BJP अपने मुंह फुलाए नेताओं से खूब पेश आती है, भोजपुर में उपजे तनाव से समझिये

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आरके सिंह और राजीव प्रताप रूडी जैसे नेता अपनी जमीन तलाशने में जुटे हुए हैं, क्योंकि बीजेपी में ये हाशिए पर पहुंचा दिए गए हैं - असल में, बागी हो रहे नेताओं से बीजेपी ऐसे ही पेश आती है.

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विधानसभा चुनाव से पहले आरके सिंह और राजीव प्रताप रूडी बिहार में अपनी अलग राजनीति कर रहे हैं. (Photo: File/ITG) विधानसभा चुनाव से पहले आरके सिंह और राजीव प्रताप रूडी बिहार में अपनी अलग राजनीति कर रहे हैं. (Photo: File/ITG)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 25 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:11 PM IST

बीजेपी में बागी नेताओं के साथ ट्रीटमेंट अलग अलग दौर में अलग तरीके से होता रहा है. एक्शन भी होता रहा है, लेकिन बड़े नेताओं पर ऐसा कम ही होता है. जैसे तैसे उनको हाशिए पर डाल दिया जाता है - और किसी को भी हाशिये पर भेज देने का एक आसान और कारगर तरीका होता है, नजरअंदाज कर दिया जाना. 

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बीजेपी में एक विभाजन रेखा समझी जाती है. 2014 के पहले, और उसके बाद. पहले के उदाहरण देखें तो उमा भारती और कल्याण सिंह जैसे नाम मिल जाएंगे. और, बाद की बात करें तो अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा जैसे नेताओं के नाम मिलते हैं. 

2014 में हाशिए पर भेज दिए जाने के लिए एक नया ठिकाना भी बनाया गया था. मार्गदर्शक मंडल. तब मार्गदर्शक मंडल में सबसे सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार जैसे नेताओं को भेजा गया था. एक फेहरिस्त ऐसे नेताओं की भी रही है, जिनको हटाया या नजरअंदाज तो नहीं किया गया, लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा कि भरोसा किया जा रहा हो. ऐसे नेताओं में सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के नाम भी मिलते हैं. 

बिहार में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, और नए दौर में कुछ नए नाम उभर कर सामने आए हैं. मसलन, आरके सिंह और राजीव प्रताप रूडी - देखा तो यही गया है कि जैसे ही बीजेपी को कुछ इधर उधर महसूस होता है, नेतृत्व ऐसे नेताओं की तरफ से मुंह मोड़ लेता है, और धीरे धीरे वे भी अपना अलग रास्ता खोजने लगते हैं.  

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आरके सिंह

नौकरशाही से राजनीति में आए राजकुमार सिंह अक्सर आरके सिंह के रूप में जाने जाते हैं. वो केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. आरके सिंह को पहले बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा रोक देने के लिए जाना जाता था. जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तारी के आदेश दिए थे. और, सेवा से अवकाश लेने के बाद आरके सिंह बीजेपी के हो गए, चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री भी बन गए. आरा लोकसभा सीट से ही वो 2024 का चुनाव सीपीआई-एमएल के सुदामा प्रसाद से हार गए - और अब बिहार सरकार में बीजेपी मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर सवाल उठा रहे हैं.

लेकिन बीजेपी की तरफ से अभी तक आरके सिंह को कुछ भी नहीं कहा गया है. बीच में उनके भोजपुरी स्टार पवन सिंह से मिलने और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में जाने की चर्चा हो रही है, लेकिन वो इस बात से साफ इनकार कर चुके हैं. लेकिन, उनके कुछ वीडियो भी वायरल हुए हैं, जिनमें वो ठाकुरों को हक के लिए लड़ने की सलाह दे रहे हैं.  

राजीव प्रताप रूडी

बिहार की राजनीति में ठाकुरवाद की राह पर राजीव प्रताप रूडी को भी बढ़ते देखा जा रहा है. खासकर कॉन्स्टिट्यूशन क्लब की चुनावी जीत के बाद रूडी का अलग ही अंदाज देखने को मिला है. 

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प्रशिक्षित पायलट और चुनाव मैदान में राबड़ी देवी और उनकी बेटी रोहिणी आचार्य को शिकस्त दे चुके राजीव प्रताप रूडी काफी दिनों से बीजेपी में हाशिए पर चल रहे हैं. बल्कि, तभी से जब उनको केंद्रीय कैबिनेट से हटाया गया था. वो स्किल डेवलपमेंट मिनिस्टर हुआ करते थे. 

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शत्रुघ्न सिन्हा

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके शत्रुघ्न सिन्हा 2014 में भी बीजेपी के टिकट पर बिहार की पटना साहिब सीट से चुनाव लड़े, और जीते भी. 

लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली तो बागी बन गए. बात बात पर बीजेपी नेतृत्व से सवाल करने लगे. बीजेपी ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन 2019 में टिकट नहीं दिया. 

बीजेपी छोड़कर कांग्रेस होते हुए शत्रुघ्न सिन्हा फिलहाल तृणमूल कांग्रेस के आसनसोल से सांसद हैं.  

कीर्ति आजाद

2014 में बीजेपी के टिकट पर दरभंगा से लोकसभा सांसद बने थे, लेकिन दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन में भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ अरुण जेटली को टार्गेट किए जाने के लिए बीजेपी ने सस्पेंड कर दिया था. 

तभी से लगातार बागियों जैसा व्यवहार करने लगे, और जब लगा टिक नहीं पाएंगे तो बीजेपी छोड़ दिया. कांग्रेस में कामयाबी नहीं मिलने पर कीर्ति आजाद का ठिकाना भी दरभंगा ही बना है, और अभी वो बर्धमान-दुर्गापुर के सांसद हैं. 

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यशवंत सिन्हा

खास बात ये है कि कभी बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार रहे यशवंत सिन्हा का भी आखिरी ठिकाना ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ही रही, और विपक्ष के उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने के बाद से नेपथ्य में चले गये.

यशवंत सिन्हा की जिंदगी तो आबाद रही, लेकिन उनकी बगावत का खामियाजा बीजेपी में उनके बेटे जयंत सिन्हा को भुगतना पड़ रहा है.

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