गर्मी की शुरुआत के साथ ही देश के कई राज्य हीटवेव की चपेट में आ चुके हैं. मौसम विभाग के मुताबिक, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में अधिकतम तापमान 40 डिग्री के पार दर्ज किया जा रहा है. वहीं, दक्षिणी राज्यों में पारा 42-43 डिग्री के आस-पास बना हुआ है. गर्मी का प्रकोप बढ़ने की आशंका के बीच ये डर भी जताया जा रहा है कि पारा वेट-बल्ब टेंपरेचर क्रॉस कर जाएगा. ये स्थिति जानलेवा हो सकती है.
महाराष्ट्र में गर्मी से गई जानें
इस साल की फरवरी को बीते 122 सालों में सबसे गर्म महीना माना गया था, जो साल 1901 के बाद सबसे गर्म महीना था. लेकिन अब हालात और बिगड़ने वाले हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग चेता रहा है कि देश के ज्यादातर हिस्सों में तापमान 40 पार कर जाएगा, वहीं कुछ जगहों पर पारा 50 पार भी जा सकता है.
इसके बाद करने को कुछ खास बाकी नहीं रहेगा. लोग बीमारी नहीं, बल्कि वेट-बल्ब टेंपरेचर की वजह से खत्म होने लगेंगे. शुरुआत हो भी चुकी है. महाराष्ट्र के नवी मुंबई में रविवार दोपहर एक सम्मान समारोह के दौरान हीटवेव से 11 मौतें हो गईं, जबकि एक की हालत गंभीर बताई जा रही है. वेट-बल्ब थ्रेशहोल्ड के चलते हालात बेकाबू हो सकते हैं.
क्या है ये टेंपरेंचर
अगर थर्मामीटर के बल्ब पर कोई गीला कपड़ा लपेटा जाए तो उसकी रीडिंग कम होने लगती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कपड़ा पारे की गर्मी को सोख लेता है. लेकिन अगर आसपास की हवा नम हो, यानी उसमें पानी की मौजूदगी हो तो कपड़े से पानी के वाष्पीकृत होने की प्रक्रिया काफी धीमी रहेगी. इससे थर्मामीटर का पारा वहीं का वहीं बना रहेगा. बिल्कुल यही बात इंसानी शरीर पर भी लागू होती है. अगर शरीर के आसपास मौजूद हवा में नमी हो, तो पसीना सूख नहीं पाता है. इससे तापमान कम नहीं हो पाता.
पसीना निकलना ही काफी नहीं!
नहीं. वैसे तो शरीर को ठंडा रखने में पसीना काफी काम करता है लेकिन सिर्फ पसीना निकलने से ही शरीर ठंडा नहीं रहता. वाष्पीकरण के जरिए शरीर से निकली गर्मी को सूखना भी चाहिए. हवा में नमी होने पर पसीना निकलता तो है, लेकिन भाप न बनकर शरीर पर ही बना रहता है. इससे तापमान बढ़ने लगता है, जिससे ऑर्गन फेल होने तक का खतरा रहता है.
पारा ऊपर जाने पर क्या होता है
हमारे लिए उच्चतम स्वीकार्य वेट-बल्ब टेंपरेंचर 35 डिग्री सेल्सियस है. इस मार्कर के ऊपर जाने पर पसीना वाष्पीकृत होने में समस्या आने लगती है, जिससे शरीर का तापमान बढ़ने लगता है और फिर हाइपरथर्मिया की स्थिति भी आ सकती है. ये वो कंडीशन है, जिसमें शरीर जितनी गर्मी छोड़ सकता है उससे ज्यादा अवशोषित या पैदा करता है. आमतौर पर गर्म, आर्द्र परिस्थितियों में ज्यादा काम करने की वजह से ये हालात बनते हैं, जैसे कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले, किसान या फिर किसी भी वजह से सूरज की धूप में ज्यादा समय बिताने वालों पर ये खतरा रहता है.
कोस्टल इलाकों में रहने वालों पर भी रिस्क ज्यादा रहता है क्योंकि वहां पर हवा में नमी सामान्य जगहों की अपेक्षा ज्यादा रहती है. ऐसे में पसीना आता है, लेकिन सूख नहीं पाता, जिससे शरीर का तापमान कम नहीं हो पाता.
भारत में क्या हो सकते हैं हालात
साल 2022 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि भारत में गंगा और ब्रह्मपुत्र समेत सभी बड़ी नदियों में पानी का स्तर तो बढ़ेगा ही, उनका तापमान भी वेट-बल्ब मार्कर के काफी ऊपर चला जाएगा. इसका असर जाहिर तौर पर नदी में पलने वाले जीव-जंतुओं से लेकर इंसानों तक पर होगा. लेकिन नदी के पानी का तापमान बढ़ना अकेली समस्या नहीं, हवा में गर्मी बढ़ने को लेकर साइंटिस्ट ज्यादा आशंकित हैं.
ज्यादा गर्मी वाले इलाकों की हो रही पहचान
उन राज्यों और जगहों की पहचान की जा रही है, जहां का तापमान वेट-बल्ब को पार कर सकता है और तय किया जा रहा है कि गर्मी से बचने के लिए वहां क्या किया जाए. इसे हीट एक्शन प्लान (HAP) कहते हैं. फिलहाल तक कुल 18 राज्यों में 37 HAP पहचाने गए हैं. ये वो जगहें होंगी, जहां का तापमान इंसानी शरीर के सहने की क्षमता से काफी ऊपर जा सकता है.
aajtak.in