रक्षा क्षेत्र के लिए एयरफोर्स का बड़ा फैसला, DRDO और BDL को मिली अस्त्र मिसाइलों के उत्पादन की मंजूरी

सीनियर रक्षा अधिकारियों ने इंडिया टुडे को बताया कि मौजूदा में एस्ट्रा मार्क 2 मिसाइलों पर काम चल रहा है और 130 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली इस मिसाइल का पहला टेस्ट आने वाले महीनों में होने वाला है. डीआरडीओ मिसाइल की रेंज बढ़ाने के लिए एक स्पेशल मोटर विकसित करने पर विचार कर रहा है.

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अस्त्र मिसाइल (फाइल फोटो) अस्त्र मिसाइल (फाइल फोटो)

मंजीत नेगी

  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 6:49 AM IST

भारतीय मिसाइल निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए भारतीय वायु सेना ने अपने Su-3O और LCA तेजस लड़ाकू विमानों के लिए एस्ट्रा एयर टू एयर मिसाइलों के उत्पादन के लिए DRDO और BDL को मंजूरी दे दी है. हाल ही में भारतीय वायु सेना के डिप्टी चीफ एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित की हैदराबाद यात्रा के दौरान DRDO और BDL संयोजन को इस कार्यक्रम के लिए मंजूरी दी गई. सीनियर रक्षा अधिकारियों ने इंडिया टुडे को बताया कि DRDO इस प्रोजेक्ट के लिए विकास एजेंसी है, जबकि BDL इसके लिए उत्पादन एजेंसी है.

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इस प्रोग्राम को भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के लिए रक्षा अधिग्रहण परिषद द्वारा मंजूरी दी गई थी, जिसके तहत 2022-23 में दोनों सर्विसेज के लिए 248 मिसाइलों का उत्पादन किया जाना था. हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की एस्ट्रा सीरीज एस्ट्रा प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसका मकसद भारतीय सशस्त्र बलों की हवाई युद्ध क्षमताओं को बढ़ाना है. एस्ट्रा मार्क 1 मिसाइल, मार्क 2 की पूर्ववर्ती है, जिसे पहले ही भारतीय वायु सेना और नौसेना दोनों में सफलतापूर्वक शामिल किया जा चुका है.

DRDO बना रहा स्पेशल मोटर

सीनियर रक्षा अधिकारियों ने इंडिया टुडे को बताया कि मौजूदा में एस्ट्रा मार्क 2 मिसाइलों पर काम चल रहा है और 130 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली इस मिसाइल का पहला टेस्ट आने वाले महीनों में होने वाला है. मिसाइल की रेंज बढ़ाने के लिए डीआरडीओ एक स्पेशल मोटर विकसित करने पर विचार कर रहा है. मौजूदा एस्ट्रा मार्क 1 मिसाइल की रेंज 100 किलोमीटर तक है, जिसे और भी बढ़ाया जा सकता है.

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यह भी पढ़ें: DRDO का नया 'अभ्यास'... मिसाइल का टारगेट बनने वाले यान का छह बार लगातार परीक्षण

देश से ही हवा से हवा में मार करने वाला मिसाइल सिस्टम विकसित करने का सफर 2001 में शुरू हुआ, जब डीआरडीओ ने तमाम स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा शुरू की. इसका मकसद विजुअल रेंज से परे दुश्मन के टार्गेट्स को भेदने में सक्षम मिसाइल सिस्टम को डिजाइन और विकसित करना था. इसके बाद हैदराबाद की रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (DRDL) को इस प्रोजेक्ट के लिए नोडल लैब के रूप में पहचाना गया. शुरुआती स्टडीज करने और प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए एक समर्पित टास्क फोर्स का गठन किया गया.

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