पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु समझौते (सिंधु जल संधि) को रद्द करने का ऐलान किया. इसके बाद, भारत के फैसले के प्रभाव के बारे में सोशल मीडिया पर विराधभासी पोस्ट किए गए. कुछ भारतीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान में नदियां सूख रही हैं. जबकि पाकिस्तानी भारत पर बाढ़ लाने के लिए अचानक पानी छोड़ने का आरोप लगाते हैं. वास्तविकता इस ऑनलाइन शोर से बहुत दूर है.
इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम द्वारा एक्सेस किए गए ऑफिशियल डेटा और सैटेलाइट इमेजरी से पता चलता है कि सिंधु जल संधि (IWT) के तहत पाकिस्तान को आवंटित नदियां- सिंधु, चिनाब और झेलम (पश्चिमी नदियां) 30 अप्रैल तक अपने सामान्य मार्ग और गति से बह रही थीं.
इसका मतलब यह नहीं है कि इस कदम का पाकिस्तान पर कोई असर नहीं होगा. हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयरिंग का निलंबन और नदी के पानी का असंगत प्रवाह पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था, कृषि और बाढ़ प्रबंधन में अनिश्चितता पैदा करेगा.
हमने तीनों नदियों पर बने भारत के आखिरी बांध और पाकिस्तान के पहले बांध पर नज़र रखी, जिससे नदी के वॉटर स्टोरेज लेवल या चौड़ाई में कोई बदलाव न हो. अगर भारत अपने बांधों से कम पानी छोड़ता है, तो उसी नदी पर बने पहले बांध में पानी का बहाव कम होना चाहिए.
पाकिस्तान के सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, 24 अप्रैल को चिनाब नदी सियालकोट के मरला बांध पर 22,800 क्यूसेक (एक सेकंड में एक खास बिंदु से गुजरने वाला क्यूबिक फीट पानी) की दर से बह रही थी, जो भारत से पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद पहली बार था, जिस दिन भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित रखने ऐलान किया था. 30 अप्रैल को यह 26,268 क्यूसेक की दर से बह रही थी.
इसी तरह, 24 अप्रैल को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में मंगला बांध पर झेलम नदी का प्रवाह 44,822 क्यूसेक दर्ज किया गया और 30 अप्रैल को थोड़ा कम होकर 43,486 क्यूसेक हो गया.
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हालांकि, पाकिस्तान में प्रवेश बिंदुओं पर चिनाब और झेलम के दर्ज प्रवाह में उतार-चढ़ाव रहा है, लेकिन ऐसा कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है जिसे भारत द्वारा अपस्ट्रीम जलविद्युत परियोजनाओं पर नियंत्रण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके।
पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए डेटा की पुष्टि IWT निलंबन से पहले और बाद में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा कैप्चर की गई सैटेलाइट इमेज से होती है.
सैटेलाइट डेटा से साफ हुआ है कि भारत में बांधों- झेलम में उरी बांध, चिनाब में बगलिहार और सिंधु में निमू बाज़गो में नदी के पानी के प्रवाह में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है. पाकिस्तान में इन नदियों पर पहली वॉटर रेगुलेटिंग सुविधाओं- मंगला, मराला और पाकिस्तान पंजाब के कालाबाग में जिन्ना बैराज के मामले में भी यही स्थिति है.
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नल जैसा कंट्रोल नहीं
ऐसा नहीं है कि आपके पास कोई नल है, जिसे आप जब चाहें बंद कर सकते हैं. नदियों को कंट्रोल करना कोई आसान काम नहीं है. बड़ी परियोजनाओं के अभाव में यह करीब नामुमकिन है, जो नदी के पानी को संग्रहित और मोड़ सकती हैं.
भू-विश्लेषण विशेषज्ञ राज भगत स्थिति के बारे में बात करते हुए कहते हैं, "मौजूदा वक्त में, पश्चिमी नदियों के पानी को रोकना नामुमकिन है." उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि भविष्य में भी हमारे लिए ऐसा करना मुश्किल होगा.
उन्होंने कहा कि भारत के पास फिलहाल सिंधु नदी के बहाव को कंट्रोल करने के लिए व्यावहारिक रूप से कोई साधन नहीं है. भारत के पास नदी पर केवल एक छोटा सा बांध है, वह भी सैकड़ों किलोमीटर ऊपर लद्दाख में निमू बाजगो में है.
इन नदियों के नियमित जल के लिए, सिर्फ एक व्यावहारिक रास्ता है बड़े बांध और नहरों का निर्माण करना, जिससे सिंचाई के लिए भारत के अन्य इलाकों पानी को मोड़ा जा सके. जैसा कि इंडिया टुडे द्वारा पहले किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि हमें एक साल में तीन पश्चिमी नदियों में बहने वाले पानी की तादाद को स्टोर करने के लिए भाखड़ा नांगल के बराबर करीब 22 बांध बनाने की जरूरत है.
भारत के पास कोई भी 'स्टोरेज' बांध नहीं था, जो लंबे वक्त तक पानी स्टोर कर सके क्योंकि IWT पश्चिमी नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम पर इसे बनाने की छूट नहीं देता है. निर्माणाधीन पाकल दुल एकमात्र जलविद्युत परियोजना है, जिसे 'स्टोरेज' सुविधा के तौर पर चिन्हित किया गया है.
हालांकि, विशेषज्ञ राज भगत कहते हैं, "इस इलाके की भौगोलिक स्थिति बड़े बांधों के निर्माण की अनुमति नहीं देती है. सिर्फ एक नदी जिसका पानी एक हद तक मोड़ा जा सकता है, वह चेनाब है, जिसके लिए बड़ी तादाद में इन्वेस्ट की जरूरत होगी."
पर्यावरणविद् हिमांशु ठक्कर कहते हैं, "चेनाब नदी पर बांध बनाने के रिस्क बहुत ज्यादा हैं. हमारे पास पहले से ही इस बहुत ही नाजुक, आपदा संभावित इलाके में सबसे ज्यादा मौजूदा, निर्माणाधीन और नियोजित परियोजनाएं हैं. यह एक ऐसी जगह भी है, जहां विशेषज्ञों ने भूस्खलन, बाढ़, भूकंपीय गतिविधि और हिमनद झील के फटने से होने वाली बाढ़ के प्रमुख जोखिमों के बारे में चेतावनी दी है." हिमांशु ठक्कर, गैर-लाभकारी दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स, एंड पीपल (SANDRP) के समन्वयक कहते हैं.
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पाकिस्तान पर क्या असर?
इस संधि में पाकिस्तान के लिए नदी के पानी के पूर्वानुमानित प्रवाह का प्रावधान किया गया है. पाकिस्तान की संपूर्ण सिंचाई, ऊर्जा और जल प्रबंधन प्रणाली इसी पूर्वानुमान के इर्द-गिर्द बनी है.
पाकिस्तान में बीज बोना और नहरों का शेड्यूल इसी पूर्वानुमानित प्रवाह पर आधारित है. इस निलंबन की वजह से भारत द्वारा नदी के प्रवाह के आंकड़ों को साझा नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि भारत में सूखे और बाढ़ दोनों का खतरा हो सकता है.
15.2 करोड़ से ज्यादा पाकिस्तानियों की आजीविका सिंधु नदी से जुड़ी हुई है. यह खाद्य उत्पादन, बिजली उत्पादन और आर्थिक गतिविधियों के लिए एक अहम संसाधन है, जो इसे एक जरूरी लाइफलाइन बनाता है.
शुभम तिवारी