चेक बाउंस जैसे कई आर्थिक अपराध डिक्रिमिनलाइज करने की तैयारी, केंद्र ने मांगे सुझाव

मौजूदा कानून के मुताबिक, किसी पर भी अगर उसके जारी किए चेक के अस्वीकृत (डिसऑनर) होने का आरोप है या अनियमित डिपॉजिट स्कीम जो दिवालिया हो गई है, चलाने का आरोप है तो उसे जेल/जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं.

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निर्मला सीतारमण निर्मला सीतारमण

राहुल श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 10 जून 2020,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST

  • आर्थिक प्रक्रिया को पटरी पर लाना चाहती है सरकार
  • नए कानून के बाद चेक बाउंस पर नहीं होगी जेल
  • केंद्र सरकार ने कई संगठनों से इस पर सुझाव मांगे हैं
केंद्र सरकार ने ऐसे कई अधिनियमों को डिक्रिमिनलाइज (अपराध के दायरे से बाहर) करने की प्रक्रिया शुरू की है, जो अभी कानून के मुताबिक आर्थिक अपराधों के तौर पर सूचीबद्ध है. सरकार ने संसद के 19 कृत्यों में संशोधन के प्रस्तावों पर राज्य सरकारों और आम लोगों जैसे स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) से राय मांगी है. अगर ये विधान बने तो मिसाल के लिए चेक बाउंस होना गैर-आपराधिक कृत्य हो जाएगा.

सरकार का कहना है कि यह आर्थिक प्रक्रिया को पटरी पर लौटाना, तेज करने और व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए है. सरकार में ऐसी चिंताएं बढ़ रही हैं कि कोविड-19 महामारी और आर्थिक संकट के कारण वित्तीय नाकामियों में बढ़ोतरी हो सकती है, जिन्हें मौजूदा नियमों के तहत धोखाधड़ी के तौर पर देखा जा सकता है. इन प्रस्तावों में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट में संशोधन करना शामिल है जो चेक बाउंसिंग को कवर करता है.

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केंद्र सरकार राय का अध्ययन करेगी और नियमों को अंतिम रूप देगी

वित्त मंत्रालय ने सोमवार को ‘कारणों का स्टेटमेंट’ जारी किया, जिसमें अनरेगुलाइज्ड डिपोजिट स्कीम्स प्रतिबंध एक्ट और अन्यों के तहत किसी व्यक्ति की ओर से किए गए ‘अपराधों’ (मौजूदा कानून के मुताबिक) में भी बदलाव का प्रस्ताव किया गया. इनके अलावा आम सहमति बनती है तो RBI एक्ट, नाबार्ड एक्ट, SARFAEISI एक्ट, बीमा अधिनियम, PFRDA एक्ट और पेमेंट्स एंड सेटलमेंट्स एक्ट को भी संशोधन के दायरे में लाया जा सकता है.

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सभी स्टेकहोल्डर्स की राय प्राप्त करने के लिए वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवाओं के विभाग या बैंकिंग विभाग ने 23 जून तक का समय निर्धारित किया है. विभाग ने राज्य सरकारों/ केंद्र शासित क्षेत्र प्रशासनों, नागरिक समाज/ गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संगठनों, बहुपक्षीय संस्थानों और आम जनता से विचार और टिप्पणियां भेजने के लिए कहा है. केंद्र सरकार राय का अध्ययन करेगी और नियमों को अंतिम रूप देगी.

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मौजूदा कानून के मुताबिक, किसी पर भी अगर उसके जारी किए चेक के अस्वीकृत (डिसऑनर) होने का आरोप है या अनियमित डिपॉजिट स्कीम जो दिवालिया हो गई है, चलाने का आरोप है तो उसे जेल/जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं. सरकार की ओर से ऐसे अपराधों को डिक्रिमिनलाइज करने का प्रस्ताव है.

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प्रस्ताव के मुताबिक, कंपाउडिंग का तरीका अपनाया जाएगा जिसमें आरोपी को पेनल्टी देनी होगी और मामला वहीं खत्म हो जाएगा. सुझाव यह है कि आपराधिकता का तत्व कोर्ट की ओर से तय किए जाने की जरूरत होती है जबकि कम्पाउंडिंग पेनल्टी को अर्ध-न्यायिक शक्तियों वाले आसन्न दफ्तर की ओर से निर्धारित किया जा सकता है.

वित्त मंत्रालय ने ‘कारणों के स्टेटमेंट’ में कहा है, 'सरकार के जोर दिए जाने वाले क्षेत्रों में छोटे अपराधों का विकेंद्रीकरण शामिल है. जेल का जोखिम, ऐसे कृत्यों के लिए जो जरूरी नहीं कि धोखाधड़ी हों या बदनीयती के इरादे से हो, निवेश को आकर्षित करने में बड़ी बाधा बना हुआ है. कानूनी प्रक्रियाओं में आने वाली अनिश्चितता और अदालतों में समाधान के लिए लगने वाले समय से ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का सिद्धांत आहत होता है.'

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वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आजतक/इंडिया टुडे से कहा, 'मामूली अपराधों के लिए कारावास सहित आपराधिक दंड प्रतिरोधक के तौर पर काम कर रहा है और इसे व्यापारिक भावनाओं को प्रभावित करने वाले मुख्य कारणों में से एक के तौर पर देखा जाता है. ये घरेलू और विदेशी निवेशकों दोनों से निवेश में बाधा डालता है. कोविड-19 रिस्पॉन्स रणनीति के तहत आर्थिक विकास को दोबारा पटरी पर लाने और न्याय प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए ये और अधिक प्रासंगिक हो गया है.'

चेक की राशि के दोगुने तक जुर्माना किया जा सकता है

सरकार का आकलन है कि इस तरह के अपराध न्यायिक प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर लंबी कानूनी यात्रा करते हुए बोझ बढ़ाते हैं और इनसे कम वित्तीय लाभ होता है.

हालांकि सरकार दुर्भावना से इरादतन ऐसे अपराध करने वालों के लिए चीजें आसान नहीं बनाना चाहती है. यही कारण है कि वित्त मंत्रालय का प्रस्ताव एक संतुलन के लिए प्रेरित करता है, जिसके तहत दुर्भावना के इरादे से ऐसा करने वालों को सजा मिले और कम गंभीर अपराध पर कंपाउंडिंग का रास्ता अपनाया जाए. सरकार जो कानूनी ढांचा बनाना चाहती है उसमें पर्याप्त पेनल्टी हैं जो निवारक के रूप में कार्य कर सकती हैं.

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खाते में पर्याप्त धन नहीं होने की वजह से चेक बाउंस होना, मुख्य अपराध है जिसे सरकार डिक्रिमिनलाइज करना चाहती है. मौजूदा स्थिति में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 इस बात की पहचान करती है कि यह एक अपराध है और इसके लिए कारावास को 2 साल तक बढ़ाया जा सकता है, या चेक की राशि के दोगुने तक जुर्माना किया जा सकता है या दोनों साथ हो सकते हैं.

'कारणों के स्टेटमेंट' के जरिए सरकार एक कानूनी मैट्रिक्स बनाने पर विचार कर रही है जहां पेनल्टी निवारक के तौर पर काम करें. दूसरे शब्दों में कहें तो उपरोक्त अपराधों के डिक्रिमिनलाइज होने के बाद जेल की सजा दुर्लभ और जुर्माने का प्रावधान आम हो सकता है.

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