प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में तीसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बन गई है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले एनडीए को 293 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 और 2019, लगातार दो चुनावों में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली बीजेपी की निर्भरता इस बार सहयोगियों पर होगी. ऐसे में सरकार की तस्वीर कैसी होगी, मोदी सरकार के कामकाज का क्या तरीका होगा? चुनाव नतीजों के बाद से ही इन तमाम सवालों को लेकर एक बहस सी छिड़ी हुई थी. अब मोदी कैबिनेट में विभाग बंटवारे से पीएम मोदी और बीजेपी ने भविष्य को लेकर रोडमैप क्लियर कर दिया है. मोदी कैबिनेट में विभाग बंटवारे के संदेश क्या हैं?
1- सहयोगियों के आगे नहीं झुकेगी बीजेपी
चुनाव नतीजों के बाद किंगमेकर बनकर उभरी चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) की अपनी-अपनी मांगें थीं. दोनों दल मनचाहा विभाग चाह रहे थे. नायडू की पार्टी को सड़क परिवहन चाहिए था तो वहीं नीतीश की जेडीयू को रेल, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने ये सभी विभाग अपने पास रखे हैं.
इसे रेलवे, सड़क परिवहन में सुधार की रफ्तार धीमी नहीं पड़ने देने की बीजेपी की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है तो वहीं ये संदेश भी बताया जा रहा है कि बीजेपी सहयोगियों के आगे नहीं झुकेगी. बीजेपी ने सहयोगी दलों को एक तरह से ये संदेश दे दिया है कि गठबंधन धर्म निभाएंगे लेकिन सिर झुकाकर सरकार नहीं चलाएंगे. गौरतलब है कि रेलवे जिस किसी भी सरकार में नेतृत्व करने वाली पार्टी की जगह किसी गठबंधन सहयोगी के पास रहा है, लोकलुभावन नीतियों के चलते खस्ताहाल रहा है.
2- जारी रहेंगे पिछली सरकार के काम
रेल और सड़क परिवहन से लेकर शिक्षा और कानून तक, पुराने मंत्रियों को ही फिर से इन विभागों की जिम्मेदारी देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साफ कर दिया है कि इन विभागों में शुरू हुए सुधार के काम सुस्त नहीं पड़ेंगे. धर्मेंद्र प्रधान को फिर से शिक्षा मंत्री बनाया जाना हो या अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री, ये इसी तरफ इशारा है. देश में 2024 से ही नई शिक्षा नीति लागू होनी है. वहीं, पिछली सरकार के कार्यकाल में बने नए आपराधिक कानून भी 1 जुलाई से लागू होने हैं. ऐसे में अगर किसी नए चेहरे को इन मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी जाती तो हो सकता था कि तय डेडलाइन पर ये कानून और शिक्षा नीति लागू करने में समस्या हो.
3- आजमाए चेहरों पर भरोसा
बीजेपी और पीएम मोदी की इमेज कलेवर बदलते रहने वाली है. 2014 के बाद 2019 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनी, तब भी ये देखने को मिला था. 2014 में गृह मंत्री रहे राजनाथ सिंह को रक्षा और रक्षा मंत्री रहीं निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी. अमित शाह को कैबिनेट में शामिल कर गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इस बार भी माना जा रहा था कि पीएम मोदी पुराने मंत्रियों के विभाग बदल सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वित्त, रक्षा और गृह मंत्रालय की कौन कहे, सरकार ने दर्जनभर से अधिक पुराने मंत्रियों के विभाग बरकरार रखे हैं.
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4- गठबंधन जरूरी, लेकिन मजबूरी नहीं
नतीजे आने के बाद से ही मनचाहे विभाग के लिए जेडीयू और टीडीपी, बीजेपी पर दबाव बना रहे थे. दोनों ही पार्टियां सीसीएस से संबंधित मंत्रालय चाहती थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सीसीएस की कौन कहे, रेल, कृषि, सड़क परिवहन, शिक्षा और कानून जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी बीजेपी ने अपने ही पास रखे हैं. किंगमेकर बनकर उभरी इन पार्टियों को मुंहमांगे मंत्रालय न देकर बीजेपी ने सभी गठबंधन सहयोगियों को एक तरह से यह संदेश दे दिया है कि उसके लिए गठबंधन जरूरी भले ही है, मजबूरी नहीं है.
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5- नीतिगत फैसलों के लिए सहयोगियों पर निर्भर नहीं
सीसीएस से जुड़े मंत्रालयों के साथ ही बीजेपी ने कृषि, शिक्षा, कानून, रेलवे और सड़क परिवहन जैसे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे हैं तो उसके भी अपने मायने हैं. किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं कृषि मंत्रालय के तहत चलती हैं तो वहीं सड़क परिवहन और रेल ऐसे मंत्रालय हैं, जिनके काम को सरकार चुनाव में सबसे ज्यादा शोकेस करती है. यही वह विभाग भी हैं जिन्हें लेकर पिछले कार्यकाल में सरकार ने सबसे ज्यादा नीतिगत फैसले लिए हैं. विभाग बंटवारे के जरिए सरकार ने एक तरह से यह संदेश भी दे दिया है कि जिन क्षेत्रों में नीतिगत फैसलों की जरूरत है, उनके लिए हम सहयोगी दलों पर निर्भर नहीं रहेंगे.
बिकेश तिवारी