महाराष्ट्र: अपने ही गढ़ में पिछड़े शरद पवार... मजबूत पकड़ वाली बेल्ट में ढीला रहा प्रदर्शन

शरद पवार की एनसीपी, जो कभी महाराष्ट्र के शुगर बेल्ट और सहकारी क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखती थी, 2024 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पिछड़ गई. पार्टी ने 86 में से सिर्फ 10 सीटें जीतीं, जिससे उसका प्रभाव तेजी से घटता दिख रहा है.

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शरद पवार (फाइल फोटो) शरद पवार (फाइल फोटो)

ओमकार

  • पुणे,
  • 26 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ये साफ हो गया कि शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP-शरद गुट) महाविकास अघाड़ी (MVA) के सहयोगी दलों में सबसे कमजोर साबित हुई है. NCP (शरद गुट), जिसने लोकसभा चुनाव में 80% की शानदार स्ट्राइक रेट दर्ज की थी, इस बार विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पिछड़ गई. शरद पवार की पार्टी ने 86 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 10 पर जीत हासिल कर पाई.  

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एनसीपी, जो कभी महाराष्ट्र के शुगर बेल्ट और सहकारी क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ के लिए जानी जाती थी, इस बार कमजोर नजर आई. एमवीए गठबंधन के तहत एनसीपी ने 86 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ 10 सीटें जीत पाई. शुगर बेल्ट की 27 सीटों में से एनसीपी (SP) को सिर्फ 7 सीटों पर सफलता मिली. इनमें से 4 सीटें सोलापुर जिले से आईं, जहां मोहिते-पाटिल परिवार के समर्थन वाले उम्मीदवारों ने मालशिरस, माढा, करमाला और मोहल सीटें जीतीं.  

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2019 के विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने पुणे जिले में 21 में से 11 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली. गौरतलब है कि तब पार्टी में टूट नहीं हुई थी.  

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पवार की राजनीति और शुगर लॉबी  

1950 के दशक में शुरू हुए महाराष्ट्र के सहकारी आंदोलन का नेतृत्व कांग्रेस नेताओं ने किया था. इस दौरान सहकारी शुगर फैक्ट्रियों की शुरुआत हुई, जिनके बाद प्राइवेट शुगर फैक्ट्रियां भी आईं. पश्चिमी महाराष्ट्र में राजनीति और सहकारी क्षेत्र का गहरा नाता रहा है. शरद पवार ने इस बात को भांपते हुए सहकारी बैंक, मिल्क यूनियन, शुगर फैक्ट्रियां और कृषि उपज मंडियों के चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारे. इससे न केवल स्थानीय लोगों का सहकारी संस्थानों से जुड़ाव बढ़ा, बल्कि पवार की राजनीति भी मजबूत हुई.  

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2023-24 में महाराष्ट्र में 207 चीनी मिलों ने गन्ने की पेराई की, जिनमें से 163 सहकारी थीं. शरद पवार वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट (VSI) के चेयरमैन हैं, जो राज्य का सबसे बड़ा शुगर इंस्टीट्यूट है. महाराष्ट्र की 252 चीनी मिलों में से 156 वीएसआई की सदस्य हैं. एनसीपी से जुड़े कई नेताओं के सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से 90 चीनी मिलों से संबंध हैं.  

लेकिन एनसीपी में फूट के बाद, कई नेता अजित पवार के खेमे में चले गए. यह वही ट्रेंड है जो 2014 के बाद देखने को मिला था, जब बीजेपी ने मराठा लॉबी से जुड़े कई उद्योगपतियों को अपने पाले में कर लिया. इससे बीजेपी ने पश्चिमी महाराष्ट्र के कई जिलों में अपनी पकड़ मजबूत की.  

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पश्चिमी महाराष्ट्र में बीजेपी का गणित  

2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन ने पश्चिमी महाराष्ट्र की 58 में से 44 सीटों पर जीत हासिल की. इनमें बीजेपी ने 24 सीटें जीतीं और अपना दबदबा कायम किया. इस जीत ने शरद पवार को करारा झटका दिया, जिनकी इस क्षेत्र में पहले मजबूत पकड़ थी.

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पश्चिमी महाराष्ट्र की 9 लोकसभा सीटों में एनसीपी (SP) सिर्फ 3 सीटें जीत पाई थी. चौथी सीट, सतारा, मामूली अंतर से उसतके हाथ से निकल गई थी. वहीं, कांग्रेस ने सोलापुर और कोल्हापुर की दो सीटें जीतीं. कोल्हापुर में शरद पवार ने दिल्ली हाईकमान से विचार-विमर्श के बाद शाहू छत्रपति को टिकट दिलवाया था.  

आगे की चुनौती  

इस बार के चुनाव में कांग्रेस को भी पश्चिमी महाराष्ट्र में बड़ा झटका लगा. पार्टी यहां सिर्फ 1 सीट जीत पाई, जहां पालुस-कडेगांव सीट से कांग्रेस विधायक विश्वजीत कदम ने अपनी सीट बचाई. 2019 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में 11 सीटें जीती थीं. विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अब पार्टी पुणे, सतारा, सोलापुर और कोल्हापुर जैसे प्रमुख जिलों में बिना किसी प्रतिनिधित्व के रह गई है.  

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एनसीपी (SP) की चुनाव में लगी यह चोट बताती है कि महाराष्ट्र की बदलती राजनीति में पार्टी को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. नतीजे पार्टी की रणनीति पर सवाल तो उठाते हैं और ये भी कि क्या एनसीपी अपना पुराना गढ़ वापस हासिल कर पाएगी. साथ ही शरद पवार की पार्टी के कमजोर होने से शुगर फैक्ट्रियों और सहकारी संस्थानों पर उनकी पकड़ ढीली होने की संभावना बढ़ गई है.

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