लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर चली विशेष चर्चा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कांग्रेस और उसके नेताओं पर तीखा हमला बोला. उन्होंने बिना नाम लिए इशारों-इशारों में कहा कि जिन्ना के चश्मे से भारत देखने वालों को ही ‘वंदे मातरम्’ सांप्रदायिक लगता है.
सदन में बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'बंगाल विभाजन के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान वंदे मातरम की गूंज जनमानस में बैठी. ब्रिटिश हुकूमत ने इसके खिलाफ एक सर्कुलर जारी किया, लेकिन फिर भी ब्रिटिश हुकूमत लोगों के मानस से वंदे मातरम् को नहीं निकाल सकी. राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए उस समय वंदे मातरम् समिति भी बनाई गई थी. 1906 में जब पहली बार भारत का पहला झंडा बनाया गया, तब उसके मध्य में वंदे मातरम् लिखा था. वंदे मातरम् नाम से अखबार भी था.'
'उस्मानिया यूनिवर्सिटी में भी वंदे मातरम् पर था प्रतिबंध'
उन्होंने कहा कि अप्रैल 1906 में ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम का नारा लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. लोगों ने खुलेआम इस आदेश की अवहेलना की... इसी तरह, उस्मानिया विश्वविद्यालय में भी वंदे मातरम का नारा लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस आदेश का विरोध करने के लिए राम चंद्र नाम के एक छात्र को जेल में डाल दिया गया था.
'वंदे मातरम् के साथ नहीं हुआ न्याय'
राजनाथ सिंह ने कहा, 'वंदे मातरम् के साथ जो न्याय होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. जन-गण-मण राष्ट्रीय भावना में बसी, लेकिन वंदे मातरम् को दबाया गया. वंदे मातरम् के साथ हुए अन्याय के बारे में हर किसी को जानना चाहिए. वंदे मातरम् के साथ इतिहास का एक बड़ा छल हुआ. इस अन्याय के बावजूद वंदे मातरम् का महत्व कभी कम नहीं हो पाया. वंदे मातरम् स्वयं में पूर्ण है, लेकिन इसे कांग्रेस ने अपूर्ण बनाने की कोशिश की गई.'
'मां भारती की दो आंखें'
राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि वंदे मातरम् के साथ जो अन्याय हुआ, उसे जानना जरूरी है. क्योंकि देश की भावी पीढ़ी वंदे मातरम् के साथ अन्याय करने वालों की मंशा जान सके. आज हम वंदे मातरम् की गरिमा को फिर से स्थापित कर रहे हैं.
राजनाथ सिंह ने कहा कि कुछ लोग ये नैरेटिव बनाने की कोशिश कर सकते हैं कि जन-गण-मण और वंदे मातरम् के बीच एक दीवार खड़ी की जा रही है. ऐसा नैरेटिव बनाने का प्रयास विभाजनकारी सोच है. जो लोग यह बात नहीं समझते है वह मां की ममता को भी नहीं समझ सकते.
राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि जन-गण-मन और वंदे मातरम मां भारती की दो आंखें है. मां भारती के दो अमर सपूतों की किलकारियां हैं. वंदे मातरम का उदघोष किसी के खिलाफ नहीं है. बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान की अभिव्यक्ति है.
‘आनंदमठ कभी इस्लाम-विरोधी नहीं था’
रक्षा मंत्री ने ‘आनंदमठ’ और ‘वंदे मातरम्’ पर लगने वाले सांप्रदायिकता के आरोपों को सिरे से खारिज किया. उन्होंने कहा, 'उपन्यास ‘आनंदमठ’ कभी भी इस्लाम-विरोधी नहीं था. आनंद मठ में एक पात्र जब वंदे मातरम् गाता है, तो दूसरा पात्र पूछता है कि ये माता कौन है? तब वह कहता है जन्मभूमि. हमने ‘वंदे मातरम्’ के सिर्फ पहले दो पद ही सुने हैं, बाकी पदों को भुला दिया गया. अब समय आ गया है कि हम पूरे गीत को समझें. बंकिम बाबू ने बाकी पदों में भारत मां की पूरी महिमा गाई है.'
राजनाथ सिंह ने कहा कि वंदे मातरम् के दो पद को सभी ने सुने हैं, लेकिन और पदों के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं. अब उन पदों को पूरी तरह से समझने का समय आ गया है. वंदे मातरम् की जिन पदों को भूला दिया गया है, उसमें बंकिम चंद्र चटर्जी भारत के बारे में बताते हैं.
रक्षा मंत्री ने कहा, 'वंदे मातरम् केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं था. ये पूरे भारत में फैल गया, उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक. पंजाब, तमिलनाडु और बॉम्बे प्रेसीडेंसी के लोगों ने भी वंदे मातरम् का जाप करना शुरू कर दिया. यह सिर्फ भारत में ही नहीं था, देश के बाहर भी, वंदे मातरम् विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए एक मंत्र के रूप में कार्य करता था. लंदन, पेरिस, जिनेवा, कनाडा, जहां भी भारतीय थे, वे वंदे मातरम् का जाप करते रहे.'
'वंदे मातरम् को सम्मान दिलाने का संकल्प'
उन्होंने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने पूरे देश में वंदे मातरम की 151वीं वर्षगांठ बड़े उत्साह के साथ मनाने का फैसला किया है. ये उत्सव केवल प्रतीकात्मक नहीं होगा. यह दिखावे के लिए नहीं है. ये वंदे मातरम् को वह सम्मान दिलाने का संकल्प है जिसका वह वास्तव में हकदार है.
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