'आपकी गलती ठीक कर दूं, हम तिब्बत के साथ बॉर्डर साझा करते हैं न कि चीन के साथ...', अरुणाचल CM की बीजिंग को दो टूक

अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने इस बात को भी माना कि 1950 में चीन ने वहां आकर तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा किया, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, ये बात अलग है, आधिकारिक तौर पर तिब्बत अब चीन के अधीन है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन हम मूल रूप से तिब्बत के साथ सीमा साझा करते हैं. चीन के साथ नहीं.

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चीन ने 1950 में तिब्बत पर जबरन कब्जा किया है. (सांकेतिक तस्वीर) चीन ने 1950 में तिब्बत पर जबरन कब्जा किया है. (सांकेतिक तस्वीर)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 9:38 AM IST

नैरेटिव सेट करने के खेल में अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने चीन को उसी के स्टाइल में जवाब दिया है. पेमा खांडू ने गुरुवार को एक इंटरव्यू में कहा कि अरुणाचल प्रदेश की सीमा तिब्बत के साथ लगती है न कि चीन से. पहली बार में उनका ये बयान अजूबा और गलत लग सकता है. हमें शुरू से ही बताया गया है कि पूर्व दिशा में भारत की लगभग 1200 किलोमीटर की सीमा चीन से लगती है. 

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लेकिन इस तथ्य को अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने डिप्लोमैटिक ट्विस्ट दे दिया है. पेमा खांडू ने कहा कि भारत का अरुणाचल प्रदेश राज्य चीन के साथ नहीं बल्कि तिब्बत के साथ 1200 किलोमीटर की सीमा साझा करता है. 

पीटीआई के साथ इंटरव्यू में सीएम पेमा खांडू ने ये बयान तब दिया है जब दलाई लामा के बहाने तिब्बत चर्चा में है. इसके अलावा चीन कई बार अरुणाचल प्रदेश पर अपना अवैध, बेबुनियाद दावा जताता रहता है. इस दावे की पुष्टि के लिए चीन एकतरफा तौर पर इस क्षेत्र के कई इलाकों के नाम बदलता रहता है. 

आपकी गलती ठीक कर दूं...

इंटरव्यू के दौरान जब उन्हें बताया गया कि अरुणाचल प्रदेश की 1200 किलोमीटर की सीमा चीन से लगती है तो उन्होंने तुरंत टोकते हुए कहा, 'मैं आपकी गलती ठीक कर दूं, हम तिब्बत के साथ बॉर्डर साझा करते हैं न कि चीन के साथ.'

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उन्होंने आगे कहा कि आप मैप देखिए सच्चाई ये है कि भारत का भी राज्य सीधे तौर पर चीन से बॉर्डर शेयर नहीं करता है, हमारी सीमा सिर्फ तिब्बत से लगी हुई है. यह ठीक है कि 1950 में चीन ने वहां आकर तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा किया, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, ये बात अलग है, आधिकारिक तौर पर तिब्बत अब चीन के अधीन है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन हम मूल रूप तिब्बत के साथ सीमा साझा करते हैं. और अरुणाचल प्रदेश में, हम तीन अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को साझा करते हैं - भूटान के साथ, लगभग 150 किलोमीटर, तिब्बत के साथ, लगभग 1,200 किलोमीटर, जो देश की सबसे लंबी सीमाओं में से एक है, और पूर्वी तरफ, म्यांमार के साथ, लगभग 550 किलोमीटर."

खांडू ने कहा कि ऐतिहासिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह भारत-तिब्बत सीमा थी और उन्होंने 1914 के शिमला सम्मेलन का हवाला दिया जिसमें ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था.

अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों को अपने नाम देने की चीन की आदत पर उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश ने एक बार नहीं बल्कि पांच बार स्थानों का नाम बदला है.

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि पिछली बार उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों का नाम बदला था... अगर मैं गलत नहीं हूं, तो मुझे लगता है कि यह उनका कुल पांचवां प्रयास था. इसलिए यह हमारे लिए आश्चर्य की बात नहीं है. हम चीन की आदत जानते हैं, और मुझे लगता है कि आधिकारिक तौर पर विदेश मंत्रालय ने इससे निपटा है और उन्हें जवाब दिया है."

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दलाई लामा के 90वें जन्मदिन में शामिल हुए थे खांडू

गौरतलब है कि पेमा खांडू 6 जुलाई को धर्मशाला में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन में शामिल हुए थे. बौद्ध धर्म को मानने वाले पेमा खांडू ने अगले दलाई लामा के चयन में चीन के हस्तक्षेप भी जवाब दिया. उन्होंने कहा, "दलाई लामा संस्था पहले दलाई लामा से लेकर वर्तमान 14वें दलाई लामा तक 600 से ज़्यादा वर्षों से निरंतर कार्यरत है. गादेन फोडरंग ट्रस्ट अगले दलाई लामा को मान्यता देने की प्रक्रिया को मैनेज करता है, जो वर्तमान दलाई लामा के निधन के बाद ही शुरू होगी. इसमें कोई जल्दबाज़ी नहीं है और पूरी प्रक्रिया कड़े नियमों का पालन करती है."

उन्होंने कहा कि दलाई लामा के 90वें जन्मदिन से पहले बौद्ध परंपराओं के सभी प्रमुखों ने बैठक की और इस बात की पुष्टि की कि ये संस्था जारी रहेगी. गौरतलब है कि चीन अगले दलाई लामा के चयन में दखल देना चाहता है और नए दलाई लामा को चीनी सरकार से मान्यता लेने की बात करता है. 

इस पर पेमा खांडू ने कहा कि, "चीन ने इस पर आपत्ति जताई है. चीन की आपत्तियां उसकी अपनी नीतियों पर आधारित हैं. लेकिन दलाई लामा संस्था को मुख्यतः हिमालयी क्षेत्र और तिब्बती बौद्धों द्वारा मान्यता प्राप्त है. इस मामले में चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए."

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चीन ने तिब्बत पर कैसे कब्जा किया था?

ये सच है कि आजादी के समय भारत की सीमा चीन से नहीं बल्कि तिब्बत से मिलती थी. लेकिन 1949 में माओ जब चीन का प्रमुख बना तो उसने तिब्बत पर नजरें गड़ा दी.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में चीनी जनवादी गणराज्य यानी कि आधुनिक चीन की स्थापना हुई. माओ ने तिब्बत को चीन का अभिन्न हिस्सा मानकर इसे अपने नियंत्रण में लाने का लक्ष्य रखा. तिब्बत तब एक स्वायत्त क्षेत्र था, और ऐसा सदियों से चला आ रहा था. लेकिन शांतिप्रिय बौद्धो, लामाओं का ये प्रदेश सैन्य रूप से कमजोर था.

7 अक्टूबर 1950 को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने हजारों सैनिकों के साथ तिब्बत पर आक्रमण शुरू किया. चामडो की लड़ाई में चीन ने तिब्बती सेना को आसानी से हरा दिया गया, क्योंकि उनके पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही संगठित सेना थी.

भारी दबाव में 23 मई 1951 को तिब्बत के प्रतिनिधियों ने 17-सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार किया गया. हालांकि दलाई लामा ने इसे जबरन थोपा हुआ बताया. इस कब्जे के पीछे चीन का मकसद तिब्बत के रणनीतिक स्थान को नियंत्रित करना, भारत के साथ सीमा को मजबूत करना और अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता स्थापित करना था.

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इसके बाद चीन ने तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को दबाने की कोशिशें शुरू की. जिसके परिणामस्वरूप 1959 में विद्रोह हुआ और दलाई लामा भारत आ गए. 
 

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