सोशल मीडिया पर वायरल OBC आरक्षण की बातें झूठ हैं... मध्य प्रदेश सरकार ने किया दावा

मध्यप्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रही ओबीसी आरक्षण से जुड़ी खबरों और टिप्पणियों को भ्रामक और असत्य करार दिया है. सरकार ने साफ किया कि ये सामग्री न तो राज्य के हलफनामे का हिस्सा है और न ही किसी आधिकारिक नीति या निर्णय से जुड़ी है. जानिए- सरकार का पक्ष.

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ओबीसी आरक्षण की गलत खबरों पर राज्य सरकार ने दिया स्पष्ट बयान (Rep Image by AI) ओबीसी आरक्षण की गलत खबरों पर राज्य सरकार ने दिया स्पष्ट बयान (Rep Image by AI)

हिमांशु मिश्रा

  • भाेपाल ,
  • 01 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 7:58 AM IST

मध्यप्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रही ओबीसी आरक्षण से संबंधित कंटेंट और टिप्पणियों को भ्रामक और असत्य करार दिया है. सरकार के मुताबिक ये वायरल जानकारी न तो राज्य के हलफनामे का हिस्सा है और न ही किसी आधिकारिक नीति या निर्णय का हिस्सा.

सरकार ने कहा कि सोशल मीडिया पर जो सामग्री दिखाई जा रही है, वो केवल मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री रामजी महाजन द्वारा 1983 में प्रस्तुत अंतिम प्रतिवेदन (भाग-1) का हिस्सा है. ये आयोग 17 नवंबर 1980 को गठित हुआ था और 22 दिसंबर 1983 को अपना प्रतिवेदन तत्कालीन राज्य शासन को सौंपा गया था. 

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मध्यप्रदेश सरकार ने साफ किया कि महाजन आयोग की रिपोर्ट सहित अन्य वार्षिक और विशेषज्ञ आयोगों के प्रतिवेदन हमेशा न्यायालय में प्रस्तुत किए जाते रहे हैं. राज्य ने कहा कि सोशल मीडिया पर किसी एक हिस्से को बिना संदर्भ के दिखाना और उसे दुष्प्रचार के रूप में फैलाना निंदनीय प्रयास है. 

वायरल सामग्री एकदम गलत 

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि महाजन आयोग ने 35% आरक्षण की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य शासन ने केवल 27% आरक्षण लागू किया है. इससे ये साफ होता है कि राज्य का निर्णय महाजन रिपोर्ट पर आधारित नहीं है. वायरल सामग्री में यह गलत प्रचार किया जा रहा है कि यह राज्य शासन के हलफनामे का हिस्सा है. लेकिन राज्य ने स्पष्ट किया कि यह सामग्री हलफनामे का हिस्सा नहीं है और न ही राज्य की किसी स्वीकृत नीति या निर्णय का हिस्सा है. 

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आम जनता में भ्रम न फैलाएं 

राज्य सरकार ने कहा कि सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे इस प्रकार के दुष्प्रचार के मामले में सख्त कार्रवाई की जाएगी. भारत में आरक्षण को लेकर विभिन्न विशेषज्ञ समितियों और आयोगों की रिपोर्टें, वार्षिक प्रतिवेदन और अन्य आधिकारिक दस्तावेज हमेशा सरकारी अभिलेख का हिस्सा रहे हैं और विभिन्न न्यायिक प्रकरणों में भी इन्हें प्रस्तुत किया गया है. सोशल मीडिया पर पुराने प्रतिवेदनों या रिपोर्टों के किसी भी हिस्से को बिना संदर्भ के फैलाना पूरी तरह गलत है और इससे आम जनता में भ्रम फैलता है. 

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