28 अक्टूबर को जयपुर दिल्ली हाईवे पर राजस्थान के मनोहरपुर में एक बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गई, इससे बस में आग लग गई और 3 लोगों की जान चली गई. इससे पहले 14 अक्टूबर को ही जैसलमेर-जोधपुर हाइवे पर स्लीपर बस में आग लगी, जिसमें 26 यात्रियों की मौत हो गई. वहीं 24 अक्टूबर को आंध प्रदेश में बस बाइक से टकराकर आग का गोला बनी, जिसमें 20 लोग जिंदा जल गए.
ये सारे हादसे स्लीपर बसों में हुए हैं. अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इन स्लीपर बसों में ऐसी क्या खामी हैं कि ये सड़क पर चलते फिरते मौत के ताबूत बन रही हैं. आजतक ने देशभर में इस बसों का रिएलिटी चेक किया है. हमने अपनी पड़ताल में ये जानने की कोशिश की कि आखिर ये बसें मानकों को क्यों पूरा नहीं कर रही हैं. क्या करप्शन की वजह से ये बसें फर्जी फिटनेस का सर्टिफेकेट हासिल कर रही हैं? और आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही हैं?
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जयपुर का रिएलिटी चेक... 15 दिनों में दो बड़े हादसे
राजस्थान में हर दिन 8000 स्लीपर बसों का संचालन होता है, जिनमें करीब सवा 2 लाख यात्री सफर करते हैं. जयपुर से दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, इंदौर, सूरत, अहमदाबाद, भोपाल, जोधपुर, उदयपुर, कोटा जैसे शहरों के लिए स्लीपर बसें चलती हैं.
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने 2016 में स्लीपर बसों में पीछे की तरफ इमरजेंसी गेट लगाने का आदेश दिया था. लेकिन अब जयपुर से संचालित होने वाली इन बसों की स्थिति बिल्कुल अलग है. मध्य प्रदेश के मुरैना से आई बस में ना पीछे कोई इमरजेंसी गेट है और ना ही सेफ्टी का इंतजाम है.
हम एक बस के अंदर दाखिल हुए तो ये जानकर हैरान रह गए कि बस के अंदर गैस सिलेंडर जलाकर खाना बनाया जा रहा था. इस बस में चलने वाले हेल्पर ने खुद हमारे कैमरे पर ये स्वीकार किया कि ये सिलेंडर इसी बस में रहता है. अब सोचिये कि कैसे ये बस वाले अपनी सवारियों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं.
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एक अन्य बस में भी कोई इमरजेंसी गेट नहीं था. अंदर जाकर स्थिति देखी तो वहां गैस का सिलेंडर लेकर खाना बनाया जा रहा था. इसमें अग्निशमन यंत्र होना चाहिए थे. इन स्लीपर बसों में सबसे बड़ा खेल होता है मॉडिफिकेशन का, यानी कि जुगाड़ से सामान्य बसों को स्लीपर बस बनाना या कम कैपेसिटी की जगह पर ज्यादा सीटें लगा देना, लेकिन इसमें यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ होता है.
स्लीपर बसों के लिए AIS:119 प्रोविजन के तहत बस बॉडी का निर्माण होता है, जिसके तहत पहले बस का चेसिस खरीदा जाता है और फिर उन पर बॉडी बनाने का काम होता है. बॉडी बनाने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है, जिसमें बस में लगने वाली सीटों की संख्या, बस का साइज वगैरा अहम हैं.
इसके बाद चेसिस के हिसाब से बॉडी का निर्माण होता है, लेकिन ये सब नियम के हिसाब होता है, मगर इसमें भी खेल हो रहा है. कागजों पर बस का साइज और सीटों की संख्या कुछ और दिखाई जाती है और हकीकत में बस का डिजाइन कुछ और होता है. 13 मीटर के बस साइज के अप्रूवल पर 15 मीटर का डिजाइन बना दिया जाता है. बसों के इमरजेंसी गेट्स पर भी सीटें लगा दी जाती हैं.
लखनऊ में बस को मॉडिफाइड कर बढ़ा दीं सीटें
लखनऊ में ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट लगातार मॉडिफाइड बसों की जांच कर रहा है. यहीं एक अधिकारी ने कैमरे पर एक ऐसी बस को पकड़ा, जिसने मॉडिफाई करके 6 सीटें बढ़ा दी थीं. बस की लंबाई बढ़ा दी तो 6 सीटें मिल गईं. इमरजेंसी एग्जिट बनाया, लेकिन बाहर से खोलने का कोई प्रावधान नहीं दिया है. लखनऊ में खड़ी बसें ज्यादातर दूसरे राज्यों में रजिस्टर्ड मिलीं, लेकिन ये बसें चलती उत्तर प्रदेश में ही हैं. यूपी के अधिकारियों के मुताबिक यहां नियमों की सख्ती है.
इस वजह से बस संचालक दूसरे प्रदेशों में रजिस्ट्रेशन करके बसें चला रहे हैं. रीजनल ऑफिसर अशोक श्रीवास्तव के मुताबिक, हम बसों की लंबाई, चौड़ाई और अन्य 14 मानकों पर जांच करते हैं. अगर कोई बस इन मानकों पर खरी नहीं उतरती है तो उसे रोककर नोटिस जारी किया जाता है. वहीं, परिवहन अधिकारी संजय तिवारी ने बताया कि जिन बसों में नॉर्म्स का पालन नहीं किया गया है, उन पर कार्रवाई की जा रही है. टीमें जांच में लगी हैं और अब तक करीब 30 से 35 बसों में गड़बड़ियां मिली हैं, जिन पर कार्रवाई जारी है.
दिल्ली में भी यही हाल
दिल्ली के मोरी गेट पर मौजूद दो डबल डेकर बस का रियलिटी चेक किया तो सामने आया कि एक बस जर्जर हालत में है. वो बनारस से दिल्ली के बीच चलती है. इस बस की हालत बेहद जर्जर है. बस में एंट्री का मेन रास्ता है, जो ड्राइवर के ठीक उल्टी तरफ है. बस के हेल्पर ने बताया कि बस में दो इमरजेंसी रास्ते भी हैं, जिसे देखने के लिए जब बस के अंदर गए तो वहां दो इमरजेंसी दरवाजे नजर आये, लेकिन दोनों के सामने बिस्तर था. सबसे बड़ी बात यह कि बाहर निकलकर करीब चार से पांच फीट की ऊंचाई से कूदना भी पड़ता है. जाहिर है ये इमरजेंसी दरवाजे इस्तेमाल के लिए कम और चालान से बचने के लिए ज्यादा बनाए गए हैं.
इस बस से निकलने के बाद बगल में खड़ी एक शानदार बस का भी रिएलिटी चेक किया. ये बस दिल्ली से इंदौर के बीच चलती है. मेन रास्ते के अलावा हेल्पर ने बताया कि दो इमरजेंसी रास्ते हैं. अगर कंडिशन की बात छोड़ दें तो बस के इमरजेंसी दरवाजों की वही कहानी है. ज्यादा कमाई के लिए इमरजेंसी दरवाजे के सामने बिस्तर है. पीछे वाला दरवाजा कम खिड़की था, जिसमें से आपको कूदकर बाहर जाना पड़ेगा. हमें यहां एक पैसेंजर भी मिले, जो 2 हजार रुपये देकर बनारस से दिल्ली आए थे.
भोपाल-सूरत बस में भी यही हाल
भोपाल से रात को सूरत जाने वाली एक एसी स्लीपर बस में जब आजतक की टीम अंदर घुसी तो छोटे से दरवाजे के चलते अंदर जाना भी मुश्किल था. दरवाजा इतना छोटा कि एक बार में एक ही शख्स अंदर या बाहर जा सकता है. आपात स्थिति में लोगों को जल्दी बाहर निकालना इस दरवाजे से नामुमकिन है. अंदर जाने पर देखा कि बस को स्लीपर मॉडल में मॉडिफाई करवाने के चलते तेजी से आग पकड़ने वाले मटेरियल का जमकर इस्तेमाल हुआ है.
मसलन लकड़ी, प्लाई, कपड़े, फोम, वायरिंग, प्लास्टिक. स्लीपर कोच होने के चलते गलियारे में भी सिर्फ इतनी ही जगह है कि एक बार में एक ही शख्स यहां से वहां जा सकता है. बिना एसी के अंदर घुटन का माहौल है, क्योंकि खिड़कियां बंद रहती हैं. पूरी बस में आग बुझाने का कोई यंत्र नहीं दिखा. आग लगने की सूरत में खिड़कियों को तोड़ने के लिए कोई औजार, जैसे हैमर नहीं दिखा, जो आपात स्थिति में जरूरी हो जाता है. बस में सबसे आखिर में एक आपातकालीन गेट तो था लेकिन उसे खोलने के लिए जो हैंडल होना चाहिए, वो गायब था.
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भोपाल से इंदौर के रास्ते मुंबई जाने वाली एक ओवरनाइट स्लीपर बस में जब आजतक की टीम दाखिल हुई तो इस बस में सुरक्षा की एक गंभीर खामी दिखी. बस में तेजी से आग पकड़ने वाले सामान का तो इस्तेमाल हुआ ही था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि बस में सिर्फ दिखाने के नाम पर इमरजेंसी गेट था.
इमरजेंसी गेट बाहर से तो सामान्य दिखा, लेकिन अंदर जाने पर दिखा कि इमरजेंसी गेट की जगह पर वहां स्लीपर सीट बना दी गई है. सिर्फ यही नहीं, स्लीपर सीट के साथ-साथ यहां स्टील की रेलिंग और रेगजीन से पूरे इमरजेंसी गेट को कवर कर दिया गया है. जाहिर है आपात स्थिति में यह इमरजेंसी गेट किसी काम का नहीं रहा, क्योंकि दो एक्स्ट्रा सवारी के लिए इसे कवर कर दिया गया है
मध्य प्रदेश में कुल 5787 स्लीपर बसें रजिस्टर्ड हैं और इनमें से 3472 बसें (करीब 60%) एसी बस हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल यूं तो रेल मार्ग के जरिए ज्यादातर बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है, लेकिन सड़क मार्ग के जरिए भी एक बड़ा वर्ग ओवरनाइट जर्नी के लिए एसी स्लीपर बसों में सफर करता है. भोपाल से रात के समय महाराष्ट्र के बड़े शहरों मुंबई, पुणे, नागपुर के लिए बसें रवाना होती हैं. इसके अलावा गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा के लिए स्लीपर बसें चलती हैं. राजस्थान के जयपुर, उदयपुर, अजमेर और कोटा के लिए भी स्लीपर बसें चलती है.
चंडीगढ़ में क्या हैं हालात
पंजाब के मोहाली और चंडीगढ़ के 43 सेक्टर से वही मॉडिफाइड बसें यूपी और राजस्थान के लिए धड़ल्ले से चल रही हैं, जो कि डबल डेकर हैं और अंदर से मॉडिफाइड भी. इन बसों में मानकों के बहुत से वॉयलेशन दिखते हैं. साफ तौर पर सफर करने वालों की जान जोखिम में डालकर ये बसें चलाई जा रही हैं. यहीं पर हमें यूपी में रजिस्टर्ड एक बस मिली, जो चंडीगढ़ से गोरखपुर के रूट पर चलाई जाती है.
बस डबल डेकर है. हर केबिन में एसी और लाइट है, लेकिन बस में घुस पाना और बैठ पाना अपने आप में चुनौती है. बस का इमरजेंसी एग्जिट भी खुल नहीं पाया. बस के अंदर एक हेल्पर मिला, जिसने इमरजेंसी गेट खोलने का दावा किया, लेकिन वो खोल नहीं पाया. इमरजेंसी डोर के आगे पूरी सीट लगी हुई थी. बड़ा सवाल ये है कि पंजाब या चंडीगढ़ में इनके घुसने और चलाए जाने पर वायलेशन का चालान या कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही, कौन इनके सेफ्टी नॉर्म्स को देख रहा है.
स्लीपर बसों के लिए सरकार ने बनाया है AIS कोड
बस में इमरजेंसी एग्जिट होना जरूरी हैं. बस में एंट्री और निकास के दो अलग दरवाजे होने चाहिए. स्लीपर बसों में सीट या बर्थ का लेआउट AIS 119 के अनुसार होना चाहिए, मसलन 2×1 या 1×1 होना चाहिए. 2×2 स्लीपर बर्थ वर्जित है. 1 अक्टूबर 2023 के बाद बनी M-3 कैटेगरी की बसों में फायर डिटेक्शन एंड अलार्म सिस्टम, फायर अलर्ट एंड प्रिवेंशन सिस्टम और फायर डिटेक्शन एंड सप्रेशन सिस्टम अनिवार्य हैं. पुरानी बसों आग बुझाने के उपकरण चालू हालत में होना अनिवार्य है.
हिमांशु मिश्रा / आशीष श्रीवास्तव / शरत कुमार