दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया की चुनावी बाजी बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी ने एक बार फिर अपने नाम कर ली है. वह लगातार चौथी बार क्लब के सचिव चुने गए हैं. राजीव प्रताप रूडी के सियासी वर्चस्व को तोड़ने के लिए इस बार बीजेपी के पूर्व सांसद डॉ. संजीव बालियान मैदान में उतरे थे, जिनके समर्थन में निशिकांत दुबे खुलकर खड़े थे. इसके बावजूद बालियान, रूडी को मात नहीं दे सके.
ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर राजीव प्रताप रूडी किस सियासी केमिस्ट्री के साथ चुनाव मैदान में उतरते थे कि संजीव बालियान उन्हें चुनावी मात नहीं दे सके.
क्लब की स्थापना 1947 में हुई थी. यह क्लब सांसदों और पूर्व सांसदों के लिए सामाजिक और राजनीतिक मंच है. राजीव प्रताप रूडी पिछले 25 साल से इस क्लब पर काबिज़ हैं. इस बार उनका मुकाबला अपनी ही पार्टी के पूर्व सांसद संजीव बालियान से था. इस तरह यह बीजेपी बनाम बीजेपी का मुकाबला बन गया था, लेकिन रूडी ने अपने पैनल और विपक्षी वोटों को लामबंद करके अपना सियासी कब्ज़ा बरकरार रखा.
कॉन्स्टिट्यूशनल क्लब पर रूडी का दबदबा
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के कुल 1295 सदस्य हैं, जिन्हें वोट करने का अधिकार है. लोकसभा और राज्यसभा के मौजूदा सदस्य और कुछ पूर्व सांसद क्लब के सदस्य हैं. मंगलवार को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के सचिव पद और 11 कार्यकारी सदस्यों के लिए चुनाव हुए थे. 1295 मतदाताओं में से 707 वोट पड़े, जिनमें से 38 वोट पोस्टल बैलेट से और 669 सदस्यों ने ख़ुद कॉन्स्टिट्यूशन क्लब जाकर वोट डाले थे. इस तरह क़रीब 52 फ़ीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.
क्लब के सचिव (प्रशासन) पद के लिए राजीव प्रताप रूडी को 392 वोट मिले, जबकि संजीव बालियान को 290 मत मिले. इस तरह रूडी ने अपनी ही पार्टी के पूर्व सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजीव बालियान को 102 वोटों के अंतर से हराकर सचिव पद पर अपना कब्ज़ा बरकरार रखा. जीत के बाद रूडी ने कहा कि मैं 100 से ज़्यादा वोटों से जीता हूँ और अगर इसे 1000 मतदाताओं से गुणा किया जाए, तो यह संख्या 1 लाख हो जाती है.
राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि यह मेरे पैनल की जीत है. हर किसी ने अपनी पार्टी से ऊपर उठकर वोट डाला. मेरे पैनल में कांग्रेस, सपा, टीएमसी और निर्दलीय सांसद थे. मुझे पिछले दो दशकों की मेरी मेहनत का फल मिला. रूडी इससे पहले 2009, 2014 और 2019 में क्लब के सचिव (प्रशासन) का चुनाव जीत चुके हैं. इस तरह लगातार चौथी बार रूडी सचिव चुने गए हैं.
बालियान-दुबे की केमिस्ट्री को मिली मात
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब पर 25 सालों से राजीव प्रताप रूडी का सियासी वर्चस्व कायम है. इस बार रूडी के दबदबे को तोड़ने के लिए बीजेपी के नेता संजीव बालियान ख़ुद उतरे थे. इसके चलते क्लब की चुनावी जंग हाई प्रोफ़ाइल होने के साथ-साथ बीजेपी बनाम बीजेपी की बन गई थी. ढाई दशक से गवर्निंग काउंसिल के सचिव (प्रशासन) के पद पर काबिज़ राजीव प्रताप रूडी को हटाने के लिए संजीव बालियान ने ताल ठोकी, तो बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे भी उनके साथ मज़बूती से खड़े नज़र आए.
रूडी के ख़िलाफ़ भले ही संजीव बालियान चुनाव में उतरे थे, लेकिन सारी राजनीतिक तिकड़म और फ्रंटफ़ुट पर निशिकांत दुबे नज़र आ रहे थे. दुबे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के समर्थन में खुलकर अपनी आवाज़ बुलंद की और आख़िरी वक़्त तक जीत की उम्मीद लगाए थे. उन्होंने कहा था, 'संसदीय क्लब के चुनाव में मैं संजीव बालियान जी के साथ हूँ. यह चुनाव बालियान के जीवन का ऐतिहासिक चुनाव है. क्लब को पायलटों, आईएएस-आईपीएस अफ़सरों और वामपंथियों के क़ब्ज़े से मुक्त कराने के लिए संजीव बालियान चुनाव में उतरे हैं.' इस तरह बालियान को जिताने के लिए पूरी ताक़त निशिकांत दुबे ने झोंक रखी थी.
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, किरेन रिजिजू सहित कई और केंद्रीय मंत्री वोट देने पहुँचे थे. पिछले काफ़ी दिनों से इसे लेकर सोशल मीडिया सहित वन-टू-वन प्रचार चल रहा था. संजीव बालियान का समर्थन कर रहे बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने राजीव प्रताप रूडी पर आरोप भी लगाए और कहा था कि यह क्लब अफ़सरों और दलालों का अड्डा बन गया है और उसे चंगुल से मुक्त करना है.
रूडी का चक्रव्यूह नहीं तोड़ पाए बालियान
राजीव प्रताप रूडी और संजीव बालियान के मैदान में उतरने से बीजेपी दो धड़ों में बंटी हुई नज़र आई, क्योंकि दोनों ही नेता बीजेपी से हैं. राजीव प्रताप रूडी लंबे समय से गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हैं, उन्हें बीजेपी से लेकर कांग्रेस सांसदों तक का व्यापक समर्थन प्राप्त है. रूडी ने अपने पैनल से कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा के साथ सपा के महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे सांसद अक्षय यादव, चार अन्य बीजेपी सांसदों को चुनाव लड़ाया था. इसके अलावा प्रमचंद्रन को भी चुनाव लड़ाया था.
रूडी के पैनल से बीजेपी के पूर्व राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल, बीजेपी के पूर्व लोकसभा सांसद प्रदीप गांधी, बीजेपी के सांसद नवीन जिंदल चुनाव लड़ रहे थे. टीडीपी के लोकसभा सांसद कृष्ण प्रसाद टेनेट्टी, टीएमसी के लोकसभा सांसद प्रसून बनर्जी, शिवसेना के पूर्व लोकसभा सांसद श्रीरंग अप्पा बारणे और बीजेडी के कालीकेश सिंह देव मैदान में उतरे थे.
वहीं, संजीव बालियान को तेजतर्रार बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के साथ-साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था. इस तरह बीजेपी बनाम बीजेपी के चुनाव में लड़ाई ज़बरदस्त बन गई थी, लेकिन रूडी ने जिस तरह से विपक्ष के वोटों को लामबंद करने के लिए अपने पैनल में जगह दी, उसके आगे बालियान पस्त नज़र आए.
कांग्रेस-सपा का समर्थन रूडी को मिला
राजीव प्रताप रूडी को कांग्रेस का खुला समर्थन मिला, राहुल गांधी ने खुले तौर पर संसद में उन्हें समर्थन का भरोसा दिया था. इसके अलावा कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने रूडी को जिताने के लिए पूरी ताक़त झोंक रखी थी. कांग्रेस ने रूडी को समर्थन देकर दीपेंद्र हुड्डा को सदस्य बनवाया. इसके अलावा राजीव शुक्ला को सचिव (खेल) और जितेंद्र रेड्डी को कोषाध्यक्ष के लिए निर्विरोध जीत दर्ज कराई. इस तरह कांग्रेस ने रूडी को समर्थन देकर अपने कई नेताओं को क्लब के अहम पद दिला दिए.
सपा के सभी सांसदों का समर्थन रूडी को मिला, क्योंकि रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव उनके पैनल से चुनाव लड़ रहे थे. इसी तरह रूडी ने डीएमके का वोट हासिल करने के लिए डीएमके के तिरुची सिवा को सचिव (संस्कृति) पद पर बिना चुनाव के जिता दिया था. टीएमसी नेताओं का भी समर्थन रूडी को रहा. विपक्षी पार्टी से जुड़े सदस्यों ने राजीव प्रताप रूडी का समर्थन किया, जबकि बीजेपी के सदस्य बंट गए.
राजीव प्रताप रूडी ठाकुर हैं, जबकि संजीव बालियान जाट समुदाय से हैं. इस मुकाबले में जाति वाला एंगल भी दिखा. सूत्रों का कहना है कि व्यक्तिगत संबंध और पर्दे के पीछे की रणनीति ने अंतिम परिणाम में बड़ी भूमिका निभाई. राजीव प्रताप रूडी का सदस्यों के साथ लंबे समय से चला आ रहा संबंध निर्णायक साबित हुआ. यूपी से लेकर बिहार तक के ठाकुर नेता पूरी तरह से राजीव प्रताप रूडी के पक्ष में लामबंद नज़र आए. लोकसभा में 32 ठाकुर सांसद हैं, जिनका एकमुश्त वोट राजीव प्रताप रूडी को गया, जबकि जाट वोट बँटा हुआ रहा.
कुबूल अहमद