इंसान होना ही अद्भुत है, आपके भीतर है सृष्ट‍ि का स्रोत

लोग हमेशा भगवान, भगवान के लोगों या भगवान की कृपा से वंचित लोगों की बातें करते रहते हैं - क्योंकि उन्होंने मानव होने की विशालता का एहसास नहीं किया है. सृष्टि का स्रोत खुद आपके भीतर फंसा हुआ है, और हर दिन चमत्कार पर चमत्कार कर रहा है.

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सद्गुरु के विचार सद्गुरु के विचार

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 16 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:52 PM IST

कई साल पहले भारतीय सेलफोन कंपनियों ने एक सर्वे किया था. भारत सबसे तेज़ी से बढ़ता सेलफोन बाज़ार है. हर साल, यहां दस करोड़ से ज़्यादा नए सेलफोन जुड़ जाते हैं. सर्वेक्षण में उन्होंने पाया कि सत्ताईस प्रतिशत लोग, सेलफोन की केवल सात प्रतिशत क्षमताओं का उपयोग कर रहे हैं- यह साधारण फोन का सर्वे था, न कि आज के स्मार्टफोन का. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अगर वे नब्बे प्रतिशत सॉफ्टवेयर हटा देते हैं, तो लोगों को पता भी नहीं चलेगा.

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तो, अगर ऐसे छोटे से गैजेट के मामले में यह सच है, तो इस जटिल गैजेट– यानि इंसानी सिस्टम के बारे में आपका क्या अनुमान है? यदि आप मुझसे पूछें कि मनुष्य औसतन अपनी कितनी क्षमता का प्रदर्शन कर रहे हैं, तो मैं कहूंगा कि यह एक प्रतिशत से भी कम है. यदि यह एक या दो प्रतिशत और बढ़ जाता है, तो लोग अचानक सोचते हैं कि आप महामानव हैं. 

मेरे साथ कुछ समय पहले ऐसा हुआ. मैंने एक सार्वजनिक सम्मेलन में हिस्सा लिया, जहां आम तौर पर मेरे आस-पास रहने वाले लोगों के अलावा दूसरे लोग भी मेरे संपर्क में आए. और, मेरा दैनिक कार्यक्रम प्रतिदिन बीस से बाईस घंटे का होता है. मैं यात्रा करता रहता हूं, और गाड़ी चलाता रहा हूं. दिन-रात लाखों अलग-अलग चीजें होती रहती हैं. एक क्षण, मैं एक आध्यात्मिक सत्संग में होता हूं , अगले क्षण, मैं गाड़ी चला रहा होता हूं, अगले क्षण, मैं इमारतें बनाने की बातें कर रहा होता हूं, फिर अगले क्षण, कुछ और. तो लोग बोले, "सद्गुरु, क्या आप महामानव हैं? आप सोते नहीं हैं, आप खाते नहीं हैं, आप निरंतर काम करते रहते हैं." मैंने कहा, "बात महामानव होने की नहीं है. बात यह महसूस करने की है कि मानव होना ही महान चीज़ है."

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जब लोग कहते हैं, "मैं केवल एक इंसान हूं," तो वे केवल अपनी कमजोरियों, अक्षमताओं और अपनी बुराइयों की ओर इशारा कर रहे होते हैं. यह मानव जाति का दुर्भाग्य है - उन्होंने यह महसूस नहीं किया है कि मानव होना महान चीज़ है, इसलिए वे ऊपर आसमान में मौजूद किसी महान चीज़ के बारे में सोच रहे हैं. इसीलिए ईश्वर के बारे में इतनी चर्चा होती है. अभी अगर आप रोटी का एक टुकड़ा खा लें, तो कुछ ही घंटों में आप उसे इंसान में बदल देते हैं. मान लीजिए मैं आपके सामने रोटी का एक टुकड़ा लाकर, उसे एक इंसान में बदल देता हूं - आप क्या सोचेंगे कि मैं कौन हूं? भगवान! पर हर दिन, आप खुद यही कर रहे हैं.

मानव शरीर कहीं बाहर से नहीं बना है. ये भीतर से बनाया जा रहा है. सृष्टि का स्रोत आपके भीतर धड़क रहा है. हर दिन आपके भीतर एक चमत्कारी घटना घट रही है कि आप जो कुछ भी खाते हैं वो इंसान में बदल जाता है. लेकिन आपने इस पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि आपको लगता है कि जो कुछ भी सार्थक है वह बाहर है. नहीं, यहां जो कुछ भी सार्थक है, वह सब आपके अंदर ही है. 

लोग हमेशा भगवान, भगवान के लोगों या भगवान की कृपा से वंचित लोगों की बातें करते रहते हैं - क्योंकि उन्होंने मानव होने की विशालता का एहसास नहीं किया है. सृष्टि का स्रोत खुद आपके भीतर फंसा हुआ है, और हर दिन चमत्कार पर चमत्कार कर रहा है. यदि आप इस पर थोड़ा ध्यान दें, यदि आपको इस तक पहुंच मिल जाए, यदि आप इसे एक बार छू लें, तो आपका जीवन इतना जादुई हो जाएगा कि लोग आपको अलौकिक समझेंगे. यह महामानवीय काम नहीं है; मानव होने के नाते हमारे पास यह संभावना मौजूद है, हमें इसे तलाशना होगा. 

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ऐसे में योग अहम भूमिका निभा सकता है. "योग" शब्द के बारे में एक गलत धारणा आम है - कि यह शरीर को मोड़ने वाली कसरत है. लेकिन योग कोई अभ्यास, व्यायाम या तकनीक नहीं है. यह मनुष्य को समग्रता से विकसित करने की एक प्रक्रिया और एक प्रणाली है, ताकि हर मनुष्य अपने भीतर अपनी उच्चतम संभव क्षमता पा सके.

(भारत के पचास सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी और न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक हैं. सद्गुरु को वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है, जो असाधारण कार्यों और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वार्षिक नागरिक पुरस्कार है.) 


 

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