दुनिया खतरनाक समय से गुजर रही है. वैश्विक स्तर पर जो हो रहा है उसको खुली आंखों से देखने की जरूरत है. हमारे चारों तरफ धमकी भरे युद्ध जैसे हालात हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था की भूमिका सीमित होती जा रही है. ये बातें वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने कहीं. साथ ही उन्होंने लोगों से शांति और समृद्धि के लिए भारतीय दर्शन का सहारा लेने की बात भी कही. वो वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित संघ के सह-सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य की पुस्तक 'वी एंड द वर्ल्ड अराउंड' के लोकार्पण अवसर पर बोल रहे थे.
इजरायल-हमास जंग और रूस-यूक्रेन युद्ध पर चिंता व्यक्त करते हुए जोशी ने कहा कि बंदूकें, रॉकेट, बमबारी, नरसंहार एक और विश्व युद्ध की चेतावनियां हैं. जोशी ने पुस्तक 'वी एंड द वर्ल्ड अराउंड' के बारे में कहा कि इसे पढ़ने से पहले संघ विचारक गोलवलकर की पुस्तक 'वी आर अवर नेशनहुड डिफाइंड' को भी पढ़ना होगा. तभी हम इस पुस्तक को समझ सकेंगे.
पुस्तक का लोकार्पण सुखद संयोग- मनमोहन वैद्य
इस मौके पर वाणी प्रकाशन ग्रुप के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने लेखक मनमोहन वैद्य, मुरली मनोहर जोशी, महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज का सम्मान किया. उन्होंने कहा, मेरी माताजी शिरोमणी देवी लंबे समय तक सेवा भारती से जुड़ी थीं. वाणी प्रकाशन ग्रुप की सामाजिक और साहित्यिक यात्रा 60वें वर्ष में प्रवेश कर रही है. इसमें भारतीय संस्कृति का बोध पुस्तकों से प्रतिबिंबित होता है.
'संघ को समझने के लिए भारत को समझना जरूरी'
वहीं, मनमोहन वैद्य ने कहा कि पुस्तक का लोकार्पण सुखद संयोग है. उन्होंने पुस्तक की परिकल्पना का श्रेय साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नमिता गोखले को दिया. उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले नागपुर संघ मुख्यालय के वार्षिक समारोह में प्रणब मुखर्जी को आमंत्रित किया गया था. उनको नागपुर आकर संबोधित करना था. मगर, कथित उदारवादी तबके ने इतना विरोध किया कि उसी घटना ने लेख लिखने को प्रेरित किया.
उन्होंने कहा कि सभी को पता था कि प्रणब मुखर्जी संघ ज्वाइन करने नहीं आ रहे हैं. बल्कि संबोधन के लिए आ रहे हैं. यहीं से लेख लिखना शुरू हुआ. वैद्य ने कहा कि भारत की जीवन पद्धति वसुधैव कुटुंबकम की है. संघ को समझने के लिए भारत को समझना जरूरी है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि विचार की दृष्टि से भारत किसी भी देश की तुलना में बहुत ही समृद्ध है. इस पुस्तक में सिर्फ लेख ही नहीं हैं बल्कि गहरा दर्शन और सुचिंतित परंपरा भी है.
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