चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने से बिहार के राजनीतिक समीकरणों पर क्या फर्क पड़ेगा?

केंद्रीय मंत्री होते हुए चिराग पासवान का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी उनकी दूरगामी रणनीति का हिस्सा लगता है, और ये वहां के राजनीतिक समीकरणों को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है. चिराग पासवान का नया एजेंडा नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है.

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चिराग पासवान बिहार चुनाव में फिर से 'खेला' करेंगे, देखना है इस बार उनकी भूमिका 2020 से कितना अलग होगी? चिराग पासवान बिहार चुनाव में फिर से 'खेला' करेंगे, देखना है इस बार उनकी भूमिका 2020 से कितना अलग होगी?

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

चिराग पासवान भी प्रशांत किशोर की ही तरह बिहार की राजनीति में काफी स्कोप देख रहे हैं. प्रशांत किशोर बिहार में बदलाव की बात कर रहे हैं, और चिराग पासवान बिहार को पिछड़े राज्य वाली कैटेगरी से उठाकर तरक्की कर रहे देश के दूसरे राज्यों के बराबर लाने की बात कर रहे हैं. 

केंद्रीय मंत्री होते हुए भी चिराग पासवान बार बार बता रहे हैं कि वो बिहार की ही राजनीति करना चाहते हैं, क्योंकि ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे में जो सपना देख रहे हैं, वो दिल्ली में बैठकर पूरा नहीं हो सकता है - और ये स्टैंड उनके पिता राम विलास पासवान से पूरी तरह अलग है. 

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छत्तीसगढ़ में एक निजी कार्यक्रम में रायपुर पहुंचे चिराग पासवान कहते हैं. मैं चाहता हूं कि मेरा बिहार विकसित राज्य की श्रेणी में बराबरी पर आकर खड़ा हो… तीसरी बार सांसद बनने के बाद मुझे एहसास हो रहा है कि दिल्ली में रहकर ये संभव नहीं है… ऐसे में ये इच्छा मैंने पार्टी के सामने रखी है कि अब मैं जल्द बिहार वापस जाना चाहता हूं… अगर पार्टी चाहेगी, तभी ऐसा होगा.

एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत में चिराग पासवान ने बताया, छत्तीसगढ़ में धीरे-धीरे संगठन मजबूत कर रहे हैं… बिहार से निकलकर धीरे-धीरे कई राज्यों में पार्टी का विस्तार कर रहे हैं… नगालैंड में दो विधायक और झारखंड में एक विधायक है… आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी का मजबूती से विस्तार हो सके, इस सोच के साथ काम करेंगे.

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कैसी है बिहार चुनाव की तैयारी?

जिस तरह चिराग पासवान और उनकी पार्टी बिहार चुनाव की तैयारी कर रही है, दो तरह की बातें नजर आ रही हैं. 

हाल ही में चिराग पासवान ने बिहार के मुख्यमंत्री आवास जाकर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, और जो बात बोली थी, वही दोहरा रहे हैं. कहते हैं, बिहार में मुख्यमंत्री पद की कोई वैकेंसी नहीं है… बिहार में मौजूदा नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, और विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भी वही मुख्यमंत्री बनेंगे.

क्या चिराग पासवान का ये बयान सुनकर नीतीश कुमार को निश्चिंत हो जाना चाहिये? 

हरगिज नहीं. राजनीति में ऐसा बिल्कुल नहीं होता. और, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जो चिराग पासवान ने किया, और उसके बाद जो नीतीश कुमार ने किया, दोनों मेें से कोई भी शायद ही भूला होगा - और दोनों के साथ बीजेपी ने जो चालें चलीं, और जितना डैमेज किया. 

पहले की बातें छोड़ दें, तो अब करीब करीब साफ हो चुका है कि चिराग पासवान का विधानसभा चुनाव लड़ना तय है - और वो भी किसी सुरक्षित सीट से नहीं, बल्कि सामान्य सीट से. 

चिराग पासवान की ये रणनीति थोड़ी आगे, और अलग लाइन पर बढ़ती हुई नजर आ रही है. खासकर ऐसे दौर में जब राष्ट्रीय जनगणना के साथ जाति जनगणना कराया जाना तय हो चुका हो - मतलब, घोर जातीय राजनीति के दौर में चिराग पासवान का कदम आगे बढ़ाकर चुनाव मैदान में उतरना, एक बड़ा संदेश तो है ही. 

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लेकिन, सवाल है कि चिराग पासवान क्या सिर्फ बिहार से खास लगाव के कारण ही विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं? 

ऐसे सवाल का उत्तर सिर्फ हां या ना में संभव नहीं लगता. थोड़ा ध्यान दें तो पांच साल बाद भी चिराग पासवान की रणनीति में मकसद नहीं बदला है, तरीका अलग जरूर हो सकता है. 

अब तक सिर्फ एक बात साफ नहीं हो पाई है कि चिराग पासवान सब कुछ अपने मन से कर रहे हैं, या 2020 की तरह 2025 में भी मोदी के हनुमान बने हुए हैं?

चिराग के चुनाव लड़ने का तात्कालिक मकसद क्या है?

चिराग पासवान अभी तो यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि विधानसभा का चुनाव वो अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को फायदा दिला सकें, इसलिए लड़ रहे हैं. 

सही बात है. हर कोई राजनीति अपने फायदे के लिए ही करता है. लेकिन, क्या चिराग पासवान ने 2020 में भी ऐसा ही किया था? सभी का जवाब एक ही होगा, नहीं - लेकिन, इस बार क्या इरादा है? तस्वीर थोड़ी धुंधली है, इसलिए जवाब भी सीधा नहीं मिल सकता.

चिराग पासवान का कहना है कि अगर उनके चुनाव लड़ने से पार्टी को फायदा होता है, तो जरूर लड़ेंगे. और, इसके लिए वो बीजेपी की मिसाल देते हैं. कैसे 2023 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने केंद्रीय नेताओं को मैदान में उतार दिया था, और फायदे में रही. 

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केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान कहते हैं, मेरे चुनाव लड़ने से मेरी पार्टी को मजबूती मिलती है… अगर मेरा स्ट्राइक रेट बेहतर होता है, तो हम ये काम करेंगे.

लेकिन क्या ये इतना ही भर है, या सीट शेयरिंग के लिए बीजेपी पर दबाव बनाने का भी इरादा है. अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट से लगता है, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों ही एनडीए में अपने तरीके से दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ज्यादा सीटें हासिल करने के चिराग पासवान के दावे में वो लोकसभा चुनाव 2024 में अपने स्ट्राइक रेट को आधार बना रहे हैं. 

अखबार ने बीजेपी के एक सूत्र के हवाले से लिखा है, चिराग पासवान के 5 सांसद हैं, और हर सीट के हिसाब से वो 6 विधानसभा सीटें चाहते हैं. कुल 30 सीटें. लेकिन, बीजेपी के सूत्र का कहना है, तीस तो संभव नहीं है, लेकिन 20-25 सीटों पर विचार हो सकता है. 

नीतीश पर खतरा कम नहीं हुआ है, तेजस्वी भी निशाने पर

मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए कई सर्वे नीतीश कुमार के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं. चिराग पासवान भले कहते फिरें कि चुनाव नतीजे आने के बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन ये पक्का नहीं है. क्योंकि, नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव से लगातार टक्कर मिल रही है. 

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और इस बीच ये भी देखा गया है कि मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में चिराग पासवान की लोकप्रियता भी लगातार बढ़ रही है. मुख्य मुकाबला तो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव में ही है, लेकिन होड़ में चिराग पासवान और प्रशांत किशोर भी शामिल पाये गये हैं. 

चिराग पासवान की बात करें, तो फरवरी, 2025 में उनकी लोकप्रियता 3.7 फीसदी थी, जबकि अप्रैल में 5.8 फीसदी - अब बढ़कर मई में ये 10.6 फीसदी  हो गई है. 

इंडिया टुडे सीवोटर सर्वे के मुताबिक, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी आ रही थी, लेकिन अब स्थिर हो चुकी है. फिलहाल उनकी लोकप्रियता 18.4 फीसदी दर्ज की गई है. 

नीतीश कुमार के लिए तेजस्वी यादव की लोकप्रियता 36.9 फीसदी होना सबसे ज्यादा चिंता की बात है. 
और, नीतीश कुमार की चिंता ये भी है कि जन सुराज पार्टी के साथ चुनाव मैदान में उतरने जा रहे प्रशांत किशोर की लोकप्रियता भी 16.4 फीसदी हो चुकी है. 

देखा जाये तो मुख्यमंत्री पद की रेस में पहले नंबर पर तेजस्वी यादव, दूसरे नंबर पर नीतीश कुमार, तीसरे नंबर पर प्रशांत किशोर और चौथे स्थान पर चिराग पासवान हैं. 

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार को हर वक्त टार्गेट करने वाले प्रशांत किशोर की ताजा राय महत्वपूर्ण हो जाती है. चिराग पासवान को लेकर प्रशांत किशोर कहते हैं, 'वो जाति-धर्म की राजनीति नहीं करते, अगर वो राज्य की राजनीति में सक्रिय होते हैं तो ये बिहार के लिए अच्छी बात है. 

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लब्बोलुआब यही है कि चिराग पासवान नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनो के लिए नई चुनौती पेश करने जा रहे हैं, जिसका फायदा वो अपने तो उठा ही सकते हैं, साइड इफेक्ट के रूप में बीजेपी को भी मिल सकता है. 

2020 और 2025 के बिहार चुनाव में फर्क ये होगा कि चिराग पासवान निश्चित तौर पर फायदे में रहेंगे, पिछली बार की तरह घाटे में नहीं - लेकिन चिराग पासवान के मैदान में कूद जाने से नीतीश कुमार को फिर से नुकसान हो सकता है, और तेजस्वी यादव को भी.

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