सैफ अली खाने के परिवार को SC से राहत, आखिरी नवाब की संपत्ति मामले में HC के फैसले पर लगी रोक

भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की संपत्ति पर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें मामले को फिर से सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेजा गया था.

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सुप्रीम कोर्ट से सैफ अली खान को बड़ी राहत (Photo: File) सुप्रीम कोर्ट से सैफ अली खान को बड़ी राहत (Photo: File)

अनीषा माथुर / संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 8:14 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल के नवाब की संपत्ति से जुड़े एक विवाद में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदुरकर की बेंच ने यह फैसला दिया. सैफ अली खान के चचेरे भाई उमर अली और राशिद अली की याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. 

दरअसल, हाई कोर्ट ने मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजा था, जिसका याचिकाकर्ताओं ने विरोध किया. यह मामला भोपाल के अंतिम शासक नवाब हमीदुल्लाह खान की निजी संपत्ति से संबंधित है.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदुरकर की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. अदालत ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के 30 जून, 2025 के आदेश पर रोक लगा दी है. हाई कोर्ट ने इस आदेश में ट्रायल कोर्ट के 14 फरवरी, 2000 के फैसले को रद्द कर दिया था. 

पुराने फैसले में नवाब की बेटी साजिदा सुल्तान, उनके बेटे दिवंगत मंसूर अली खान और उनके उत्तराधिकारियों अभिनेता सैफ अली खान, सोहा अली खान, सबा सुल्तान और अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के नवाब की संपत्ति पर विशेष अधिकार को बरकरार रखा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की बात सुनी और नोटिस जारी किया है.

यह भी पढ़ें: सैफ अली खान केस: हमले के आरोपी शरीफुल इस्लाम का एक फिंगरप्रिंट मैच, मुंबई पुलिस का अब नया दावा

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क्या है संपत्ति का विवाद?

भोपाल के अंतिम शासक नवाब हमीदुल्लाह खान की निजी संपत्ति से यह मामला जुड़ा है. इस संपत्ति का अनुमानित मूल्य 15 हजार करोड़ रुपये है, जिस पर लंबे वक्त से विवाद चल रहा है. सैफ अली खान के चचेरे भाइयों ने हाई कोर्ट के उस आदेश का विरोध किया, जिसमें मामले को 50 साल बाद दोबारा ट्रायल कोर्ट में भेजा गया था. उनका तर्क था कि किसी भी पक्ष ने दोबारा ट्रायल की मांग नहीं की थी.

कानूनी दलील...

याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर वकील देवदत्त कामत ने कोर्ट में दलील दी. उन्होंने कहा कि यह एक नया सिविल मुकदमा है और इतने साल बाद इसे ट्रायल कोर्ट में वापस भेजना सही नहीं है. उन्होंने यह भी बताया कि हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए दोबारा ट्रायल का आदेश दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी और मामले पर नोटिस जारी कर दिया है.

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