'हमारा इम्तिहान ना लें, 50% आरक्षण की सीमा पार की तो चुनाव रोक देंगे', महाराष्‍ट्र सरकार को SC की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र को चेतावनी दी कि स्थानीय निकाय चुनावों में 50% से अधिक आरक्षण हुआ तो चुनाव रोक दिए जाएंगे. कोर्ट ने कहा कि चुनाव केवल बांठिया आयोग-पूर्व स्थिति में ही कराए जाएं. कुछ क्षेत्रों में आरक्षण 70% तक पहुंचने की शिकायतों पर नोटिस जारी कर राज्य से जवाब भी मांगा.

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50% आरक्षण की सीमा तोड़ी तो स्थानीय निकाय चुनाव स्थगित होंगे  (Photo- ITG) 50% आरक्षण की सीमा तोड़ी तो स्थानीय निकाय चुनाव स्थगित होंगे (Photo- ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:59 AM IST

महाराष्ट्र में अगले महीने होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त चेतावनी दी है. कोर्ट ने कहा कि राज्य किसी भी परिस्थिति में 50% आरक्षण सीमा पार नहीं कर सकता. कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि आरक्षण की सीमा का उल्लंघन किया जाता है, तो वह चुनावों पर रोक लगा देगी.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि चुनाव केवल उसी स्थिति में कराए जा सकते हैं, जो 2022 की जे.के. बांठिया आयोग रिपोर्ट से पहले लागू थी. इस रिपोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वर्ग के लिए 27% आरक्षण की अनुशंसा की थी और वर्तमान में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

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महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के आग्रह पर अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर तय की, लेकिन साथ ही राज्य सरकार को 50% कैप को नहीं तोड़ने की कड़ी हिदायत दी.

यह भी पढ़ें: सोशल मीडिया पर वायरल OBC आरक्षण की बातें झूठ हैं... मध्य प्रदेश सरकार ने किया दावा

रोक देंगे चुनाव- कोर्ट

अदालत ने कड़े शब्दों में कहा, “अगर तर्क यह है कि नामांकन शुरू हो गया है और कोर्ट कुछ न करे, तो हम चुनाव ही रोक देंगे. हमारी ताकत को परखने की कोशिश न करें.”

पीठ ने स्पष्ट किया कि दो-न्यायाधीशों की पीठ होने के नाते, वे संविधान पीठ द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया जिनमें आरोप लगाया गया है कि राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में कुछ मामलों में आरक्षण 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है.

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कोर्ट ने साफ किया कि उसकी पूर्व अनुमति केवल “बांठिया से पहले की स्थिति” के आधार पर चुनाव कराने तक सीमित थी, न कि पूरे राज्य में 27% OBC आरक्षण को अनिवार्य करने के लिए. अदालत ने कहा कि किसी भी नए कदम से उसके पुराने आदेशों के साथ विरोधाभास पैदा हो सकता है.

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