'धर्मनिरपेक्षता का मतलब जियो और जीने दो', SC ने यूपी मदरसा एक्ट मामले में फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि 'धर्मनिरपेक्षता का मतलब है जियो और जीने दो'. ये बातें सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहीं जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक ठहराया गया था.

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कनु सारदा

  • नई दिल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 7:59 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि 'धर्मनिरपेक्षता का मतलब है जियो और जीने दो'. ये बातें सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहीं जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक ठहराया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा. 

सभी धर्मों में धार्मिक निर्देश

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इस मामले में दो दिन की सुनवाई के बाद सीजेआई डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, 'हमें इसे देश के व्यापक दृष्टिकोण से देखना है - हिंदू, सिख, ईसाई आदि में धार्मिक निर्देश हैं. देश को संस्कृतियों, सभ्यताओं और धर्मों का मिश्रण होना चाहिए.' जस्टिस जे बी पारदीवाला ने वरिष्ठ वकील गुरुकृष्ण कुमार के तर्कों का जवाब देते हुए कहा, 'धर्म का अध्ययन संविधान द्वारा निषिद्ध नहीं है और यहीं पर आपका तर्क कि उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा से वंचित किया जा रहा है, विफल होता है.'

मदरसा पाठ्यक्रम पर सवाल

वरिष्ठ वकील गुरुकृष्ण कुमार ने कहा, 'जो पाठ्यक्रम है वह केवल एक बूंद मात्र धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का है. यही समस्या को बढ़ाता है.' इस पर सीजेआई ने कहा, "बौद्ध भिक्षुओं को कैसे प्रशिक्षित किया जाता है? अगर सरकार कहती है कि उन्हें कुछ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाए तो यह देश की भावना है.'

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यह भी पढ़ें: क्या मदरसे का छात्र NEET एग्जाम में शामिल हो सकता है? मदरसा एक्ट पर सुनवाई के दौरान CJI ने पूछा ये सवाल

भारत एक धार्मिक देश है

मुख्य न्यायाधीश ने भारत को एक धार्मिक देश बताते हुए कहा, "सबसे पहले धार्मिक निर्देश हमारे देश में कभी भी नकारात्मक नहीं रहे हैं और दूसरी बात, राज्य नियंत्रण की मात्रा संस्थान के प्रकार पर निर्भर करेगी - एक इंजीनियरिंग कॉलेज में कहा जाएगा कि धर्मनिरपेक्ष शिक्षा दी जाए, लेकिन एक धार्मिक संस्थान के लिए इसका उद्देश्य अलग है. यह मूलतः एक धार्मिक देश है."

धर्मनिरपेक्षता का मतलब जियो और जीने दो

इससे पहले, वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि "अनुच्छेद 28(2) अनुच्छेद 28(1) का अपवाद है, हम धर्मार्थ ट्रस्ट के तहत धार्मिक निर्देश रख सकते हैं. हाई कोर्ट कहता है कि मदरसे बंद कर दिए जाएंगे और बच्चे सामान्य शिक्षा प्राप्त करेंगे - मेरा मौलिक अधिकार उल्लंघन हो रहा है क्योंकि मुझे धार्मिक निर्देश नहीं मिलेंगे."

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "अगर कोई छात्र स्वेच्छा से निर्देश प्राप्त करना चाहता है, तो यह अनुच्छेद 28(3) के तहत आता है, यह मान्यता देता है कि धार्मिक निर्देश राज्य द्वारा आंशिक रूप से सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा प्रदान किए जा सकते हैं, लेकिन आप छात्र को मजबूर नहीं कर सकते."

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मामला क्या है?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की सुनवाई कर रही है जिसमें हाई कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी गई है जो अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 21A के खिलाफ मानते हुए रद्द कर दिया था. याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष यह तर्क किया कि कोर्ट का निर्णय लगभग 10,000 मदरसा शिक्षकों और 26 लाख मदरसा छात्रों को संकट में छोड़ देगा.

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