स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन तैयार करने वाले पिंगली वैंकेया की मंगलवार को 146वीं जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. पीएम ने ट्वीट करके कहा है कि हमारा देश तिरंगा देने के उनके प्रयासों के लिए उनका सदा ऋणी रहेगा, जिस पर हमें बहुत गर्व है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा कि तिरंगे से शक्ति और प्रेरणा लेते हुए हम राष्ट्र की प्रगति के लिए कार्य करते रहें. पीएम ने पिंगली वैंकेया के सम्मान में अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल की तस्वीर पर तिरंगा लगा दिया है और देशवासियों से भी ऐसा करने का आग्रह किया है. पिंगली वैंकेया का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम शहर में हुआ था.
विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया गया
वहीं संस्कृति मंत्रालय ने दिल्ली में तिरंगा उत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें पिंगली वैंकेया की याद में एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया है. इस कार्यक्रम में पिंगली वैंकेया का परिवार भी उपस्थित था. इन्हें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सम्मानित किया.
ब्रिटिश सैनिकों की राष्ट्रीयता से हुए थे प्रभावित
पिंगली वैंकेया को युवावस्था में ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिक के रूप में युद्ध लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका भेजा गया था. युद्ध के दौरान उन्होंने देखा कि ब्रिटिश सैनिकों में राष्ट्रीयता की भावना भरने में उनके ध्वज यूनियन जैक की बहुत बड़ी भूमिका है. इस बात से वह इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने भारत के राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना कर ली.
30 से ज्यादा ध्वजों के डिजाइन स्टडी किए थे
पिंगली वैंकेया देश के लिए एक ऐसा झंडा बनाना चाहते थे जो देश के इतिहास को दर्शाए और उसकी आत्मा का प्रतीक बन जाए, इसके लिए उन्होंने वर्ष 1916 से 1921 तक 30 से ज्यादा देशों के राष्ट्रीय झंडों के डिजाइन का अध्ययन किया.
विजयवाड़ा अधिवेशन में पेश किया था डिजाइन
वर्ष 1921 में विजयवाड़ा में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वैंकेया ने महात्मा गांधी को लाल-हरे रंग के झंडे का डिजाइन दिखाया, जिसमें लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था.
इसके बाद महात्मा गांधी के सुझाव पर पिंगली वैंकेया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया. इसमें चरखे को जोड़ा क्योंकि गांधी जी चरखे को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति का प्रतीक मानते थे.गांधीजी का कहना था कि चरखा भारत के लोगों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देगा.
1931 में लाल रंग हटाकर केसरिया जोड़ा गया
1931 में कुछ बदलाव के साथ तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाने का प्रस्ताव पास किया गया. जैसे कि - झंडे में लाल रंग की जगह केसरिया रंग को जोड़ा गया, केसरिया रंग को हिम्मत, त्याग और बलिदान का प्रतीक माना जाता है. इसके साथ ही देश को केसरिया, हरे और सफेद रंग की पट्टी पर चरखे वाला तिरंगा मिला.
जुलाई 1947 में संविधान सभा में पिंगली वैंकेया के डिजाइन किए गए तिरंगे को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया, लेकिन कुछ समय बाद तिरंगे में संशोधन किया गया. इसमें चरखे को हटाकर अशोक चक्र शामिल किया गया. यह एक नीला चक्र था, जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है. तब से तिरंगे का यही डिजाइन देश के गौरव का प्रतीक बना हुआ है.
इन नामों से भी जाने जाते थे वैंकेया
पिंगली वैंकेया एक स्वतंत्रता सैनानी थे. उन्होंने महात्मा गांधी के साथ पचास वर्षों तक देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया.वह डायमंड माइनिंग के एक्सपर्ट भी थे, इसलिए लोग उन्हें डायमंड वैंकेया भी कहते थे. पिंगली वैंकेया ने कॉटन की अलग-अलग किस्मों पर कई रिसर्च की, इसलिए उन्हें पट्टी वैंकेया यानी कॉटन वैंकेया भी कहा जाता था.
चार भाषाओं के भी जानकार थे
पिंगली वैंकेया को कई भाषाओं का ज्ञान था. वह अंग्रेजी और हिंदी के अलावा उर्दू और जापानी भाषा में भी पारंगत थे. उन्होंने जियोलॉजी में पीएचडी की थी. उन्होंने अपने गृहनगर मछलीपट्टनम में एक शैक्षिक संस्थान की शुरुआत भी की थी. हालांकि उनके जीवन के अंतिम वर्ष गुमनामी और गरीबी में बीते. 1963 में विजयवाड़ा में उनका निधन हो गया.
46 साल बाद वैंकेया को मिली पहचान
पिंगली वैंकेया की मौत के 46 साल बाद 2009 में भारतीय डाक विभाग ने उनके नाम से डाक टिकट जारी किया. इसके बाद 2014 में ऑल इंडिया रेडियो के विजयवाड़ा स्टेशन का नाम उनके नाम पर रखा गया.
(आजतक ब्यूरो)
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