कुंवारी मां ने पहले बेटे को गोद दिया, फिर अडॉप्ट करने वालों के खिलाफ पहुंची कोर्ट, अब आया अदालत का फैसला

मुंबई की एक अदालत ने गोद लेने के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपना निर्णय़ देते हुए कहा कि जन्म देने वाली मां को ही बच्चे की कस्टडी का अधिकार है. वही बच्चे को गोद लेने वाले माता-पिता ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

विद्या

  • मुंबई,
  • 13 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 10:42 AM IST

मुंबई की एक अदालत ने बच्चे को गोद लेने वाले में मामले में एक अहम आदेश दिया है. अदालत ने एक बच्चे को गोद लेने वाले दंपत्ति को आदेश दिया है कि वह बच्चे को उसके जैविक माता-पिता को वापस सौंप दें. अदालत ने यह देखते हुए फैसला दिया कि एक जैविक मां को अपने 'बच्चे की कस्टडी का अधिकार' है और दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया साबित नहीं हुई है. अदालत ने कहा कि बच्चे की कस्टडी दत्तक माता-पिता के पास थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उनके पास बच्चे को रखने का कोई अधिकार है.

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क्या है मामला
यह मामाला एक जैविक मां से जुड़ा हुआ था, जिसने शादी से पहले एक बच्चे को जन्म दे दिया. कुछ परिस्थितियों के कारण उसने 2021 में एक एनजीओ को यह बच्चा गोद लेने के लिए दे दिया. एनजीओ ने बच्चे को गोद लेने के लिए एक दंपति को ढूंढा, लेकिन इस बीच महिला को पता चला कि यह एक बच्चा बेचने वाला रैकेट है. बाद में उसकी बच्चे के पिता से शादी हो गई और इसलिए वह अब अपना बच्चा वापस चाहती थी.

अदालत की चौखट पर पहुंचा मामला
वहीं गोद लेने वाले माता-पिता का कहना है कि बच्चे के जैविक माता-पिता ने ही उन्हें यह बच्चा गोद दिया था. इसके बाद ही नोटरीकृत दस्तावेज अर्थात गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए गए और प्रक्रिया को पूरा किया गया. इस बीच बच्चे को उन्हें सौंप दिया गया. दंपति ने कहा कि वे बच्चे की देखभाल कर रहे थे और उससे लगाव हो गया था. उन्होंने कहा कि बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए कस्टडी उनके पास ही रखी जानी चाहिए.अदालत ने गोद लेने के लिए आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने वाले उन दस्तावेजों का भी अध्ययन किया जो दोनों पक्षों ने कोर्ट के समक्ष रखे थे. जैविक माता-पिता अपने बच्चे को गोद देने और गोद लेने वाले माता-पिता बच्चे को गोद लेने के लिए सहमत हो गए थे. 
 

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दोनों पक्षों की दलीलें
हालांकि, अदालत ने पाया कि जैविक मां ने गोद लेने की औपचारिकताओं को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था. इसके कारण गोद लेने वाले माता-पिता द्वारा 2021 में हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम (HAMA) के तहत दायर की गई गोद लेने की याचिका को मार्च 2022 में खारिज कर दिया गया था. यह याचिका इस आधार पर खारिज की गई कि जैविक मां ने गोद लेने के लिए अपनी सहमति नहीं दी थी.

गोद लेने वाले माता-पिता ने सत्र न्यायालय के समक्ष दलील रखते हुए कहा कि HAMA इस बात पर जोर नहीं देता है कि बच्चे को गोद लेना केवल एक पंजीकृत दस्तावेज के माध्यम से होगा. जब बच्चे को जैविक माता-पिता द्वारा गोद दिया जाता है, तो गोद लेने के लिए न्यायालय की अनुमति आवश्यक नहीं है. उन्होंने कहा कि बच्चे की कस्टडी उनके पास है, इसलिए यह तथ्य ही काफी है कि बच्चा उनके पास रहना चाहिए. उन्होंने आगे तर्क दिया कि गोद लेने या देने का कोई सेरेमनी का होना आवश्यक नहीं है.

कोर्ट का फैसला

हालांकि अदालत उनकी दलील से सहमत नहीं हुई और कहा, 'दत्तक ग्रहण दस्तावेज में शामिल से यह देखा गया है कि दोनों पक्षों ने बच्चे को गोद लेने के संबंध में अपनी-अपनी सहमति व्यक्त की है और आगे कुछ नहीं किया गया. बच्चे को गोद देने और गोद लेने के संबंध में कोई वर्णन नहीं है. गोद लेने वाले माता-पिता ने दत्तक लेने की प्रक्रिया के संबंध में तथ्य स्थापित करने के लिए विश्वसनीय और संप्रेषित साक्ष्य रिकॉर्ड पर नहीं लाए हैं. ऐसी परिस्थितियों में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि केवल बच्चे की अभिरक्षा के लिए ही उन्हें बच्चा नहीं गोद नहीं जा सकता है.'

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हाईकोर्ट ने लगाई फैसले पर रोक

अदालत ने 2022 के आदेश के खिलाफ बच्चे को गोद लेने वाले माता-पिता द्वारा दायर एक रिव्यू पिटीशन को भी खारिज कर दिया. हालाँकि गोद लेने वाले माता-पिता ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी. जिसके बाद न्यायाधीश ने चार सप्ताह के लिए आदेश पर रोक लगा दी.

 

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