महाराष्ट्र (Maharashtra) के भिवंडी स्थित एक पार्षद के मामले में आरोपी को अपराध की गंभीरता और चल रही सुनवाई का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत देने से इनकार कर दिया. अदालत ने निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई एक निश्चित समयसीमा के साथ तेज़ी से की जाए. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच प्रशांत भास्कर प्रशांत म्हात्रे की ज़मानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन पर अपने चचेरे भाई मनोज अनंत म्हात्रे (53) की हत्या का आरोप है. वे भिवंडी से कांग्रेस पार्षद थे.
आरोपी म्हात्रे पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत मुकदमा चल रहा है. 2017 में दर्ज एक एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि उसने कुल लोगों के साथ मिलकर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते पीड़ित पर धारदार हथियारों से हमला किया था.
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, प्रशांत म्हात्रे कथित तौर पर चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांग रहे थे. टिकट न मिलने पर, उसने 2013 में सबसे पहले मनोज म्हात्रे की हत्या करने की असफल कोशिश की. आखिरकार, प्रशांत म्हात्रे ने कुछ लोगों के साथ मिलकर पीड़ित पर दरांती और चाकू से बेरहमी से हमला किया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया.
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि साल 2013 के अपराध में इस्तेमाल किए गए हथियार प्रशांत म्हात्रे के कार्यालय से बरामद किए गए थे. प्रशांत म्हात्रे की ओर से सीनियर अधिवक्ता प्रकाश देउ नाइक ने दलील दी कि याचिकाकर्ता आठ साल से ज़्यादा वक्त से हिरासत में है और उन्होंने उन 17 सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर ज़मानत मांगी, जो पहले से ही ज़मानत पर बाहर हैं.
हालांकि, राज्य की ओर से अधिवक्ता दीपक साल्वी ने दलील दी कि म्हात्रे का मामला उनकी प्रत्यक्ष भूमिका, आपराधिक बैकग्राउंड और गवाहों को दी गई धमकियों की वजह से अलग है.
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दीपक साल्वी ने बताया कि इस मामले में 24 गवाहों की गवाही हो चुकी है और करीब 30 अहम गवाहों से पूछताछ होनी बाकी है, जबकि अभियोजन पक्ष के शेष गवाहों की कुल संख्या 50 से ज्यादा है. वकील साल्वी ने दलील दी कि, "गवाहों की गवाही का मुकदमे के नतीजे पर सीधा असर पड़ेगा. इस मामले में लंबी कैद का सिद्धांत लागू नहीं होता क्योंकि देरी याचिकाकर्ता और उसके सह-अभियुक्तों की वजह से हुई है, जिन्होंने अदालत को 5 साल तक आरोप तय करने की अनुमति नहीं दी."
मनोज म्हात्रे की विधवा की तरफ से पेश वकील सतीश मानेशिंदे ने बताया कि मृतक के परिवार को कथित धमकियों के अलावा, दो गवाहों को विशेष रूप से धमकाया गया है और उन्हें पुलिस सुरक्षा दी गई है.
कोर्ट ने निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई 31 जनवरी, 2026 तक पूरी हो जाए और अगर इसमें देरी होती है, तो प्रधान जिला न्यायाधीश को इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को स्पष्टीकरण देना होगा. अदालत ने साफ किया कि अगर तय समय सीमा के अंदर मुकदमा पूरा नहीं होता है, तो प्रशांत म्हात्रे अपनी ज़मानत याचिका को रीन्यू कर सकते हैं.
विद्या