संघ के 100 साल: RSS का वो स्वयंसेवक जो बैन के खिलाफ सीधे-सीधे पटेल से उलझ गया

संघ और सरदार पटेल के बीच रिश्तों को लेकर काफी कुछ लिखा पढ़ा गया है. तमाम निष्कर्षों के बाद कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सरदार पटेल संघ के उस वक्त के अधिकारियों के लिए घर के बुजुर्ग जैसे थे. जो कभी मदद करते थे तो, कभी डांट भी सुनाया करते थे. एक बार की बात जब गोलवलकर जेल में थे तो पटेल 10 मिनट तक लगातार संघ की कमियों को लेकर बोलते रहे. फिर बारी आई एकनाथ रानडे की. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.

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संघ और सरदार पटेल के बीच वैचारिक स्तर पर बहस हुआ करती थी. (Photo: AI generated) संघ और सरदार पटेल के बीच वैचारिक स्तर पर बहस हुआ करती थी. (Photo: AI generated)

विष्णु शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:07 PM IST

सरदार वल्लभ भाई पटेल का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अलग सा रिश्ता था. जहां संघ के स्वयंसेवक उनका इतना सम्मान करते हैं कि एक स्वयंसेवक ने उनके सम्मान में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा बना दी, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस इस बात पर जोर देती आई है कि संघ से सरदार पटेल इतने नाराज थे कि उस पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि मानने वाले मानते हैं कि सरदार पटेल संघ के उस वक्त के अधिकारियों के लिए घर के बुजुर्ग जैसे थे, जो उनकी परेशानी समझकर सहायता भी करते थे, तो कभी कभी डांट भी देते थे.

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इसके बावजूद एक स्वयंसेवक ऐसा भी था, जिसने मुद्दे की बात पर सरदार पटेल से सीधी बहस की. ये महाशय थे एकनाथ रानडे, आज उन्हें कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद के शिला स्मारक के शिल्पी के तौर पर ज्यादा जाना जाता है. 

रानडे की सरदार पटेल से तब मुलाकात हुई जब संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, गुरु गोलवलकर जेल में थे. दरअसल उन दिनों एकनाथ को भी नागपुर से दिल्ली भेजा गया था, ताकि मध्यस्थों को कुछ सहायता की जरूरत हो तो वो उसे कर सकें. साथ ही उन्हें अपने स्तर पर अलग से भी प्रयास करने थे. उनकी सरदार पटेल से पहली मुलाकात दिल्ली की बजाय मसूरी में हुई.

पटेल तब मसूरी के बिरला हाउस में रुके थे, सो बैठक में जीडी बिरला खुद भी उपस्थित थे. एकनाथ रानडे ने महसूस किया कि प्रतिबंध के चलते संघ के अधिकारी, स्वयंसेवक जो परेशानियां झेल रहे थे, सरकार पटेल उसको सुनने के बजाय आक्रामक मूड में थे.
 
और सरदार बस सुनते रहे

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पूरे 10 मिनट तक सरदार पटेल बिना रुके बोलते रहे और संघ की कमियां निकालते रहे,  संघ के स्वयंसेवकों द्वारा हिंसक कृत्य करने का दावा करते रहे. वह लगातार बोलते रहे और सम्मान के साथ एकनाथ रानडे सुनते रहे, बीच में एक बार भी टोका नहीं. जब वह चुप हो गए तो एकनाथ ने उन्हें पूछा कि, क्या वाकई में उन सब आरोपों पर विश्वास करते हैं, जो उन्होंने अभी लगाए हैं? उन्होंने ये भी पूछा कि क्या वो सच में मानते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या में RSS का जरा सा भी हाथ है? तब सरदार पटेल ने जवाब में कहा कि नहीं.. लेकिन संघ एक मनोवैज्ञानिक वातावरण उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार है, जिसमें कि ये हिंसा होनी सम्भव हो गई.    

तब एकनाथ रानडे ने उनसे कहा कि, ‘हमने संघ में अखंड हिंदुस्तान पर विश्वास किया था, हम भारत विभाजन के एकदम विरुद्ध थे. अगर इसे हिंसा के लिए मनोवैज्ञानिक माहौल बनाने के रूप में समझा जा सकता है, तो मैं इसके लिए दोषी मानूंगा’.

एकनाथ रानडे यहीं नहीं रुके, संघ पर आरोप लगने के बाद वो भूल गए कि आरोप कौन लगा रहा है, उनको तो जवाब देना था. आगे बोले, ‘1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बाद में कितनी हिंसा हुई थी, ना जाने कितने लोग जिंदा जला दिए गए थे. इसलिए, इसी आधार पर, कांग्रेस को भी उस सारी हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि उसने एक ख़ास ‘मनोवैज्ञानिक माहौल’ बनाया था’.

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एकनाथ ने आगे कहा कि, ‘महात्मा की हत्या के बाद, श्रीगुरुजी सहित हजारों आरएसएस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया. इसके कारण, विशेष रूप से महाराष्ट्र में, व्यापक हिंसा, लूट, आगजनी और हत्या हुई, इसी कारण, भारत सरकार भी उस सारी हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होगी जिसने एक ‘मनोवैज्ञानिक माहौल’ बनाया’. बात भी सही थी कि सावरकर के भाई को हजारों की भीड़ ने लिंचिंग करके मार दिया था, हजारों चितपावन ब्राह्मण उसी तरह मारे गए थे, जैसे 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख.
 
बिरला बोले- ‘आपको अंदाजा है कि आप किससे बात कर रहे हैं’

सरदार पटेल सुनकर भी खामोश ही रहे लेकिन जीडी बिरला को एकनाथ रानडे का ये रवैया कतई पसंद नहीं आया. बिरला को लगा कि देख के गृहमंत्री और देश के इतने दमदार नेता सरदार पटेल के सामने कौन इतना दुस्साहस कर सकता है भला. तभी पटेल के बजाय बिरला बोले, एकनाथ की तरफ मुड़े और कहा- उम्मीद करता हूं कि आप को अंदाजा है कि आप किससे बात कर रहे हैं?’  

एकनाथ रानडे ने उनसे कहा कि अगर उन्होंने कुछ अनुचित कहा है, तो वे आगे कुछ नहीं कहना चाहेंगे और चलना पसंद करेंगे. उनके उठने से पहले सरदार ने उनसे कहा कि वे इस मामले पर गहराई से सोचें और फिर उनसे मिलें.

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अगली बार फिर दोनों की मुलाकात मसूरी में ही हुई. इस बार सरदार पटेल एकदम अलग औऱ बदले हुए नजर आए. उन्होंने कहा कि वह उनसे मिलने के लिए उत्सुक थे और आगे कहा कि ‘क्या आपने इस पर विचार किया है? आरएसएस पर प्रतिबंध है, लेकिन इन प्रतिबंधों में कुछ भी शाश्वत नहीं है. कांग्रेस पर भी प्रतिबंध हुआ करता था. हालांकि, ये प्रतिबंध किसी भी संगठन को ख़त्म नहीं करते. इसलिए, आरएसएस पर यह प्रतिबंध भी देर-सवेर हटना ही है. सवाल यह है कि आगे क्या?’

एकनाथ ने उन्हें बताया कि संघ का क्या रुख है; कि वह हिंदू संगठन और हिंदू संस्कृति में विश्वास करता है. इस पर सरदार ने कहा: ‘क्या आपको लगता है कि मैं अलग तरह से सोचता हूं?’ एकनाथ ने उन्हें बताया कि सभी कांग्रेसी उनकी तरह नहीं सोचते. इस पर सरदार ने कहा: ‘जो मैं आज कह रहा हूं, वही पूरी कांग्रेस कल कहेगी.’ उन्होंने कहा कि ‘नेहरू जैसे कुछ भाई हैं (चार भाई) जो अलग तरह से सोचते हैं और जो संगठन और संस्कृति की बातों से चिढ़ते हैं, लेकिन वो भी समझ जाएंगे. बात यह है कि क्या आप मेरे हाथ मज़बूत करेंगे?’ एकनाथजी ने उनसे कहा कि अगर ऐसा है, तो उन्हें उनके साथ हाथ मिलाने में खुशी होगी उन्होंने आगे कहा: ‘लेकिन किसी भी सहयोग से पहले, आपको कांग्रेसियों के मन से आरएसएस विरोधी जहर निकालना होगा.’
 
एकनाथजी ने स्पष्ट किया कि आरएसएस आदर्शों में रुचि रखता है, सत्ता में नहीं. इसके बाद, उन्होंने कहा कि ‘तब सब ठीक हो जाएगा.’ उन्होंने कहा कि उन्हें गुरुजी से मिलकर इस बारे में बात करनी होगी. कम्युनिस्टों की ओर स्पष्ट इशारा करते हुए, सरदार ने कहा कि कुछ लोग अराजकता और अव्यवस्था फैलाने में रुचि रखते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे उनका बहुत सम्मान करते हैं. लेकिन इस मुलाकात को ज्यादा दिन नहीं हुए और सरकार ने संघ पर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान कर दिया.

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