में चुना, क्योंकि छपरा जैसे क्षेत्र में विकास की छवि मजबूत करने की जरूरत थी. पिछले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा की लगातार जीत के बावजूद, छोटी की उम्मीदवारी एनडीए की 'महिला सशक्तिकरण' रणनीति का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि मैं न नेता, बल्कि बेटी और बहन बनकर काम करूंगी.
विश्लेषकों के अनुसार, एनडीए के विकास कार्यों और मोदी-नीतीश की छवि से छोटी की जीत की संभावना 40-45% है. अगर वे जीतीं, तो बिहार में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी.
5- इंदू गुप्ता: जन सुराज की नई उम्मीद, हसनपुर में सामाजिक न्याय
इंदू गुप्ता बिहार की राजनीति में एक ऐसी शख्सियत हैं, जो सामाजिक न्याय की लहर को नई दिशा दे रही हैं. 40 वर्षीय इंदू गुप्ता जन सुराज पार्टी की टिकट पर समस्तीपुर जिले के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं. बिना किसी राजनीतिक गॉडफादर या पारिवारिक विरासत के, वे अपनी सामाजिक सक्रियता से हलचल मचा रही हैं.पहले चरण के मतदान के बीच हसनपुर में उनकी उम्मीदवारी ने स्थानीय राजनीति को त्रिकोणीय रंग दे दिया है.
इंदू गुप्ता का जन्म समस्तीपुर के एक साधारण परिवार में हुआ. उन्होंने स्थानीय स्तर पर सामाजिक कार्य से शुरुआत की, जहां महिलाओं के अधिकार, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन पर फोकस किया. कोई राजनीतिक बैकग्राउंड न होने के बावजूद, वे वर्षों से ग्रामीण इलाकों में स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से काम करती रहीं. इंदू ने गांव-गांव जाकर मां-बहनों से रिश्ता जोड़ा.यह उनकी सादगी और जमीनी जुड़ाव को दर्शाता है. प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा के दौरान इंदू उनसे प्रभावित हुईं और पार्टी जॉइन कीं. किशोर ने कहा, इंदू जैसी कार्यकर्ता ही बिहार को बदलेंगी.
संयम श्रीवास्तव