सिद्धारमैया और शिवकुमार की लड़ाई कर्नाटक के मठों तक पहुंची, कांग्रेस की बिगड़ न जाए सोशल इंजीनियरिंग?

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच अब आरपार की लड़ाई छिड़ गई है. ऐसे में शिवकुमार के पक्ष में वोक्कालिगा समुदाय के मठ उतर गए हैं तो सिद्धारमैया ओबीसी और दलित नेताओं को जरिए सियासी लॉबिंग कर रहे हैं. ऐसे में कहीं कांग्रेस का गेम ना खराब हो जाए?

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कर्नाटक में सिद्धारमैया बनाम डीके शिवकुमार की लड़ाई (Photo-PTI) कर्नाटक में सिद्धारमैया बनाम डीके शिवकुमार की लड़ाई (Photo-PTI)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:33 PM IST

कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच खींचतान कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बन गई है. सिद्धारमैया सीएम की कुर्सी बचाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं तो शिवकुमार मुख्यमंत्री बनने के लिए सारे घोड़े खोल दिए हैं. इस तरह दोनों तरफ से शह-मात का खेल जारी है.

सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की लड़ाई में वोक्कालिगा समाज से जुड़े हुए आदिचुंचनगिरी मठ की भी एंट्री हो गई है. आदिचुंचनगिरी मठ के प्रमुख निर्मलानंद नाथ स्वामी अब खुलकर डीके शिवकुमार के पक्ष में उतर आए हैं और कांग्रेस को अल्टीमेटम दे दिया है. वहीं, सिद्धारमैया के करीबी दलित और ओबीसी नेताओं ने अपनी सियासी लॉबिंग शुरू कर दी है. कर्नाटक में छिड़ी सीएम पद की लड़ाई में कहीं कांग्रेस का समीकरण न बिगड़ जाए?

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कर्नाटक में सीएम पद को लेकर खिंची तलवार

कर्नाटक में यह घमासान तब तेज हुआ है जब सिद्धारमैया सरकार के ढाई साल पूरे हुए हैं. कहा जा रहा है कि सरकार गठन के दौरान भी सीएम पद को लेकर जारी खींचतान के बाद ढाई साल का फॉर्मूला तय हुआ था. बताया जा रहा है कि 2023 में कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत के बाद यह तय हुआ था कि मुख्यमंत्री पद को ढाई-ढाई साल के लिए बांटा जाएगा. इस फॉर्मूले के तहत सिद्धारमैया पहले ढाई साल सीएम रहेंगे और उसके बाद डीके शिवकुमार सत्ता संभालेंगे.

सिद्धारमैया के ढाई साल पूरा हो चुका है और तभी से डीके शिवकुमार खेमे के विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और बार-बार कथित 'गुप्त समझौते' की याद दिला रहे हैं. यही नहीं, डीके शिवकुमार के भी दिल्ली आकर गांधी परिवार से मिलने की बात कही जा रही ह.। वहीं, सिद्धारमैया कह रहे हैं कि मेरी ताकत घटी नहीं, बढ़ी है. उन्होंने कहा कि 'विधायक दिल्ली जाएं, कोई समस्या नहीं. आखिरी फैसला हाईकमान का है। इस भ्रम को खत्म करने के लिए हाईकमान को फैसला करना होगा.'

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सिद्धारमैया-शिवकुमार की लड़ाई में मठ की एंट्री

कर्नाटक के सीएम पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की लड़ाई में मठ की एंट्री हो गई है. वोक्कालिगा समुदाय से जुड़े आदिचुंचनगिरी मठ के प्रमुख निर्मलानंद नाथ स्वामी ने कहा है कि डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. 

उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को सूबे की सत्ता के शीर्ष पद को लेकर जल्द फैसला लेने का अल्टीमेटम भी दिया. उन्होंने कहा कि टीवी पर लगातार राजनीतिक घटनाक्रम देख रहे हैं. वोक्कालिगा मठ हमेशा सभी समुदायों का सम्मान और सहयोग करने वाला रहा है.

निर्मलानंद नाथ ने कहा कि डीके शिवकुमार कई बार मठ आए, लेकिन कभी समर्थन नहीं मांगा और न ही लॉबिंग की. उन्होंने आगे कहा कि हमने पहले भी डीके शिवकुमार को ही अपना मुख्यमंत्री चाहता था, लेकिन बात नहीं बनी. कहा गया था कि दो साल बाद होगा, लेकिन वह भी नहीं हुआ। इससे हमें दुख पहुंचा है. डीके शिवकुमार योग्य हैं, उन्हें अब मौका मिलना चाहिए. डीके शिवकुमार को कांग्रेस का अनुशासित सिपाही बताते हुए कहा कि तमाम संकटों के बावजूद शिवकुमार ने पार्टी नहीं छोड़ी. ऐसे में शिवकुमार को आधे कार्यकाल का मौका मिलना ही चाहिए.

कर्नाटक में मठों का राजनीतिक दखल

कर्नाटक की राजनीति में मंदिरों से कहीं अधिक मठों और मठाधीशों का सियासी दबदबा रहा है. उत्तर भारत के विपरीत कर्नाटक के मठ अपने से जुड़े समुदाय विशेष में आस्था रखने वालों की सांस्कृतिक, शैक्षणिक और आर्थिक उन्नति का ख्याल रखते हैं। चुनाव के दौरान मठ अपने-अपने समुदाय से जुड़े राजनेताओं के समर्थन में परोक्ष रूप से संदेश देते हैं.

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सूबे की राजनीति में वोक्कालिगा के मठों का उतना ही महत्व है, जितना लिंगायतों का है। जनसंख्या के अनुपात में दोनों में बहुत ज्यादा कोई अंतर नहीं है. लिंगायतों की आबादी जहाँ करीब 18 फीसद है, वहीं वोक्कालिगा समुदाय की लगभग 14 फीसद है.

सूबे की राजनीति में वोक्कालिगा समुदाय के लोगों का काफी असर रहा है. वोक्कालिगा समुदाय के बीच आदिचुंचनगिरि महासंस्थान मठ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वोक्कालिगारा संघ कई शैक्षणिक संस्थान चलाता है. वोक्कालिगा के मठों की संख्या करीब 150 है.

वोक्कालिगा बनाम कुरुबा की न बन जाए लड़ाई

डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं जबकि सिद्धारमैया ओबीसी की कुरुबा जाति से हैं. कर्नाटक की सियासत में दोनों जातियों का अपना दबदबा है. सिद्धारमैया ओबीसी के प्रमुख चेहरा हैं और सामाजिक न्याय के एजेंडे को जमीन पर उतारने में जुटे हैं. वह स्पष्ट बोलने वाले और जमीन से जुड़े हुए नेता हैं, जिसके चलते जनता से सीधे संपर्क में रहते हैं. 

राज्य में किसी भी नेता की लोकप्रियता के मामले में भी सिद्धारमैया सबसे आगे हैं जबकि डीके शिवकुमार को कांग्रेस का संकट मोचक माना जाता है. कांग्रेस के लिए कई बार फ्रंटफुट पर उतरकर काम करते देखा गया है. इसके अलावा कर्नाटक में कांग्रेस के वोक्कालिगा चेहरा ही नहीं बल्कि बीजेपी के हिंदुत्व का काउंटर प्लान भी है. 

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शिवकुमार जिस वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं, वह करीब 48 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखता है. वोक्कालिगा जेडीएस का कोर वोटबैंक माना जाता है. जेडीएस के संस्थापक देवगौड़ा और कुमारस्वामी वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. बीजेपी के पास वोक्कालिगा समुदाय का कोई प्रभावी चेहरा नहीं है तो जेडीएस की राजनीतिक ताकत कमजोर हुई है.

कांग्रेस की बिगड़ ना जाए सोशल इंजीनियरिंग

डीके शिवकुमार के चलते वोक्कालिगा समुदाय का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहा था, लेकिन डीके शिवकुमार को सीएम की कुर्सी न मिलने से यह समुदाय निराश हुआ है.  कांग्रेस हाईकमान अगर डीके शिवकुमार के मुद्दे को टालता रहा तो वोक्कलिगा समाज पार्टी से दूर हो सकता है. 

कर्नाटक में स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कुरुबा जाति को चरवाहा माना जाता है.ये पूरे कर्नाटक में फैले हुए हैं, सिद्धारमैया इसी समाज से आते हैं. राजनीतिक तौर पर इन्हें बहुत ताकतवर तो कभी नहीं माना गया है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उन्हें राजनीतिक पहचान दी है.

कर्नाटक में कुरुबा जाति की आबादी करीब 7 फीसदी है, लेकिन दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। डीके शिवकुमार के समर्थन में जिस तरह वोक्कालिगा समुदाय से मठ उतरे हैं, उसी तरह कुरुबा और ओबीसी जातिया सिद्धारमैया के पक्ष में लामबंद हैं. सिद्धारमैया के समर्थक खासकर दलित और ओबीसी नेताओं की जिस तरह बैठक हो रही है, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि अपना-अपना खेमा मजबूत किया जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस अगर राज्य के संकट का हल नहीं निकलती है तो उसका सियासी समीकरण बिगड़ सकता है. 

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