उत्तर भारत में हर साल सितंबर से ही हवा में स्मॉग बढ़ने लगता है. इस साल भी दिल्ली और उसके आस-पास के इलाके पहले से ही खराब एयर क्वालिटी वाले मौसम में प्रवेश कर चुके हैं, जबकि असली सर्दी और फसल जलाने का ज़ोर अभी आना बाकी है.
पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने की घटनाएं शुरू हो चुकी हैं. ICAR–IARI के अनुसार, पंजाब में अमृतसर जिले में सबसे ज्यादा आग की घटनाएं दर्ज हुई हैं. कुल संख्या अभी अक्टूबर-नवंबर के पीक मुकाबले कम है, लेकिन यह बात साफ है कि पराली जलाने की शुरुआत तेज हो चुकी है. मानसून सीज़न खत्म होने के बाद और उत्तर-पश्चिमी हवाओं के बहने से यह धुआं दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच सकता है.
15 से 21 सितंबर के बीच उत्तर भारत में 64 स्टबल बर्निंग (पराली जलाने) की घटनाएं हुईं, जिनमें से 56 पंजाब में थीं. यह संख्या पिछले साल 7 और 2021 के 24 से काफी ज्यादा है. हरियाणा में 3 और यूपी में 4 घटनाएं हुईं, यह पिछले सालों के समान ही हैं. पंजाब के अमृतसर और आसपास के इलाके शुरुआती पराली जलाने के मुख्य केंद्र बने हुए हैं.
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दिल्ली की हवा का हाल
दिल्ली की हवा सितंबर में पहले से ही खराब हो रही है. 2021 में सितंबर के अंत तक दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 76 था और अधिकांश दिन 'संतोषजनक' श्रेणी में थे. 2023 में यह औसत बढ़कर 97 हो गया, जिसमें कई दिन 'मध्यम' श्रेणी में आ गए. 2024 में भी यही पैटर्न रहा. इस तीन साल के आंकड़ों से यह साफ दिखता है कि सितंबर में हवा की गुणवत्ता खराब होना शुरू हो गई है, जो असली प्रदूषण के मौसम की चेतावनी है.
पराली जलाने से प्रदूषण
पराली जलाने से बड़ी मात्रा में प्रदूषण निकलता है. इसमें करीब 92 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड होती है, साथ ही कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और छोटे कण भी शामिल होते हैं. एक टन पराली जलाने पर 1.4 टन से ज्यादा CO2 और अन्य हानिकारक गैसें निकलती हैं. खासतौर पर धान की भूसी लगभग 40 फीसदी प्रदूषण का कारण बनती है, जो इसे सबसे बड़ा प्रदूषक बनाती है.
पियूष अग्रवाल