दिसंबर 2025 का पहला सप्ताह भारतीय एविएशन के इतिहास में काले अक्षरों से लिखा जाएगा. इंडिगो एयरलाइंस, जो भारतीय आसमान में 60% से ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाली दिग्गज कंपनी है, पिछले कुछ दिनों में 5000 से अधिक फ्लाइट्स कैंसल कर चुकी है. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे प्रमुख एयरपोर्ट्स पर पैसेंजर्स के बीच भगदड़ मची हुई है. करीब 8 लाख पैसेंजर प्रभावित हुए हैं. कुछ घंटों की देरी से लेकर रात भर का इंतजार, बच्चों-बुजुर्गों की परेशानी को भुगतने वाले ही समझ सकते हैं. किसी की नौकरी छूटी है तो कोई अपनी शादी में ही नहीं पहुंच पाया. कहीं डेडबॉडी पहुंच गई पर परिवार रास्ते में अटक गया. आर्थिक नुकसान का तो अभी अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है. यह संकट सिर्फ एक एयरलाइन का नहीं, बल्कि पूरे सेक्टर का आईना है, जहां प्रॉफिट की दौड़ में विमानन के नियम, सेफ्टी और पैसेंजर राइट्स कहीं पीछे छूट गए हैं.
यूनियन सिविल एविएशन मंत्री राम मोहन नायडू किंजारापु के राज्यसभा में दिए बयानों ने विपक्ष को हथियार दे दिया. नायडू ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी के इस मामले को राजनीतिक न बनाने की बात कहने पर भी लोगों को नाराजगी है. मंत्री का मूल तर्क ही असंगत लगता है कि यह इंडिगो की आंतरिक मिसमैनेजमेंट का नतीजा है जो क्रू रोस्टरिंग और प्लानिंग की समस्या के चलते हुई है. नायडू कहते हैं कि सरकार ने सेफ्टी पर कोई समझौता नहीं किया. जांच चलेगी, स्ट्रिक्ट एक्शन लेंगे.
लेकिन आम लोगों को ये तर्क हजम नहीं हो रहे हैं. सोशल मीडिया से संसद तक एविएशन पॉलिसी की आलोचना हो रही है. पैसेंजर्स, विशेषज्ञ और विपक्ष एक स्वर में कह रहे हैं कि यह यह दबाव में झुक जाने जैसा मामला है, न कि सिर्फ 'इंटरनल इश्यू'? जब सारा मामला शुरू से लेकर अंत तक इंडिगो और DGCA के बीच चला है, तो जांच किस बात की करनी है? यह सिर्फ मामले को ठंडा करने का जुगाड़ है, ताकि शर्मिंदगी और आरोपों से बचा जा सके. भले बीमारी जस की तस रहे.
मंत्री जी का पहला तर्क 'ये इंडिगो की इंटरनल प्रॉब्लम', फिर डीजीसीए बेखबर क्यों रहा?
एविएशन मिनिस्टर कहते हैं कि इंडिगो की क्रू रोस्टरिंग और इंटरनल प्लानिंग में खराबी है. हमने 1 नवंबर से FDTL लागू किया, सभी एयरलाइंस को सूचित किया था. वे अपनी सफाई में कहते हैं कि अन्य एयरलाइंस (जैसे एयर इंडिया, स्पाइसजेट) अगर एफडीटीएल नियमों की परवाह कर सकते हैं तो इंडिगो क्यों नहीं कर सकता ?
लेकिन यह तर्क हजम क्यों नहीं हो रहा? क्योंकि यह जिम्मेदारी से बचने जैसा लगता है. इंडिगो का मार्केट शेयर 60% है. यह 'अन्य' विमान कंपनी नहीं, बल्कि इंडस्ट्री का चेहरा है. अगर इंडिगो ही FDTL नियमों के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाया तो बाकी की एयरलाइन का हिसाब गिनवाने से फायदा क्या? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? DGCA की मॉनिटरिंग कहां थी? अप्रैल से गाइडलाइंस फाइनल थीं, लेकिन इंप्लीमेंटेशन पर फॉलो-अप क्यों नहीं हुआ? लोगों का सवाल जायज है कि मंत्री जी ने इतनी बड़ी समस्या को इंडिगो की 'इंटरनल' कहकर छोड़ दिया.
दूसरा तर्क 'सेफ्टी पर कोई समझौता नहीं', तो फिर प्रेशर में आकर नियम वापस क्यों लिया?
नायडू का दूसरा तर्क है कि हम सेफ्टी पर फिक्स्ड हैं. FDTL पर कोई ढील नहीं दी. इंडिगो ने 1 दिसंबर को मीटिंग में सफाई मांगी, हमने दी. अचानक 3 दिसंबर को समस्या उभरी. वे कहते हैं कि सरकार ने कंप्रोमाइज नहीं किया. लेकिन यह तर्क खोखला लगता है, क्योंकि संकट FDTL नियमों से ही उपजा, जो DGCA ने लागू किए. अगर नियम सही थे, तो इंडिगो जैसी दिग्गज को 'अचानक' समस्या क्यों? विशेषज्ञों का कहना है कि यह रेगुलेटरी फेलियर है. DGCA ने इंडिगो की सॉफ्टवेयर (AMSS) को अपडेट न करने पर चेक क्यों नहीं किया? विपक्ष कहता है कि सरकार ने FDTL पर ढील दी क्योंकि इंडिगो ने प्रेशर डाला. नायडू इनकार करते हैं और कहते हैं कि किसी भी प्रेशर आगे हम नहीं झुके. लेकिन X पर ट्रेंड #IndiGoMonopoly बता रहा है कि पब्लिक मानती है कि यह कॉर्पोरेट लॉबिंग का केस है.
तीसरा तर्क 'इंक्वायरी चलेगी, स्ट्रिक्ट एक्शन लेंगे', पर लोगों को भरोसा क्यों नहीं?
नायडू का तीसरा तर्क है कि चार सदस्यी कमेटी बनाई गई है, जो इंक्वायरी कर रही है. हम उदाहरण स्थापित करेंगे. वे कहते हैं कि मिनिस्ट्री ने एयरपोर्ट्स पर कंट्रोल लिया, स्टेकहोल्डर्स से बात की. लेकिन ये सब बातें खोखली लगती हैं, क्योंकि पिछले संकटों 2024 के पायलट शॉर्टेज के समय में भी यही कहा गया, लेकिन एक्शन? जीरो. इंडिगो पर जुर्माना मात्र 5 लाख, जबकि नुकसान अरबों का.
आर्थिक नजरिए से देखें तो इंडिगो का प्रॉफिट 2024-25 में 10,000 करोड़ था, लेकिन कैंसिलेशंस से पैसेंजर्स को 1,000 करोड़ का लॉस हुआ. डीजीसीए के अधीन एक बॉडी सिविल एविएशंस रिक्वायरमेंट्स (CARs) कहता है कि मुआवजा दें, लेकिन इंडिगो ने इसमें बहुत लापरवाही दिखाई है. मंत्री जी एक्शन का वादा करते हैं, लेकिन बिना टाइमलाइन के.
नायडू का तर्क: इंडिगो संकट राजनीतिक नहीं, सवाल उठता है क्यों नहीं?
मंत्री कहते हैं सेफ्टी फर्स्ट, लेकिन 5000 फ्लाइट्स कैंसल हो गईं, लोग पूछते हैं कि क्या यह सेफ्टी है या पैसेंजर्स के साथ मजाक? राहुल गांधी ने इसे 'मोनोपॉली मॉडल' कहा, जहां एक कंपनी का दबदबा पूरे सेक्टर को बंधक बना लेता है. मंत्री जी को बुरा लग गया. वे इसे पॉलिटिकल' मानने को तैयार ही नहीं हैं. लेकिन विपक्ष कह रहा है कि बात सही है कि अगर मोनोपोली नहीं है तो इंडिगो की हिम्मत कैसे हुई इतने बड़ा ग्लिच करने की.
नायडू राहुल गांधी द्वारा इसे राजनीतिक संकट बताए जाने नायडू का कहना है कि इंडिगो संकट एक पब्लिक इश्यू है, पॉलिटिकल नहीं है.पर जनता नायडू के इस तर्क को मानने को तैयार ही नहीं है. वास्तव में, यह संकट गहरे राजनीतिक आयामों से भरा है. मोनोपोली को बढ़ावा, रेगुलेटरी फेलियर और विपक्षी हमलों के केंद्र में यह मामला है.
यह मामला शुद्ध रूप से सरकार की 'प्राइवेटाइजेशन पॉलिसी' को उजागर करता है. इंडिगो का 60% मार्केट शेयर (एयर इंडिया के साथ डुपॉली) 2014 से प्राइवेटाइजेशन पॉलिसी का परिणाम है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कॉर्पोरेट फेवरिटिज्म से कॉम्पिटिशन दबता है. नायडू का 'इंटरनल क्राइसिस' तर्क इग्नोर करता है कि सरकार ने CCI (कॉम्पिटिशन कमीशन) से जांच क्यों नहीं कराई? अगर एक कंपनी का संकट पूरे सेक्टर को हिला दे, तो यह पॉलिसी फेलियर है, न कि सिर्फ मैनेजमेंट इश्यू. दूसरा, रेगुलेटरी ढील का राजनीतिक दबाव. इसलिए ही लोगों को FDTL नियमों पर फरवरी 2026 तक एग्जेम्प्शन इंडिगो के 'प्रेशर' का नतीजा लगता है.
DGCA की इंक्वायरी (CEO को शो-कॉज) राजनीतिक डैमेज कंट्रोल लगती है. क्योंकि अहमदाबाद विमान हादसे के बाद लोगों को ऐसा लग रहा है कि एयर इंडिया को बचाने की कोशिशें हुईं हैं. अमेरिका में 2019 के बोइंग 737 मैक्स क्रैश के बाद FAA ने स्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग की, फाइनल रिपोर्ट 6 महीने में आ गई थी. यहां DGCA ने 'इंक्वायरी' का वादा किया, लेकिन डेडलाइन एक्सटेंड कर दी गई.
जनता ये भी पूछ रही है...
-नए पायलट रेस्ट नियम नवंबर 2025 से लागू, लेकिन इंडिगो ने 2 साल की मोहलत में क्रू बढ़ाया नहीं. अन्य एयरलाइंस ने मैनेज किया, इंडिगो ने क्यों नहीं?
-5500 पायलट होने के बावजूद क्रू की कमी. पायलट्स ने आरोप लगाया कि ओवरशेड्यूलिंग से सेफ्टी रिस्क. जनता पूछ रही है कि क्या हमारी जान दांव पर क्यों है?
-कैंसिलेशन की सूचना लास्ट मिनट, कॉल सेंटर्स अनरीचेबल.एआई से जवाब मिल रहे हैं. पैसेंजर्स चिल्ला रहे हैं पर उन्हे न कोई अपडेट मिल रही न मदद करने वाले लोग.
-ऑटो रिफंड्स का वादा, लेकिन 610 करोड़ पेंडिंग. वेवर की बात फिर भी फीस कट कर लिया गया . कंपेंसेशन के नाम पर धोखा देने का आरोप.
संयम श्रीवास्तव