डिजिटल पंचकार्ड से मिल रही बनारसी साड़ी की बिनकारी को संजीवनी, IIT पासआउट ने किया कमाल

कोरोना काल, मंदी और बेगारी की समस्या से जूझ रहे बनारसी साड़ी के बिनकारी को डिजिटल पंचकार्ड की शक्ल में नई संजीवनी मिल चुकी है. जिसको आईआईटी पासआउट युवा ने तैयार किया है.

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डिजिटल पंचकार्ड के आविष्कार से मिल रही है बनारसी साड़ी डिजिटल पंचकार्ड के आविष्कार से मिल रही है बनारसी साड़ी

रोशन जायसवाल

  • वाराणसी,
  • 04 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 11:42 PM IST
  • डिजिटल पंचकार्ड से बन रही बनारसी साड़ी
  • IIT पासआउट ने किया कमाल
  • हफ्तों का काम अब मिनटों में

कोरोना काल, मंदी और बेगारी की समस्या से जूझ रहे बनारसी साड़ी के बुनकरों को डिजिटल पंचकार्ड की शक्ल में नई संजीवनी मिल चुकी है. जिसको आईआईटी पासआउट युवा ने तैयार किया है. जिसने बजाए नौकरी करने के अपनी दो साल की मेहनत और लाॅकडाउन में मिले समय के सदुपयोग के बदौलत नई क्रांति की तैयारी कर ली है.

अब पारंपरिक दफ्ती के पत्तों वाले पंचकार्ड को न तो बुनकरों को पाॅवरलूम और हैंडलूम में तैयार करके लगाने में हफ्तों का वक्त लगेगा और न ही उसके रखरखाव की दिक्कत होगी क्योंकि डिजिटल पंचकार्ड के जरिए हफ्तों का काम मिनटों में हो जा रहा है. सिर्फ साड़ी की डिजाइन डिजिटल पंचकार्ड में लोड करने की देरी है, फिर मनचाही डिजाइन की बिनाई लूम पर तुरंत ही शुरू हो जाएगी.

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कोरोना काल में लाॅकडाउन की मार ने पहले से वेंटिलेटर पर चल रहे और मंदी-बेगारी को झेल रहे पूरी दुनिया में मशहूर बनारसी साड़ी के कारोबार को एक झटका और दे दिया था. लेकिन टेक्नोलाॅजी की नई क्रांति से वाराणसी के बिनकारी के इस कारोबार को नई संजीवनी मिल चुकी है और इसकी शुरुआत बुनकर मोहल्ले में डिजिटल पंचकार्ड मशीन लग जाने से हो चुकी है. अपनी पुराने पड़े पाॅवरलूम पर जैसे ही वाराणसी के बड़ी बाजार के युवा बुनकर जियाउर्रहमान ने डिजिटल पंचकार्ड मशीन इंस्टाल कराई वैसे ही इनके चेहरे खिल उठे.

अब न तो इनको बार-बार साड़ी की डिजाइन बदलने के लिए पारंपरिक दफ्ती के पत्तों वाले भारी-भरकम पंचकार्ड बनवाने और उसको लूम पर फिट कराने में हफ्तों का वक्त लग रहा है और न ही पुराने पंचकार्ड के रखरखाव को करना पड़ रहा है. सिर्फ साड़ी का नक्शा बनाने वाले के यहां से पेन ड्राइव में मनचाहा डिजाइन डिजिलट पंचकार्ड में लोड किया और दूसरी तरफ लूम में साड़ी बिनाई का काम पलक झपकते ही शुरू.

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नई क्रांति की शुरुआत

इस बारे में और बताते हुए युवा बुनकर जियाउर्रहमान अंसारी ने बताया कि डिजिलट पंचकार्ड मशीन नई क्रांति ला रही है. कंप्टीशन के दौर में बुनकरों के लिए सबसे बड़ी समस्या हर बार नई-नई साड़ी के डिजाइन का बाजार में आ जाना था. जबकि पारंपरिक दफ्ती के पत्तों वाले पंचकार्ड को नई डिजाइन के अनुसार तैयार करके लूम पर लगाने में ही तीन से चार हफ्तों का वक्त लग जाता था. तब तक कोई नई डिजाइन मार्केट में आ जाती थी.

मशीन

हालांकि अब ऐसा नहीं हो रहा है. डिजिटल पंचकार्ड के जरिए ये काम मिनटों में हो जा रहा है और इसमें पैसे, वक्त और मेहनत तीनों की बचत हो रही है. साथ ही पुराने पंचकार्ड को सहेजकर रखने की भी दिक्कत से निजात मिल गई है. बीच-बीच में पुराने लूम पर लगे दफ्ती के पंचकार्ड का मेंटेनेस भी खत्म हो गया है. कुल मिलाकर इससे प्रोडक्शन भी बढ़ गया है.

वहीं युवा बुनकर के पिता यासिन अंसारी भी मानते है कि अब पुराने पारंपरिक बिनकारी की जगह नई तकनीक जगह ले रही है. जिसमें युवा बुनकरों का रुझान बढ़ा है. पढाई करके बुनकर परिवार का लड़का नए तकनीक से जुड़ना चाहेगा क्योंकि पुराने ढर्रे पर चलकर गुजारा कर पाना संभव नहीं है.

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यह डिजिटल पंचकार्ड पूरी तरह से स्वदेशी है और इसको तैयार किया है, आईआईटी धनबाद से इंजीयरिंग किए हुए युवा इंजीनियर नित्यानंद मोर्या ने. इनके एक नए आविष्कार ने आत्मनिर्भर भारत, आपदा में अवसर, लोकल को वोकल और मेक इन इंडिया जैसे तमाम फलसफों को जीवंत कर दिया है. दरअसल, दो साल पहले आईआईटी करने के बाद गरीब परिवार के वाराणसी के नित्यानंद ने नौकरी करने के बजाए कुछ नया करने की ठानी. जिसकी प्रेरणा उनको अपने बुनकर मामा के यहां से मिली जो अक्सर पारंपरिक दफ्ती गत्तों वाले पंचकार्ड को लूम पर लगाने और बार-बार डिजाइन के बदल जाने से परेशान रहते थे.

आईआईटी इलेक्ट्रानिक्स और कम्यूनिकशन इंजीनियर डिजिटल पंचकार्ड बनाने वाले नित्यानंद बताते है कि अपने ननिहाल जाने पर बुनकर मामा की दिक्कत देखते ही मैंने फैसला किया कि इस पारंपरिक तरीके में टेक्नोलाॅजी को लाया जाए. तो बजाए कुछ नया बनाने के पुराने लूम पर ही जोड़ने के लिए डिजिटल पंचकार्ड मशीन बनाना शुरू किया. जिसमें काॅलेज के साथी षणमुख कृष्णा और बुनकर जियाउर्रहमान ने उनकी मदद की. फिर दो साल की मेहनत से जैसा सोचा था वैसी मशीन बना डाली. जो किसी भी पुराने लूम पर फिट हो सकती है और बिजली भी कम खाती है.

लाॅकडाउन का सदुपयोग

उन्होंने बताया कि लाॅकडाउन के समय का सदुपयोग इस मशीन को प्रोग्राम करने में बीता है. इस डिजिटल पंचकार्ड को तैयार करने में लगभग एक लाख की लागत आई है. इस मशीन के फायदों में अब जगह की बचत हो रही है और डिजाइन के आउटडेट होने का डर नहीं है, क्योंकि मिनटों में नई डिजाइन की बिनाई शुरू हो रही है. जहां तक नए डिजाइन बनाने में लगने वाले वक्त की बात है तो वे पहले जैसे ही हो रहा है, लेकिन आने वाले वक्त में मोबाइल एप बनाने के बाद वो भी आसान हो जायेगा.

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उनका कहना है कि डिजिटल पंचकार्ड का प्रोविजनल पेटेंट मिल चुका है और फाइनल पेटेंट के लिए अप्लाई भी किया जा चुका है. सबसे बड़ा फायदा इस नई मशीन का यह भी है कि बुनकरों को अलग-अलग लूम पर अलग-अलग डिजाइन की साड़ी तैयार करनी पड़ती थी, लेकिन अब एक ही लूम पर डिजिलटल पंचकार्ड के जरिए अलग-अलग डिजाइन की साड़ी बन रही है.

 

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