'सबूत पेश नहीं किए गए...', महाराष्ट्र का चुनावी परिणाम रद्द करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से खारिज

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव रद्द करने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि 20 नवंबर 2024 को मतदान का समय खत्म होने के बाद 76 लाख फर्जी वोट डाले गए. इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने कहा कि याचिका में कानूनी आधार और ठोस सबूतों की कमी है.

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महाराष्ट्र चुनाव-2024 में फर्जी वोटिंग का दावा किया गया था. (File photo) महाराष्ट्र चुनाव-2024 में फर्जी वोटिंग का दावा किया गया था. (File photo)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 10:40 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव रद्द करने की अर्जी को खारिज कर दी है. यह अर्जी विक्रोली निर्वाचन क्षेत्र के एक मतदाता चेतन चंद्रकांत अहिरे ने दायर की थी. उनका आरोप था कि 2024 नवंबर में हुए चुनाव के दौरान मतदान का समय समाप्त होने के बाद कथित तौर पर "76 लाख फर्जी वोट" डाले गए थे.

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि अहिरे की अर्जी में कानूनी योग्यता, सार और अधिकार का अभाव है.

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पिछले साल नवंबर 2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 66.05% मतदान हुआ था, जो 1995 से अब तक का सबसे अधिक मतदान प्रतिशत रहा था. इन चुनावों में बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं और उसके गठबंधन को 288 में से 235 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी खारिज की थी याचिका

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी 25 जून 2025 को अहिरे की याचिका खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट में जस्टिस जीएस कुलकर्णी और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की बेंच ने कहा था कि इस मामले में कोई ठोस आधार पेश नहीं किया गया.

सुप्रीम कोर्ट से की गई थी चुनावी परिणाम रद्द करने की मांग

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सुप्रीम कोर्ट में अहिरे ने यह मांग की थी कि महाराष्ट्र के सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों के परिणाम रद्द किए जाएं, विजयी उम्मीदवारों को जारी किए गए चुनाव प्रमाण पत्र वापस लिए जाएं और मतपत्रों का दोबारा उपयोग शुरू किया जाए. उन्होंने दावा किया कि मतदान के दिन 20 नवंबर 2024 को शाम 6 बजे के बाद लगभग 76 लाख वोट अवैध रूप से डाले गए.

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अहिरे ने अपने दावे के समर्थन में एक आरटीआई का हवाला दिया और कहा कि इन कथित अतिरिक्त वोटों का कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की दलीलें कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हैं और मामले में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया.

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