बंगाल गवर्नर ने अपराजिता बिल ममता सरकार को वापस भेजा, केंद्र ने मृत्यु दंड के प्रावधान पर जताई थी चिंता

अपराजिता महिला एवं बाल संरक्षण विधेयक को सितंबर 2024 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित किया गया था. केंद्र के अनुसार, बिल में प्रस्तावित कई प्रावधान मौजूदा कानूनी मानदंडों की तुलना में अनुपातहीन हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय की अपराजिता बिल को लेकर एक प्रमुख आपत्ति बीएनएस की धारा 64 में संशोधन का प्रयास है. 

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केंद्र द्वारा संवैधानिक चिंताएं जताने के बाद बंगाल के राज्यपाल ने अपराजिता विधेयक को वापस ममता सरकार के पास भेजा. (File Photo: PTI) केंद्र द्वारा संवैधानिक चिंताएं जताने के बाद बंगाल के राज्यपाल ने अपराजिता विधेयक को वापस ममता सरकार के पास भेजा. (File Photo: PTI)

aajtak.in

  • कोलकाता,
  • 25 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:29 PM IST

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने अपराजिता बिल राज्य सरकार को वापस भेज दिया है. राज्यपाल बोस ने ममता सरकार से केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई गंभीर चिंताओं के मद्देनजर प्रस्तावित संशोधनों पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है. राजभवन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि बिल को लेकर आपत्तियां मुख्य रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) की ओर से उठाई गई हैं, जिसने विधेयक के कुछ हिस्सों- विशेषकर दंडात्मक प्रावधानों को अत्यधिक कठोर पाया है.

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अपराजिता महिला एवं बाल संरक्षण विधेयक को सितंबर 2024 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित किया गया था. यह बिल भारतीय न्याय संहिता (BNS) में, विशेष रूप से बलात्कार की सजा के संबंध में, महत्वपूर्ण बदलाव करने का प्रयास करता है. केंद्र के अनुसार, बिल में प्रस्तावित कई प्रावधान मौजूदा कानूनी मानदंडों की तुलना में अनुपातहीन हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय की अपराजिता बिल को लेकर एक प्रमुख आपत्ति बीएनएस की धारा 64 में संशोधन का प्रयास है. 

बिल में दिया गया है BNS में बदलाव का सुझाव 

इस विधेयक में बीएनएस की धारा 64 के तहत बलात्कार की सजा को वर्तमान न्यूनतम 10 वर्ष से बढ़ाकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड करने का सुझाव दिया गया है. गृह मंत्रालय ने कथित तौर पर बिल में इस प्रस्ताव को अत्यधिक कठोर तथा आनुपातिकता के सिद्धांतों के साथ मेल खाता हुआ नहीं माना है. अपराजिता बिल एक अन्य विवादास्पद प्रावधानों में बीएनएस की धारा 65 को हटाना शामिल है, जो वर्तमान में नाबालिग रेप पीड़ितों, विशेष रूप से 16 और 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है. 

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मृत्यदंड के प्रावधान पर केंद्र की क्या है आपत्ति?

केंद्र का मानना है कि इस धारा को समाप्त करने से सबसे कमजोर समूहों के लिए सुरक्षा कमजोर हो जाती है और बलात्कार कानूनों में आयु-आधारित वर्गीकरण के पीछे की मंशा कमजोर होने का खतरा है. सबसे अधिक आपत्ति इस विधेयक की धारा 66 को लेकर है, जो बलात्कार के उन मामलों में मृत्युदंड को अनिवार्य बनाता है, जहां पीड़िता की या तो मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से कोमा में चली जाती है. केंद्र का मानना है कि विधेयक में कुछ प्रावधान मौजूद हैं, विशेष रूप से बलात्कार के लिए मृत्युदंड से संबंधित प्रावधान, जो संवैधानिक प्रश्न उठाते हैं, जिसमें सजा देने में न्यायिक विवेकाधिकार को हटाना भी शामिल है, जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध है. 

केंद्रीय गृह मंत्रालय की इन आपत्तियों के बाद, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने विधेयक के लिए दी गई अपनी सहमति वापस ले ली और इसे भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख लिया. यह प्रक्रियात्मक कदम आमतौर पर उन मामलों में उठाया जाता है जहां किसी विधेयक की विषयवस्तु राष्ट्रीय कानूनों या संवैधानिक मूल्यों के साथ संभावित रूप से टकराव करती है. राज्यपाल के इस कदम के बावजूद, बंगाल सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि उन्हें इन आपत्तियों के संबंध में राजभवन या केंद्र से अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है. 

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आरजी कर केस के बाद लाया गया था यह बिल

कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में 9 अगस्त, 2024 को एक ट्रेनी डॉक्टर के कथित बलात्कार और हत्या के बाद व्यापक जन आक्रोश को देखते हुए यह विधेयक राज्य विधानसभा में पेश किया गया और पारित किया गया. इस भयावह घटना ने राज्य सरकार को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए और कड़े कानून बनाने के लिए प्रेरित किया. इस मामले का ट्रायल फास्ट ट्रैक कोर्ट में चला. अदालत ने आरोपी संजय रॉय को पीजी डॉक्टर के साथ रेप करने ​और फिर उसकी हत्या करने का दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. संजय रॉय ने निचली अदालत के इस फैसले को कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी है. (रिपोर्ट: तपस सेनगुप्ता)

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