बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग से पुणे लोकसभा सीट के लिए तत्काल उपचुनाव कराने को कहा और इस बात पर जोर दिया कि निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को लंबे समय तक प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं छोड़ा जा सकता है.
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति कमल खट्टा की खंडपीठ ने 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी सहित अन्य चुनावों में व्यस्त होने के कारण चुनाव नहीं कराने के चुनाव आयोग के रुख की आलोचना करते हुए इसे विचित्र और पूरी तरह से अनुचित बताया.
दरअसल, पुणे लोकसभा सीट इस साल 29 मार्च को मौजूदा भाजपा सांसद गिरीश बापट की मृत्यु के बाद से खाली है. इसको लेकर कोर्ट ने कहा कि किसी भी संसदीय लोकतंत्र में शासन निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है जो लोगों की आवाज हैं. यदि प्रतिनिधि नहीं रहा तो उसके स्थान पर दूसरा प्रतिनिधि रखा जाना चाहिए. लोग बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकते. यह पूरी तरह से असंवैधानिक है और हमारे संवैधानिक ढांचे के लिए एक मौलिक अभिशाप है.
अदालत ने निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव न कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी प्रमाण पत्र के खिलाफ पुणे निवासी सुघोष जोशी द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश पारित किया. चुनाव आयोग ने कहा था कि वह दो आधारों पर उपचुनाव नहीं कराएगा- एक तो यह कि वह 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी गतिविधियों सहित अन्य चुनावों में व्यस्त है और दूसरा यह कि अगर पुणे उपचुनाव हुआ तो भी निर्वाचित प्रतिनिधि को छोटा सा कार्यकाल मिलेगा.
पीठ ने इन आधारों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि दोनों वैध चिंताएं नहीं हैं. यह वास्तव में संवैधानिक कर्तव्यों और दायित्वों का त्याग है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. ईसीआई न केवल निहित है बल्कि चुनाव कराने और यह सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्य और दायित्व भी रखता है कि कोई भी रिक्ति भरी जाए. ईसीआई किसी निर्वाचन क्षेत्र को बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रहने दे सकता है. मतदाताओं को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
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