'व्हाइट कॉलर' टेरर: Red Fort ब्लास्ट से उठे सवाल, कैसे दिल्ली तक पहुंच गई दहशत की इतनी बड़ी खेप?

लालकिले के पास कार में हुआ ब्लास्ट न केवल इलाके की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह हमारे उन नियामक ढांचों की भी कहानी भी बयां करता है कि अगर चूक हुई तो सीमित-उपयोग वाला कैमिकल मैटेरियल भी बड़ी तबाही का जरिया बन सकता है.

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‘व्हाइट-कॉलर’ मॉड्यूल की जांच तेज हो गई है (Photo: Getty) ‘व्हाइट-कॉलर’ मॉड्यूल की जांच तेज हो गई है (Photo: Getty)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:30 PM IST

दिल्ली के लालकिले के पास हुए घातक धमाके के बाद सुरक्षा एजेंसियों की नजर उस बड़े सवाल पर टिक गई है जो इस हमले को और भी खतरनाक बनाता है. सवाल यह है कि यह 'व्हाइट कॉलर' आतंकी मॉड्यूल इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक, विशेषकर अमोनियम नाइट्रेट (जिसके इस्तेमाल का संदेह है) को हासिल करने और जमा करने में कैसे कामयाब रहा.

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यह हमला एक बार फिर इस बात को दर्शाता है कि अमोनियम नाइट्रेट जैसे प्रतिबंधित रसायन को कितनी आसानी से हथियार बनाया जा सकता है. अधिकारी अब हाल ही में पकड़े गए अंतर-राज्यीय टेरर सेल की लॉजिस्टिक्स और खरीद नेटवर्क को खंगालने की कोशिश कर रहे हैं..

जांच से पता चला है कि ‘व्हाइट-कॉलर’ मॉड्यूल ने सीमित और नियंत्रित कैमिकल तक पहुंच बना कर उसे हथियार में बदलने की तैयारी की थी, और एजेंसियां अभी उसके लॉजिस्टिक्स, खरीद-फरोख्त और स्टोरेज कड़ियों को खंगाल रही हैं.

दोहरी चुनौती: उपयोग में आसानी और IED लिंक
यह हमला एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि अमोनियम नाइट्रेट जैसे प्रतिबंधित रसायन को कितनी आसानी से हथियार बनाया जा सकता है. अधिकारी अब हाल ही में पकड़े गए अंतर-राज्यीय आतंकी सेल की लॉजिस्टिक्स और खरीद नेटवर्क को खंगालने की कोशिश कर रहे हैं.

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लाल किला ब्लास्ट से कुछ ही घंटे पहले, फरीदाबाद में एक बड़ा "व्हाइट कॉलर" टेरर मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था, जिसमें तीन डॉक्टरों सहित आठ लोग गिरफ्तार किए गए थे और 2,900 किलोग्राम विस्फोटक जब्त किया गया था. यह मॉड्यूल जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और अंसार गजावत-उल-हिंद से जुड़ा था और इसका विस्तार कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था.

आतंकी हमलों का पसंदीदा विस्फोटक
अमोनियम नाइट्रेट दोहरे उपयोग वाला कैमिकल है जिसका इस्तेमाल व्यापक रूप से लोकप्रिय नाइट्रोजन उर्वरक के रूप में और निर्माण क्षेत्र में पत्थर की खदानों में नियंत्रित विस्फोट के लिए होता है.

IED घटक: पोटेशियम क्लोरेट और सल्फर जैसे अन्य रसायनों के साथ मिलाने पर इसकी अस्थिर प्रकृति के कारण, यह आतंकी समूहों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज (IEDs) का एक पसंदीदा घटक बन गया है. इसे फ्यूल ऑयल के साथ मिलाकर एएनएफओ (ANFO) विस्फोटक बनाया जाता है, जिससे तीव्र विस्फोट होता है.

इसका इस्तेमाल 2019 के लेथपोरा (पुलवामा) हमले में RDX के साथ किया गया था, साथ ही 2000-2011 के दौरान मुंबई और दिल्ली में प्रतिबंधित इंडियन मुजाहिदीन (IM) के कई हमलों में भी इसका प्रयोग हुआ था.

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सरकारी सख्ती
आतंकी समूहों द्वारा इसके लगातार इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए, केंद्र सरकार ने 2011 में 45 प्रतिशत से अधिक अमोनियम नाइट्रेट वाले उर्वरकों को विस्फोटक पदार्थ घोषित कर दिया था. इसके बाद, 2015 में सरकार ने इसके आयात और परिवहन के मानदंडों को और सख्त किया, आदेश दिया गया कि इसकी आवाजाही केवल बैग वाली अवस्था में होगी और देश के भीतर परिवहन के दौरान सशस्त्र गार्डों और जीपीएस वाहनों का होना अनिवार्य है.

सुरक्षा एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि इतनी सख्ती के बावजूद, यह 'व्हाइट कॉलर' टेरर सेल इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक कैसे जमा कर पाया.

(PTI इनुपट्स के साथ)

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