INS विक्रांत फंड दुरुपयोग मामले में BJP नेता किरीट सोमैया और उनके बेटे को मुंबई पुलिस ने दी क्लीन चिट

मुंबई पुलिस ने कथित आईएनएस विक्रांत फंड दुरुपयोग मामले में बीजेपी नेता किरीट सोमैया और उनके बेटे नील सोमैया को क्लीन चिट दे दी है. इसको लेकर पुलिस ने सी (क्लोजर) समरी रिपोर्ट दाखिल कर दी है.

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किरीट सोमैया किरीट सोमैया

दिव्येश सिंह

  • मुंबई,
  • 03 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:59 PM IST

मुंबई पुलिस ने कथित आईएनएस विक्रांत फंड दुरुपयोग मामले में बीजेपी नेता किरीट सोमैया और उनके बेटे नील सोमैया को क्लीन चिट दे दी है. मुंबई पुलिस ने सी (क्लोजर) समरी रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें बीजेपी नेता किरीट सोमैया और उनके बेटे नील को आईएनएस विक्रांत के संरक्षण के लिए फंड का दुरुपयोग करने के आरोप से मुक्त कर दिया गया.

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इससे पहले कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को कर दिया था खारिज

पुलिस सूत्रों के अनुसार व्यापक जांच के बाद जांचकर्ताओं को हेराफेरी का कोई सबूत नहीं मिला है. इससे पहले अगस्त में मुंबई पुलिस की ईओडब्ल्यू ने क्लोजर फाइल किया था, लेकिन कोर्ट ने पर्याप्त जांच न होने का हवाला देते हुए क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था. अब सी समरी रिपोर्ट के बाद रिपोर्ट की अंतिम स्वीकृति का इंतजार है.

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शिकायत में आरोप लगाया गया था कि किरीट सोमैया और उनके बेटे नील सोमैया ने आईएनएस विक्रांत के लिए जनता से करीब पचास करोड़ रुपये जुटाए थे, जिसका उन्होंने दुरुपयोग किया. पुलिस को सोमैया और उनके बेटे द्वारा फंड के दुरुपयोग का कोई सबूत नहीं मिला.

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अभियान के तहत 57 करोड़ उगाही का किया गया था दावा

पूर्व सैनिक भोसले ने आरोप लगाया कि सोमैया और उनके बेटे नील ने 2013-2014 के बीच फंडरेजिंग अभियान चलाया था, जिसमें उन्होंने "विक्रांत बचाओ" पहल के तहत लगभग 57 करोड़ रुपये जुटाने का दावा किया. इस अभियान के तहत भोसले ने 2000 रुपये का योगदान दिया था. उन्होंने आरोप लगाया कि सोमैता पिता-पुत्र ने उस फंड को संबंधित ऑफिस में जमा नहीं कराया था. इसके लिए उन्होंने आरटीआई से हासिल एक रिपोर्ट का हवाला दिया था.

पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट में क्या दावा किया?

भोसले ने दावा किया था कि किरीट सोमैया ने चर्चगेट, भांडुप, मुलुंड, बांद्रा, अंधेरी और मुंबई के अन्य इलाके से 57 करोड़ रुपये की उगाही की थी. इस मामले की जांच पुलिस इंस्पेक्टर विनय घोरपड़े ने की, जिन्होंने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दायर किया और अदालत से मांग की कि मामले को बंद कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कोर्ट में दावा किया कि एफआईआर गलतफहमी में दर्ज की गई थी. इंस्पेक्टर ने दावा किया कि चर्चगेट से ही फंड जुटाए गए और अन्य जगहों से सिर्फ 10 हजार रुपये की उगाही की गई.

गवाहों के बयानों ने पुष्टि की कि धन उगाहने वाले अभियानों के दौरान योगदान दिया गया था, लेकिन किसी भी गवाह को इस बात की जानकारी नहीं थी कि इकट्ठा किए गए धन का क्या हुआ. मजिस्ट्रेट ने चर्चगेट क्षेत्र से परे गवाहों के खातों को दस्तावेज करने में विफल रहने के लिए जांच अधिकारी को फटकार लगाई.

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