महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने विपक्ष को हैरान कर दिया है. महायुति गठबंधन को जिस तरह से एकतरफा जीत मिली है, उसने विपक्ष की सियासी जमीन को हिलाकर रख दिया है. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर महायुति गठबंधन ने कैसे महाराष्ट्र में अपने पक्ष में हवा बनाई, जिसकी विपक्ष को हवा तक नहीं लगी. लेकिन इस शानदार जीत के पीछे 5 महीने तक राज्य में चलाया गया एक अभियान शामिल था जिसने हिंदू वोटर्स को एकसाथ लाने का काम किया. इस अभियान में वारकरी, कीर्तनकार और भजनकारी शामिल थे, जिन्होंने राज्यव्यापी इस आंदोलन को बढ़ावा दिया.
मुस्लिम दबदबे वाली सीटों पर भी जीती बीजेपी
हिंदू एकता के इस प्रभाव का इतना असर था कि भाजपा ने उन सीटों पर भी जीत हासिल की जहां मुस्लिम आबादी 20% से अधिक थी. जबकि कांग्रेस की सीटों में कमी आई. इससे भाजपा को पहली बार गोंदिया सीट भी मिली, जो उसने 60,000 वोटों के अंतर से जीती.
बीजेपी ने अकेले 132 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि महायुति ने कुल 233 सीटें जीतीं. वहीं, महा विकास आघाड़ी (MVA) सिर्फ 49 सीटों पर सिमट कर रह गई.
वारकरी, कीर्तनकार और भजनकारी का योगदान
वारकरी वे तीर्थयात्री हैं जो पंढरपूर (सोलापुर जिला) में भगवान विट्ठल के मंदिर तक हर साल 250 किलोमीटर की यात्रा करते हैं, जबकि कीर्तनकार और भजनकारी वे होते हैं जो भक्ति गीत गाते हैं और आध्यात्मिक उपदेश देते हैं. ये तीनों 17वीं सदी के भक्त कवि संत तुकाराम से जुड़े हुए हैं और महाराष्ट्र में इनकी बहुत इज्जत है.
RSS ने बनाई रणनीति
राजनीतिक टिप्पणीकार स्मिता देशमुख का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 'सजग रहो' अभियान में 110 संगठनों ने मिलकर वारकरे, कीर्तनकारों और भजनकारों को हिंदू एकता का संदेश फैलाने के लिए जोड़ा. महाराष्ट्र में काव्य और भक्ति परंपरा का एक बड़ा इतिहास है और संघ परिवार ने इसका फायदा उठाया. वारकरियों का नेटवर्क बहुत बड़ा है, जो शहरी केंद्रों से लेकर ग्रामीण महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों तक फैला हुआ है.
वह मुहिम जिसने चुनाव की दिशा बदली
लेखक और इतिहासकार वैभव पुरंदरे का मानना है कि भाजपा नेतृत्व वाली महायुति सरकार द्वारा वारकरे के लिए फंड आवंटन और पेंशन योजना ने विधानसभा चुनाव पर बड़ा प्रभाव डाला.
लोकसभा में हार के बाद हिंदुत्व की जरूरत महसूस हुई
स्मिता देशमुख के अनुसार, यह मुहिम लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद शुरू हुई थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके नेताओं, जैसे राहुल गांधी ने जाति जनगणना का मुद्दा उठाया था, जिससे भाजपा को नुकसान हुआ. मुस्लिम मतों का विपक्षी दलों के पक्ष में एकजुट होना और हिंदू मतों का जातिवाद के आधार पर बंटना भाजपा के लिए मुश्किल साबित हुआ.
लोगों तक पहुंचने के लिए नए तरीके अपनाए गए
स्मिता देशमुख कहती हैं कि संघ परिवार ने महाराष्ट्र में 60,000 से अधिक बैठकें आयोजित कीं, ताकि हिंदू मतों को जातिवाद के आधार पर विभाजित होने से रोका जा सके. एकता के संदेशों को गांवों में प्रवचन और पारंपरिक मराठी गीतों के जरिए किया गया.
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वारकरे और कीर्तनकारों ने महायुति का संदेश गांव-गांव पहुंचाया
बीजेपी ने पिछले कई सालों से वारकरियों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की थी. यह प्रयास चुनाव के करीब आते ही तेज हुआ. वैभव पुरंदरे कहते हैं, 'जो भी वार्षिक यात्रा में भाग लेता है वह वारकरी होता है, और यह आयोजन जाति और समुदायों के परे जाता है.' .
वारकरे की मदद से महायुति ने MVA के मराठी गौरव के नैरेटिव को तोड़ा
इतिहासकार वैभव पुरंदरे का कहना है कि वारकरियों को पेंशन और सुविधाएं देने का कदम और केंद्र द्वारा मराठी को क्लासिकल भाषा का दर्जा देना महा विकास आघाड़ी के इस नैरेटिव को तोड़ने में मददगार साबित हुआ कि महायुति सरकार गुजरात समर्थक है.
इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'एक हैं तो सेफ हैं' संदेश ने भी वारकरियों और कीर्तनकारों के बीच अच्छा संदेश दिया. क्योंकि 'एकता' वारकरी आंदोलन के मूल में है. वहीं, चुपचाप संघ परिवार के आंदोलन के बीच मौलाना सज्जाद नोमानी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने भाजपा का समर्थन करने वाले मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार करने की बात की थी. यह वीडियो पूरी तरह से चुनाव को मोड़ने में सहायक साबित हुआ.
हिंदू मतों का एकीकरण और भाजपा की जीत
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बताया कि कैसे हिंदू वोटों का बंटवारा भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा था. हिंदू एकता के संदेश को फैलाने के लिए वारकरियों और कीर्तनकारों का इस्तेमाल किया गया था और इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने 38 सीटों में से 14 पर जीत हासिल की, जहां मुस्लिम आबादी 20% से अधिक थी.
युद्धजीत शंकर दास