मराठी अस्मिता का आखि‍री दांव? BMC चुनाव में ठाकरे बंधुओं का मास्‍टर स्‍ट्रोक या आत्‍मघाती कदम

भारतीय संस्‍कृति में किसी परिवार का टूटना अच्‍छा नहीं माना जाता. राजनीतिक कारणों से ही सही, बाल ठाकरे के रहते उद्धव और राज ठाकरे का अलग हो जाना भी दुखी करने वाला था. लेकिन, अब 20 साल बाद वे जिस गरज से साथ आए हैं, वो स्‍वाभाविक मिलन से ज्‍यादा, मजबूरी नजर आ रहा है.

Advertisement
उद्धव और राज ठाकरे बीएमसी चुनाव से पहले साथ आए हैं, लेकिन दोनों को इसका कितना फायदा होगा? उद्धव और राज ठाकरे बीएमसी चुनाव से पहले साथ आए हैं, लेकिन दोनों को इसका कितना फायदा होगा?

धीरेंद्र राय

  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:44 PM IST

विधानसभा चुनाव के बाद पंचायत चुनाव में बुरी किरकिरी होने के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे मुंबई महानगरपालिका चुनाव (BMC elections) से पहले जिस भाषा, भाव और तेवर के साथ सामने आए हैं, वह कोई नई स्क्रिप्‍ट नहीं है. यह शिवसेना का पुराना राग है, जिसे सबसे पहले बालासाहेब ठाकरे ने गाया था- मराठी, महाराष्ट्र और मुंबई. फर्क बस इतना है कि तब यह उभरते मराठी मध्यवर्ग की आवाज थी, और आज यह सिमटती राजनीतिक जमीन को बचाने की अंतिम कोशिश लगती है.

Advertisement

12 मिनट की संयुक्त प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में उद्धव और राज ठाकरे ने यूं तो कई बातें कहीं, लेकिन उनका फोकस स्‍पष्‍ट करने के लिए दो बयानों का हवाला देना काफी है. 'दिल्‍ली में जो दो लोग (मोदी-शाह) बैठते हैं, उनके मंसूबे हैं कि मुंबई महाराष्ट्र से अलग हो जाए' और 'मराठियों के बलिदान हम भूले नहीं हैं'. ठाकरे बंधुओं की ये बातें राजनीतिक नैरेटिव कम और इमोशनल उकसावा ज्‍यादा हैं. मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने का न तो कोई संवैधानिक प्रस्ताव है, न ही केंद्र सरकार की ओर से कोई आधिकारिक संकेत. हां, मराठी भाषा को लेकर पिछले दिनों विवाद जरूर हुआ, जब भारत सरकार की नई शिक्षा पॉलिसी में थ्री लैंग्‍वेज फॉर्मूला पेश किया गया. जो वापस भी ले लिया गया. लेकिन, इसी के विरोध में ठाकरे बंधु 20 साल बाद एक मंच पर आए थे. पिछले दिनों पंचायत चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की मनसे को ज‍ितनी बुरी हार का सामना करना पड़ा है, माना जा रहा है कि 'मराठी अस्मिता' का राग बार-बार दोहराया जाना भय पैदा करने के अलावा कुछ नहीं.

Advertisement

राज ठाकरे द्वारा शिवसेना(यूबीटी) -मनसे गठबंधन की घोषणा करते हुए यह कहना कि 'जिस युति का सबको इंतजार था, वह आज हो गई', अपने आप में स्वीकारोक्ति है कि दोनों दल अलग-अलग रहकर अप्रासंगिक होते जा रहे थे. यह गठबंधन ताकत का नहीं, मजबूरी का परिणाम है.

मराठी आबादी का बुलबुला

मुंबई में मराठी-भाषी लोगों की आबादी ठाकरे बंधुओं की इस पूरी राजनीति की सबसे बड़ी दुश्मन है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, महानगर में ऐसे लोग‍ ज‍िनकी मातृभाषा मराठी है, वह कुल आबादी का 35 से 40 प्रतिशत हैं. शेष आबादी में गुजराती व्यापारी वर्ग, उत्तर भारतीय श्रमिक, दक्षिण भारतीय और मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. बीएमसी चुनाव भावनाओं से नहीं, वार्ड-स्तरीय गणित से जीते जाते हैं. मराठी अस्मिता का कार्ड कुछ वार्डों में असर डाल सकता है, लेकिन पूरे मुंबई में सत्ता की चाबी नहीं दिला सकता. बल्कि कुछ इलाकों में तो यह मुद्दा उल्‍टा  ध्रुवीकरण भी कर सकता है.

विरोधी भी तो मराठी भाषी ही हैं

इस रणनीति की दूसरी कमजोरी यह है कि ठाकरे बंधुओं के प्रमुख विरोधी भी उतने ही 'मराठी मानुस' हैं, जितना वे खुद दावा करते हैं. देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार मराठी हैं, और धाराप्रवाह मराठी बोलते हैं. वे भी खुद को महाराष्ट्र हितों का रक्षक बताते हैं. ऐसे में भाजपा को 'गैर-मराठी पार्टी' बताने की कोशिश राजनीतिक रूप से बेईमानी और जमीनी हकीकत से दूर है. हां, ये मुद्दा बंगाल में चल सकता है जहां ममता बनर्जी बीजेपी को बाहरी पार्टी के रूप में संबोधित करती है. इसके उलट बीजेपी की मुंबई में पहले से ही गहरी पकड़ है.

Advertisement

उन मराठियों का क्‍या जो हिंदुत्‍व और विकास के नाम पर वोट करेंगे

बीएमसी चुनाव में मराठी बनाम गैर-मराठी अभी उतना बड़ा नहीं है. खासतौर पर ऐसे समय में जबकि बीजेपी हिंदुत्‍व और विकास तथा शिंदे बाल ठाकरे की विरासत पर दावा कर रहे हैं. मुंबई के रहने वाले मराठी भाषी भी पिछले चुनावों में हिंदुत्‍व और विकास जैसे मुद्दों पर भाजपा और शिंदे सेना को वोट कर चुके हैं.

बीजेपी के मराठी क्‍यों जाएंगे उद्धव-राज के  पास?

उद्धव ठाकरे का यह बयान कि 'भाजपा में जो असल मराठी होगा, वह हमारी तरफ आ जाएगा', आत्मविश्वास नहीं बल्कि भ्रम को दर्शाता है. सत्ता, संगठन और संसाधन जिसके पास हों, मराठी नेता उसी तरफ जाते हैं. इतिहास इसका साक्षी है. शिंदे गुट इसी राजनीतिक सत्य का उदाहरण है. हां, टिकट न मिलने पर महायुती के कुछ नेता उद्धव और राज ठाकरे के कैंप में जा सकते हैं. और ऐसा आमतौर पर हर चुनाव में होता है. लेकिन, ऐसे 'आवागमन' नैरेटिव नहीं बदल पाते.

ठाकरे बंधुओं की अघाड़ी से दूरी क्‍यों?

बीएमसी चुनाव में ठाकरे बंधुओं ने घोषित तौर पर महाविकास आघाड़ी से दूरी बना ली है. ज‍बकि बीएमसी में कांग्रेस के पास उत्तर भारतीय और मुस्लिम वोटबैंक अच्‍छी खासी तादाद में रहा है. मनसे के साथ गठबंधन मराठी वोटों को आंशिक रूप से जोड़ सकता है, लेकिन गैर-मराठी मतदाताओं में असुरक्षा और दूरी भी पैदा करता है. और इसका नुकसान उद्धव को उठाना पड़ेगा. जबकि इसका सीधा लाभ भाजपा-शिंदे गठबंधन को मिलेगा, जो पहले से ही संगठित और संसाधन-सम्पन्न है.

Advertisement

राज की तरह अब उद्धव के लिए भी सर्वाइवल की लड़ाई

2006 में मनसे का गठन करने के बाद से ही राज ठाकरे हर चुनाव में अपनी प्रासंगिगकता को लेकर जद्दोजहद करते आ रहे हैं. उनकी पार्टी को न तो कभी उल्‍लेखनीय वोट मिले और न ही सीटें. अब विधानसभा के बाद पंचायत चुनाव में करारी हार के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी गंभीर संकट से गुजर रही है. उद्धव के सामने राज की तरह चुनावी राजनीति में पुनर्जन्म का तो नहीं, लेकिन राजनीतिक अस्तित्व बचाने का संघर्ष जरूर है. मनसे वर्षों से सिर्फ शोर की राजनीति तक सिमट चुकी है. उद्धव ठाकरे के साथ आकर उन्हें मंच मिला है, लेकिन एजेंडा और नियंत्रण दोनों शिवसेना (उद्धव) के हाथ में ही रहेंगे. अब चुनौती ये है कि क्‍या उद्धव खुद को और अपने परिवार के नए गठबंधन को नई ऊर्जा दे पाएंगे?

असल सवाल यह नहीं है कि मुंबई का मेयर मराठी होगा या नहीं. जैसा क‍ि ठाकरे बंधु दावा कर रहे हैं. सवाल यह है कि क्या ठाकरे बंधु मुंबई के नागरिकों को यह बता पा रहे हैं कि शहर की टूटी सड़कों, बेतहाशा टैक्स, भ्रष्टाचार, झुग्गी पुनर्विकास और बुनियादी सुविधाओं पर उनकी योजना क्या है. फिलहाल जवाब भावनाओं में छिपाया जा रहा है.

Advertisement

मराठी अस्मिता कभी मुंबई की ताकत थी. आज उसे चुनावी हथियार बनाना इस बात का संकेत है कि राजनीति वर्तमान से कटकर अतीत में शरण ले रही है. बीएमसी चुनाव तय करेगा कि यह अस्मिता अभी भी चुनावी नतीजों के लिए निर्णायक है या ठाकरे बंधुओं के लिए नारे और तालियां बटोरने का उपक्रम.

उद्धव और राज ठाकरे की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस विस्‍तार से यहां देखें -
 

 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement