महाराष्ट्र के चंद्रपुर में एक महिला वकील प्रीति शाह ने जिलाधिकारी से 'नो कास्ट, नो रिलिजन' सर्टिफिकेट की मांग की है. महिला वकील प्रीति शाह का कहना है कि वो समाज में फैले भेदभाव से काफी दुखी हैं, इसलिए उन्होंने जाति और धर्म से मुक्त होने का संकल्प लिया है. इससे पहले तमिलनाडु के वेल्लोर जिले की रहने वाली स्नेहा 'नो कास्ट, नो रिलिजन' सर्टिफिकेट हासिल करने वाली पहली महिला बनीं थीं. उन्होंने 5 फरवरी 2019 में यह सर्टिफिकेट हासिल किया था.
इसके अलावा गुजरात के सूरत शहर की एक ब्राह्राण महिला ने गुरजात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए 'नो कास्ट नो रिलिजन सर्टिफिकेट की मांग' की है. काजल गोविंदभाई मंजुला (36) ने अपने वकील धर्मेश गुर्जर के द्वारा एक कोर्ट में याचिका दाखिल की है. जिसमें कहा है कि मद्रास हाई कोर्ट के स्नेहा प्रथिबराजा केस की तर्ज पर उन्हें भी 'नो कास्ट, नो रिलीजन' का प्रमाणपत्र जारी किया जाए.
संविधान के अनुछेद 25 के मुताबिक लोगों को अपना धर्म बदलने के अलावा जाती से मुक्त होने का भी अधिकार है. भारतीय राज्यघटना 19-(1) (A) के मुताबिक किसी को धर्म से अलग रहना है, तो उसे अलग रहने का प्रवधान है. अपने मूलभूत अधिकार के तहत प्रीति शाह ने 'नो कास्ट, नो रिलिजन' सार्टिफिकेट की मांग की है.
प्रीति शाह का कहना है कि भविष्य में उन्हें किसी भी प्रमाणपत्र में जाति और धर्म का उल्लेख नहीं करना है. वो एक भारतीय बनकर रहना चाहती हैं. इसलिए उन्हें 'नो कास्ट, नो रिलिजन' का सर्टिफिकेट दिया जाए.
विकास राजूरकर