न हिंदू, ना मुसलमान... फिर किस धर्म के लोग भारत में सबसे गरीब?

नीति आयोग के अध्यक्ष रह चुके प्रमुख अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हिंदुओं और मुस्लिमों की गरीबी दर का गैप कम हो गया है. देश में सबसे ज्यादा गरीबी के मामले में इन दोनों धर्मों से कहीं आगे एक तीसरा धर्म है.

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अरविंद पनगढ़िया की रिपोर्ट में दावा- खत्म हुई अत्यधिक गरीबी (Photo: Pexels) अरविंद पनगढ़िया की रिपोर्ट में दावा- खत्म हुई अत्यधिक गरीबी (Photo: Pexels)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:09 PM IST

मोदी सरकार में बड़े पैमाने पर अत्यधिक गरीबी खत्म हुई है. देश के प्रमुख अर्थशास्त्री और नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में अत्यधिक गरीबी लगभग खत्म हो गई. इतना ही नहीं, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में गरीबी किस धर्म के लोगों में सबसे ज्यादा है. 

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अरविंद पनगढ़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के संस्थापक  विशाल मोरे की संयुक्त रिपोर्ट इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 और 2023-24 के बीच भारत ने अत्यधिक गरीबी पर अंकुश लग गया है. 

रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंदुओं में अत्यंत गरीबी मुसलमानों से थोड़ी ज्यादा है, लेकिन देश में सबसे ज्यादा गरीबी ईसाई समुदाय के लोगों में है. उन्होंने बताया है कि देश में किस धर्म के लोगों में कितने फीसदी लोग अत्यंत गरीब हैं. 

धार्मिक आधार पर गरीबी दर?

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया द्वारा प्रस्तुत एक ताजा शोधपत्र के अनुसार भारत में सबसे गरीबी धार्मिक आधार पर ईसाई समुदाय में है, जबकि सिख और जैन समुदाय में अत्यंत गरीबी एकदम नहीं है. 

हिंदू: 2.3 फीसदी
मुस्लिम: 1.5 फीसदी
ईसाई: 5 फीसदी
बौद्ध: 3.5 फीसदी
सिख व जैन: 0 फीसदी

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इस पेपर का महत्वपूर्ण निष्कर्ष है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अत्यधिक गरीबी का अंतर लगभग खत्म हो चुका है. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा गरीबी जो हैं, वो ईसाई समुदाय के लोगों में है. उनमें गरीबी की दर 5 फीसदी है. वहीं, मुसलमानों में गरीबी दर (उनकी आबादी का) 1.5 फीसदी रह गई है, जबकि हिंदुओं में यह 2.3 फीसदी है. जो कि तुलना में थोड़ा ज्यादा है. 

हिंदू और मुसलमानें में गरीबी दर

देश में हिंदू और मुसलमानों में गरीबी दर की तुलना में थोड़ी कम हुई है. रिसर्च पेपर बताता है कि 2022-23 में भी यही अंतर देखा गया था  कि मुसलमानों में अत्यंत गरीबी दर 4 फीसदी थी, जबकि हिंदुओं में यह 4.8 फीसदी थी, यानी मुसलमानों में यह 0.8 प्रतिशत अंक कम थी. पेपर कहता है कि जब देश में अत्यधिक गरीबी लगभग खत्म हो चुकी है, तो यह धारणा कि मुसलमानों में हिंदुओं की तुलना में गरीबी ज्यादा है, कम से कम अत्यधिक गरीबी के मामले में अब सही नहीं है. 

रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू में 2.3 फीसदी लोग अत्यंत गरीब हैं जबकि मुसलमानों में 1.5 फीसदी लोग अत्यंत गरीब हैं.  इसे अगर ग्रामीण इलाकों के स्तर पर देखते हैं तो गरीब के रूप में वर्गीकृत मुसलमान 1.6 फीसदी थी, जबकि हिंदुओं में 2.8 फीसदी थी. वहीं, शहरी क्षेत्रों में 2011-12 में मुसलमानों में गरीबी 20.8 फीसदी थी और हिंदुओं में 12.5 फीसदी थी. 2023-24 मुसलमानों 1.2 फीसदी और हिंदुओं में 1 फीसदी रह गई है. 

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अत्यंत गरीबी नापने का क्या पैमाना

देश में अत्यंत गरीबी नापने का क्या पैमाना है. विश्व बैंक प्रति दिन तीन डॉलर से कम पर जीवनयापन को अत्यधिक गरीबी मानता है (PPP के आधार पर). यह सीमा तेंदुलकर गरीबी रेखा के करीब मानी जाती है, जो भारत में आधिकारिक तौर पर अपनाई गई आखिरी गरीबी रेखा थी. रिपोर्ट ने सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक समूहों के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी इलाकों, दोनों में गरीबी का अनुमान लगाया है. इसमें कहा गया है कि 2011-12 से 2023-24 के बीच गरीबी में गिरावट पूरे देश में बड़ी और व्यापक रही है. 

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देश में अब महज 7 करोड़ लोग बेहद गरीब, बढ़ते विकास दर के बीच बीते एक दशक के दौरान रोजगार में भी हुई वृद्धि है. केंद्र सरकार के उपभोग व्यय सर्वेक्षण (2011-12, 2022-23 और 2023-24) के ताजा डेटा का उपयोग करते हुए यह आकलन किया गया है।. तेंदुलकर पद्धति के आधार पर गरीबी रेखा 2011-12 में प्रति व्यक्ति प्रति माह 932 रुपये, 2022-23 में 1,714 रुपये और 2023-24 में 1,804 रुपये मानी गई.  1804 रुपये से कम कमाने वाले को अत्यंत गरीब माना जाता है. 

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रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल गरीबी 2011-12 के 21.9 फीसदी से घटकर 2023-24 में 2.3 फीसदी हो गई. इस तरह 12 सालों में 19.7 फीसदी अंकों की कमी आई है, जो लगभग हर साल 1.64 फीसदी अंक की गिरावट है.  देश के सभी सामाजिक समूह में एससी, एसटी, ओबीसी और अगड़ी जाति, सबमें अत्यंत गरीबी में तेज गिरावट दिखी., पिछले दो दशकों में तेज आर्थिक वृद्धि ने लगभग सभी समूहों को अत्यधिक गरीबी की सीमा से ऊपर आने में मदद की है. हालांकि, अभी भी अत्यधिक गरीबी ज्यादातर आदिवासी समुदायों में अधिक दिखाई देती है.

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