'भारत कभी भी परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा', जयशंकर की पाकिस्तान को दो टूक

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वडोदरा में एक यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों के दीक्षांत समारोह में कहा कि भारत कभी परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा. उन्होंने ने आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को कड़ी चेतावनी दी और भारत को एक "दुर्लभ सिविलाइज्ड राष्ट्र" बताया जो वैश्विक मंच पर अपनी सशक्त स्थिति स्थापित कर रहा है.

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पाकिस्तान को जयशंकर की दो टूक चेतावनी (फोटो क्रेडिट - पीटीआई) पाकिस्तान को जयशंकर की दो टूक चेतावनी (फोटो क्रेडिट - पीटीआई)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2025,
  • अपडेटेड 10:43 PM IST

गुजरात में स्थित एक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विदेशी छात्रों को संबोधित किया. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, वसुधैव कुटुंबकम और आत्मनिर्भर भारत के महत्व पर प्रकाश डाला. जयशंकर ने कहा कि भारत वैश्विक चुनौतियों का सामना करने, ग्लोबल साउथ की आवाज बनने और आतंकवाद के विरुद्ध अपनी जीरो टॉलरेंस नीति पर अडिग है.

परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा भारत

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एस जयशंकर ने कहा कि भारत कभी भी परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा. जो देश आतंकवाद को प्रायोजित और समर्थन करते हैं, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी चाहिए.

वैश्विक सहयोग का महत्व

उन्होंने कहा, यह विश्वविद्यालय के कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, लेकिन इससे भी अधिक यह उन विद्यार्थियों के व्यक्तिगत जीवन में एक निर्णायक क्षण है जो अपनी डिग्री पूरी कर रहे हैं. इस अवसर पर जो विचार मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं, वे केवल औपचारिक नहीं, बल्कि आपके लिए सार्थक भी हैं.

विदेशी छात्रों के समक्ष खड़े होकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की बात करना स्वाभाविक है. आखिरकार, आपकी भारत में पढ़ाई और प्रवास इसी विचार की अभिव्यक्ति है.

भारतीय दृष्टिकोण से वैश्विक जुड़ाव

एस जयशंकर ने कहा, यह भी उतना ही आवश्यक है कि भारतीय विद्यार्थी और शिक्षकगण भी इसकी महत्ता को समझें. इस विषय पर एक विशेष दृष्टिकोण है जो एक विदेश मंत्री ही प्रस्तुत कर सकता है.

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आज की दुनिया में असाधारण अवसर हैं. हालांकि चुनौतियां भी हैं, जिनसे निपटना साझेदारी और सहयोग के माध्यम से ही संभव है. कोई भी देश, चाहे वह कितना ही बड़ा या शक्तिशाली क्यों न हो, अकेले इन समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता. यही वैश्वीकरण की वास्तविकता है और शक्ति की सीमाओं की भी अभिव्यक्ति.

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तकनीक और संसाधन की साझेदारी

उन्होंने कहा, हम तकनीक की संभावनाओं की बहुत चर्चा करते हैं, लेकिन चाहे वह प्रतिभा हो, डेटा हो या संसाधन, इन्हें केवल राष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न या नियंत्रित नहीं किया जा सकता. वास्तव में, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक व्यवस्था की मूल अवधारणा यही है कि देशों को अपने पारस्परिक और सामूहिक लाभ के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए.

समकालीन वैश्विक विमर्श में भारत की भूमिका

एस जयशंकर ने कहा, शायद आपमें से कुछ सोच रहे होंगे कि मैं इतनी स्पष्ट बातों को क्यों दोहरा रहा हूं. इसका कारण यह है कि आज के वैश्विक विमर्श में इसके विपरीत कई धारणाएं प्रचलित हैं. कुछ लोग मित्रता को अधिक महत्व नहीं देते, जबकि कुछ ने अपनी नीतियों को कठोरता से संरचित कर लिया है.

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इसलिए, विदेशी छात्रों के संदर्भ में मैं ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की प्रासंगिकता को रेखांकित करता हूं, जैसे अभी आपके प्रेसिडेंट ने किया. भारत में वर्षों रहकर, मुझे विश्वास है कि आप सभी हमारी उदारता, बहुलवाद, विविधता, और दुनिया के साथ मिलकर आगे बढ़ने की परंपरा को समझ पाए होंगे.

भारत का समावेशी दृष्टिकोण

उन्होंने कहा, भारत ने हमेशा समानता को बढ़ावा दिया है, एकरूपता को नहीं. आप यह हमारी भाषाओं, विश्वासों, परंपराओं, भोजन और सामाजिक व्यवहार में देख सकते हैं. भारत की यह खुलापन ही हमें दुनिया के प्रति भी उतना ही खुला बनाता है. हम न तो दीवारें खड़ी करते हैं (वास्तविक या प्रतीकात्मक), और न ही दूसरों पर अपनी राह थोपते हैं.

भारत की वैश्विक सहायता

एस जयशंकर ने कहा, स्पष्टतः, लगभग 200 देशों की अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत एक बड़ा राष्ट्र है और हमारे भी अपने राष्ट्रीय हित हैं जिन्हें हम स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन हम इसे परस्पर समझ और लाभ के सिद्धांतों पर ही आगे बढ़ाते हैं. मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत की इसी सोच को आप अपने साथ लेकर जाएंगे.

कोविड के समय भारत की भूमिका

उन्होंने कहा, आजकल कुछ जगहों पर केवल लेन-देन के आधार पर देशों से संबंध बनाए जाते हैं. लेकिन कुछ समाजों में भावनाएं और मूल्य भी मायने रखते हैं. भारत ऐसे ही समाजों में आता है. अपने लक्ष्यों की पूर्ति करते हुए भी भारत ने हमेशा दुनिया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रति एक बड़ी जिम्मेदारी को प्राथमिकता दी है.

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हमारे संसाधन सीमित हो सकते हैं, लेकिन हमारा हृदय सदैव विशाल रहा है. इसी कारण, एक विकासशील देश होते हुए भी भारत ने 78 देशों में 600 से अधिक विकास परियोजनाएं आरंभ की हैं.

टीका और दवा आपूर्ति में भारत की भूमिका

एस जयशंकर ने कहा, कोविड-19 महामारी के दौरान, अपने देश की देखभाल करते हुए भी भारत ने 99 देशों को टीके और 150 देशों को दवाइयाँ उपलब्ध कराईं. जब हम ग्लोबल साउथ के हितों की बात करते हैं, तब केवल कोई ऐसा देश जो खुद उस समूह का सदस्य हो, ही वास्तव में सही निर्णय की सराहना कर सकता है.

भारत की विकास भागीदारी

उन्होंने कहा, भारत की कूटनीति का एक उद्देश्य है: अन्य देशों के साथ एकजुटता को बढ़ाना. कुछ देश इसे भौगोलिक और ऐतिहासिक आधार पर करते हैं, कुछ विश्वास, भाषा या संस्कृति के आधार पर. भारत ने निकटता, समाजशास्त्र और विरासत के संबंधों को विकास सहयोग में बदला है.

हम दो प्रमुख दृष्टिकोणों से काम करते हैं—पहला, अपने अनुभवों को साझा करना, क्योंकि वे भागीदार देशों की आवश्यकताओं के लिए अधिक प्रासंगिक हैं. दूसरा, क्षमता निर्माण को निरंतर मजबूत करना ताकि साझेदार देश अपने निर्णय बेहतर ढंग से ले सकें.

भारत की वैश्विक उपस्थिति

एस जयशंकर ने कहा, आज भारत की साझेदारी जल, बिजली, स्वास्थ्य, डिजिटल सेवा, शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में फैली हुई है. जल जीवन मिशन जैसी पहल अब तंजानिया और मोज़ाम्बीक जैसे देशों में भी लागू हो रही है.

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इसी प्रकार, भारतीय बिजली ट्रांसमिशन की क्षमताएं अब भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, नाइजीरिया, बेनिन और गाम्बिया में लागू हो रही हैं. स्वास्थ्य के क्षेत्र में, भारतीय दवाइयों ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवा को सुलभ और किफायती बनाए रखने में मदद की है. कैंसर उपचार की भारतीय मशीनें अब मंगोलिया, उज्बेकिस्तान, म्यांमार और केन्या जैसे देशों में कार्यरत हैं.

डिजिटल भारत का वैश्विक विस्तार

एस जयशंकर ने कहा, जन औषधि केंद्रों की शुरुआत भारत से हुई थी और अब यह पहल मौरिशस, नौरु और गुयाना तक पहुंच रही है. इंटरनेशनल सोलर अलायंस के माध्यम से अक्षय ऊर्जा, और डिजास्टर रेसीलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से आपदा प्रबंधन में भारत का अनुभव साझा किया जा रहा है.

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भारत का डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, जिससे आप सभी भारत में प्रतिदिन लाभान्वित होते हैं, अब श्रीलंका, केन्या, तंजानिया, कोलंबिया, क्यूबा और अंगोला जैसे देशों की रुचि का विषय बन चुका है.

दीर्घकालिक क्षमता निर्माण

उन्होंने कहा, हमारा उद्देश्य है कि हमारे अनुभवों के आधार पर अन्य समाजों में स्थायी क्षमताओं का निर्माण हो. इसमें इंजीनियर से लेकर सोलर मामा तक, व्यावसायिक प्रशिक्षण से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी, कर प्रणाली सुधार से लेकर सुरक्षा सुनिश्चित करने तक सब कुछ शामिल है.

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भारत की साझेदारी का दायरा लगातार बढ़ रहा है. यह प्रशिक्षकों और विद्यार्थियों के आदान-प्रदान से लेकर दूरस्थ शिक्षा और वर्चुअल स्वास्थ्य प्रशिक्षण तक फैला हुआ है.

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