समय रैना को दिव्यांगों के लिए करने होंगे स्पेशल शो... भद्दे कमेंट मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

कोर्ट ने समय रैना सहित पांच इन्फ्लुएंसर्स को निर्देश दिया है कि वे हर महीने कम से कम दो कार्यक्रम या शो आयोजित करें, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियां साझा की जाएं और उनके इलाज के लिए फंड जुटाया जाए.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ह्यूमर कभी भी किसी व्यक्ति की गरिमा की कीमत पर नहीं होना चाहिए. (File Photo- ITG) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ह्यूमर कभी भी किसी व्यक्ति की गरिमा की कीमत पर नहीं होना चाहिए. (File Photo- ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:24 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने विकलांग व्यक्तियों और दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित लोगों का मजाक उड़ाने वाले कॉमेडियंस और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर बड़ा निर्णय सुनाया है. कोर्ट ने समय रैना सहित पांच इन्फ्लुएंसर्स को निर्देश दिया है कि वे हर महीने कम से कम दो कार्यक्रम या शो आयोजित करें, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियां साझा की जाएं और उनके इलाज के लिए फंड जुटाया जाए.

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न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की विकलांगता का मज़ाक बनाना न केवल अमानवीय व्यवहार है, बल्कि यह उनकी गरिमा का सीधा उल्लंघन भी है. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह आदेश एक सामाजिक दंड (social penalty) के तहत दिया जा रहा है. सिर्फ माफी मांग लेना पर्याप्त नहीं है. जब किसी मजाक या टिप्पणी से किसी समुदाय की पीड़ा बढ़ती हो और उनकी गरिमा भंग होती हो, तब दोषी व्यक्तियों को समाज के सामने जिम्मेदारी निभानी चाहिए.

अदालत ने इसे ऐसा उपाय बताया जिससे न केवल समाज में संवेदनशीलता बढ़ेगी, बल्कि दिव्यांगों के इलाज के लिए आर्थिक संसाधन भी जुट सकेंगे.

बेंच के अनुसार, इन कार्यक्रमों में ऐसे लोग शामिल किए जाएं जिन्होंने विकलांगता के बावजूद जीवन में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं. कोर्ट ने कहा कि सफलताएं और संघर्ष की कहानियां समाज को संवेदनशील बनाती हैं और दिव्यांगों के प्रति सम्मान का वातावरण तैयार करती हैं.

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सीजेआई ने टिप्पणी की कि अगर समय रैना और अन्य सच में पछतावा दिखाना चाहते हैं, तो उन्हें अपने प्लेटफॉर्म का उपयोग अच्छे उद्देश्य के लिए करना ही होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे कार्यक्रमों में दिव्यांग व्यक्तियों को आमंत्रित करना और उनकी आवाज़ को प्रमुखता देना जरूरी है, ताकि उनकी वास्तविक चुनौतियां और उनकी उपलब्धियां व्यापक रूप से लोगों के सामने आ सकें.

इसके अलावा कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर मजाक करना किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ह्यूमर कभी भी किसी व्यक्ति की गरिमा की कीमत पर नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने यह भी देखा कि देश में SMA जैसी बीमारियों से पीड़ित कई बच्चे और उनके परिवार क्राउडफंडिंग के जरिए इलाज का पैसा इकट्ठा कर रहे हैं, ऐसे में जिम्मेदार सोशल मीडिया हस्तियों को इस कार्य में सहायता करनी चाहिए.

अंत में अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह आदेश कोई सजा नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का अवसर है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास है कि भविष्य में ऐसे आपत्तिजनक व्यवहार की पुनरावृत्ति न हो. अदालत को उम्मीद है कि अगली सुनवाई से पहले इन इन्फ्लुएंसर्स द्वारा कुछ प्रभावी और प्रेरक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जो दिव्यांग समुदाय के प्रति सम्मान और सहानुभूति बढ़ाने में मदद करेंगे.

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