हाव-भाव और मुद्रा... सौम्यकाशी के परशुराम और अयोध्या के बालक राम, दोनों प्रतिमाओं में है काफी समानता

उत्तरकाशी में पौराणिक परशुराम मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु और अयोध्या के राम मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति में कई समानताएं हैं. मंदिर के पुजारी बताते है कि परशुराम मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति आठ से नवीं सदी में स्थापित की गई थी.

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उत्तरकाशी में स्थापित भगवान विष्णु और आयोध्या में स्थापित रामलला की मूर्ति. (फाइल फोटो) उत्तरकाशी में स्थापित भगवान विष्णु और आयोध्या में स्थापित रामलला की मूर्ति. (फाइल फोटो)

ओंकार बहुगुणा

  • उत्तरकाशी,
  • 06 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:08 PM IST

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में स्थापित पौराणिक परशुराम मंदिर इन दिनों खासी चर्चाओं में है. स्थानीय लोग इस मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति और अयोध्या के राम मंदिर में स्थापित हुए रामलला की मूर्ति में कई समानताएं बता रहे हैं. जानकार और मंदिर के पुजारी बताते है कि परशुराम मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति आठ से नवीं सदी में स्थापित की गई थी.

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में स्थापित पौराणिक परशुराम मंदिर इन दिनों खासी चर्चाओं में है. स्थानीय लोग इस मंदिर की विष्णु शिला को अयोध्या में हाल ही प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित मैसूर के शिल्पी  मूर्तिकार द्वारा बनाई मूर्ति की कला  से जोड़ा  जा रहा है.

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'8वीं से 9वीं सदी में स्थापित की गई थी मूर्ति'

जानकार और मंदिर के पुजारी बताते है कि परशुराम मंदिर में विष्णु भगवान की मूर्ति आठ से नवीं सदी में स्थापित की गई थी. उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में परशुराम मंदिर की विष्णु भगवान की मूर्ति  में विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियां शिला पर उकेरी गई है. मूर्ति के मुंह का सचिव चित्रण अयोध्या में बनी श्री राम जी की मूर्ति से मिलता जुलता है.

इसके साथ ही अयोध्या और यहां परशुराम मंदिर की मूर्तियों में कमलासन बना हुआ है. जिस पर दोनों भगवान की मूर्तियां खड़े में विराजमान है. परशुराम मंदिर के पुजारी  शैलेंद्र नौटियाल का कहना है कि परशुराम मंदिर में स्थित विष्णु भगवान की मूर्ति आठवीं से नौवीं सदी में स्थापित की गई है और पुरातत्व विभाग द्वारा भी यह जानकारी दी गई है.

यहां पर परशुराम जी को भगवान विष्णु के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि परशुराम भगवान विष्णु हैं. इसके साथ ही इस मंदिर के द्वार पर कॉपर प्लेट की विक्रम संवत 1742 वर्ष का स्थापित है. जिस पर पांडवों की मूर्तियां उकेरी गई हैं. वहीं, एक 181 वर्ष पुराना संस्कृत में लिखा गया शिलापट्ट है.

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'स्कन्द पुराण में है केदारखंड का उल्लेख'

स्कन्द पुराण के केदारखंड में वर्णित है कि जब विष्णु जी के अवतार परशुराम ने क्षत्रियों का नाश करने के बाद उनका क्रोध शांत नहीं हुआ था तो भगवान शिव ने उन्हें हिमालय की उत्तरकाशी में तपस्या करने को कहा था. तब उन्होंने वरुणावत पर्वत के विमलेश्वर मंदिर में तपस्या की थी, जिसके बाद उनका क्रोध शांत हुआ और सौम्य हो गए थे. जिसके बाद भगवान काशी विश्वनाथ ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जिस स्थान पर तुम्हारा क्रोध शांत हुआ है. उस उत्तरकाशी को सौम्यकाशी के नाम से जाना जाएगा.

ये हैं दोनों मूर्तियों में समानताएं

  • दोनों ही मूर्तियां काले पत्थर से तैयार की गई हैं.
  • दोनों में विष्णु के दस अवतारों को उकेरा गया है.
  • दोनों ही मूर्तियों में भगवान रामलला और भगवान विष्णु को खड़ी मुद्रा में दिखाया गया है.
  • दोनों मूर्तियों की हावभाव भी एक जैसी ही है.
  • दोनों ही मूर्तियों में कमलासन बना हुआ है. 

वहीं, सामाजिक सरोकारों से जुड़े और वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र गोदियाल बताते है कि उत्तरकाशी के पौराणिक मंदिरों में परशुराम मंदिर प्रमुख हैं. इतिहास की पुस्तकों और केदारखंड में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है. गढ़वाल राजशाही के दौरान भी उत्तरकाशी के परशुराम मंदिर को श्रेणी तीन में रखा गया था.

मंदिर में भगवान विष्णु की कमल रूपी पाषाण मूर्ति है जो इस मंदिर की पौराणिकता का हस्ताक्षर है. परंतु वर्तमान में मंदिर का स्वरूप प्राचीन स्वरूप से भिन्न हो गया है. मंदिरों की प्राचीन स्वरूप से छेड़छाड़ किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि अधिकांश पौराणिक मंदिरों का सौंदर्यीकरण के नाम पर सीमेंट और कंक्रीट का प्रयोग करके स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है.

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