सुप्रीम कोर्ट पहुंचा नेमप्लेट विवाद, योगी सरकार के आदेश को SC में चुनौती, आज होगी सुनवाई

कांवड़ यात्रा के दौरान खाने-पीने की दुकानों-ठेलों और ढाबों वालों को अपनी पहचान बताने वाले यूपी और उत्तराखंड सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिन पर आज सुनवाई होनी हैं. 

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Supreme Court. (फाइल फोटो) Supreme Court. (फाइल फोटो)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 7:02 AM IST

सावन में कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार से दिल्ली के बीच पड़ने वाले यात्रा मार्ग पर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य सामग्री बेचने वालों को अपनी पहचान घोषित करने के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिन पर सोमवार को सुनवाई होनी है. इस मुद्दे पर अब तक टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और आकार पटेल के साथ-साथ एक एनजीओ ने भी अर्जी दाखिल की है. 

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प्रोफेसर अपूर्वानंद और आकार पटेल ने यूपी और उत्तराखंड सरकार के उस निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें सावन में कांवड़ मार्ग पर खाद्य सामग्री बेचने वाले सभी दुकानदारों को दुकान के बाहर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है.

'बुनियादी अधिकारों का उल्लघंन करता है आदेश'

याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य सरकारों द्वारा जारी निर्देश संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 17 के तहत नागरिकों को दिए बुनियादी अधिकारों को प्रभावित करते हैं. यह मुस्लिम पुरुषों के अधिकारों को भी प्रभावित करता है जो अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन है, क्योंकि इस आदेश से उनके रोजी रोटी पर असर पड़ेगा.

"यह आदेश 'अस्पृश्यता' की प्रथा का समर्थन करता है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत स्पष्ट रूप से "किसी भी रूप में" वर्जित है.

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यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट पहुंचा 'नेमप्लेट विवाद', योगी सरकार के आदेश को दी गई चुनौती, कल सुनवाई

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी निर्देशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. इन निर्देशों में कांवड़ यात्रा के मार्ग पर स्थित सभी खान-पान प्रतिष्ठानों के मालिकों को अपने नाम, पते और मोबाइल नंबर के साथ-साथ अपने कर्मचारियों के नाम सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना होगा. याचिका में कहा गया है, "तीर्थयात्रियों की खान-पान संबंधी प्राथमिकताओं का सम्मान करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के कथित लक्ष्य के साथ जारी किए गए ये निर्देश स्पष्ट रूप से मनमाने हैं, बिना किसी निर्धारण सिद्धांत के जारी किए गए हैं. कई संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के राज्य के दायित्व को समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों पर थोपते हैं."

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